१. आर्थिक विकास खंड
गोवंश आधारीत उद्योगों द्वारा गोवंश सम्वर्धन गौरक्षा, ग्रामीण,स्त्रीशक्ति, युवाशक्ति विकास देश में उपलब्ध १०० करोड़ टन गोबर तथा ७० करोड़ किलोलीटर गोमूत्र द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में रु. २० लाख करोड़ वार्षिक का सम्भावित योगदान
गाय के लिए इस देश के लोगों के मन में श्रद्धा किसी अंधविश्वास या धार्मिक अनुष्ठान के कारण नही वरण गाय की उपयोगिता के कारण है. कृषि, ग्राम उद्द्योग, यातायात के अलावा दूध, दही और छाछ,गौमूत्र और गोबर विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोगी होते हैं. यहां तक कि उसकी मौत के बाद, चर्म विभिन्न वस्तुओं के निर्माण का साधन और गाय के सींग और शरीर के अन्य भाग का खाद बनाने में
उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के लिए पोषक तत्वों में बहुत अमीर है और कृषि दृष्टि से बहुत कीमती है
हमारे देश में मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है. कृषि की प्रणाली गोवंश के उपयोग पर आधारित थी. भारत के कृषि क्षेत्रों में मिट्टी, ज्यादातर बहुत नाजुक और पतली है,मिट्टी की इस स्थिति में बैलों का उपयोगसबसे उपयुक्त था. यह बताया जाता है कि 200 साल के आसपासमालाबार, तमिलनाडु और इस देश के अन्य क्षेत्रों, रेलवे लाइनों की स्थापना, यहां तक कि ब्रिटिश सेना परिवहन प्रयोजनों के लिए बैलों का उपयोग किया गया गोवंश ४ टन प्रति वर्ष की दर से १२० करोड़ टन गोबर और ८० करोड़ किलो लीटर गोमूत्र प्रदान करता है.
यहमात्रा जो की देश के विकास में सहायक होनी चाहिए, आज पर्यावरण की समस्या बन गयी है ग्राम- शहर कीनालिओंसे बह कर क्षेत्र के जलाशयों, और नदिओं
के जल स्तर को ऊँचा करती जा रही है.अगर इस गोवंशशक्ति को उपयोग में लाया जाये तो १२० करोड़ टन गोबर ५०,००० करोड़ का
प्राकृतिक उर्वरक, ३५,०००करोड़ की १०,००० करोड़यूनिट बिजली और एक बैल८ अश्वक्ति ८० करोड़अश्व शक्ति के समान बैलशक्ति देशकी ग्रामीण विद्युत्, इंधन और पेय जल समस्या का निदान है.
मैं आप को कुछ दशक पहले ले चलता हूँ जब बिना गोवंश के खेती, परिवहन सिचाईं, यानी कोई भी गतिविधि सोच ही नहीं सकते थे. इस प्रभु की रचना को कामधेनु नंदी बृषभ जैसे आध्यात्मिक नामसे पुकारा जाता था.
ग्रामीण दिनचर्या, अर्थ, विकास की केन्द्रीय धुरी यह गोवंश ओछे लालच और विदेशी सामानों के उपयोग के सामने हम लोगों ने भुला दिया है . परिणामवश मोक्ष प्रदायनी, कामदा, सुखदा गोमाता आज अनुत्पादक, धरती का भार कही जाती है और प्रतिदिन क्रूरता पूर्वक विभिन्न विधि विधानों को तोड़ते हुए देश के हर कोने में हर राज्य के कसायिखानो में कट कर गली गली में बिकती देखी जा सकती है. इस के परिणाम ?
यह किस कीमत पर? यह दीवानगी भरा मूक प्राणीसंहार आज पर्यावरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, रोजगार, और ग्रामीण विकास को तहस नहस कर रहा है. साथिओं, आपको ज्ञात है कि?
देश में गोवंश से प्रतिवर्ष उपलब्ध १०० करोड़ टन गोबर लगभग ५० हज़ार करोड़ कीमत कि 8५००करोड़ यूनिट बिजली उत्पन्न कर सकता है.और येही गोबर अगर व्यापारिक रूप से उपयोग में लाया जाये तो ग्राम का द्रश्य ही बदल सकता है और सबसे सस्ता नैसर्गिक खाद का उत्पादन राज्य कि खाद समस्या सुलझाते हुए रस.३/-प्रति किलो से भी ३,२०,००० करोड़ का देश के उत्पादन में सहयोग दे सकता है.
बैल शक्ति का कृषि, सिचाई, परिवहन व अन्य कल कारखानों को चलाने में उपयोग ग्रामीण बेरोजगारी समाप्त कर पेयजल, नलकूपचालन, विद्दयुत उत्पादन कर ग्राम विकास में सहयोग कर भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ. ऐ.पी.जे. अब्दुल क़लाम जी कि कल्पना 'पूरा' ग्राम में शहर कि सुविधा' कर सकता है कृषक और गौपालक को उत्पादन के अच्छे दाम दिलवाते हुए, प्राकृतिक साधनों के उपयौग से बेहतर स्वास्थ्य और राजस्व में असीम बढोतरी और राज्य के व्ययों में कमी ला सकता है.
मित्रों, हमारे देश के हर जिले को लगभग ५ लाख गोवंश का आशीर्वाद प्राप्त है जिसके द्वारा असीम कीमती गोबर और गोमूत्र प्राप्त होता है. वजन के आधार पर हर जिले में लगभग २० लाख टन गोबर और ७ लाख ५० हजार किलो लीटर गोमूत्र का यानी देश के लगभग ५०० जिलों का जोड १०० करोड़ टन गोबर व् ७० करोड़ किलो लिटर गोमूत्र पैदा होता है. यह निरंतर पैदा होने वाला उद्योगिक कच्चापदार्थ उद्योगपति भाईओं कि आँखों से छुटा हुआ है. सवाल पैदा होता है कि यह कहाँ जा रहा है?
निरंतर मशीनीकरण और कृत्रिम उत्पादों के बढ़ते उपयोग ने सबसे सस्ता यानी रु. ३/- प्रति किलो का खाद भी आज भुला दिया गया है और रु. २२-२५/- प्रति किलो का रासायनिक खाद बेशकीमत विदेशी मुद्रा खर्च कर आयात किया जा रहा है लाखों करोड़ का सरकारी अनुदान देकर कृषक भाईओं में वितरित किया जा रहा है.
और गोबर और गोमूत्र नालिओं से बहकर पास के तालाबो नहरों या नदियों में गिर कर उनकी सतह निरंतर ऊँची कर रहा है. इस जमी हुई गाद को निकालने पर पुनः राज्य और केन्द्रीय सरकारों का अरबों रुपया खर्च हो रहा है
प्रिय उद्योगपति साथियो, मैं आप को बताना चाहता हूँ, आप का ध्यान इस स्वर्ण कि और आकर्षित करना चाहता हूँ जिस से बीसिओं वस्तुओं का निर्माण हो सकता है जो बहुत ही लाभदायक व्यवसाय हो सकता है .आज भी बैलो कि जोडी हमारे ग्रामीण दिलों में निवास करती है जो अकारण नहीं आज पुनः विद्दुत, जल, कृषि, कोल्हू, यातायात और परिवहन साधन के रूप में आप के द्वारा व्यवसायिक रूप में लाभ उपार्जन में कि जा सकती है..
विद्दुत के दो साधन बैलशक्ति , एक गोवंश ८ अश्वशक्ति, जो लगभग १२ करोड़ अश्वशक्ति के सामान और गोबर से उत्पादित बायोगेस यानी लगभग १४ किलो गोबर द्वारा गेस से एक विद्युत् इकाई पैदा कि जा सकती है.
इस से प्रतिदिन काम में आनेवाली वस्तुएं जैसे साबुन, शेम्पू, फिनायल, धुप, अगरबती, रंग रोगन, कीमती टाइल, प्लाई बोर्ड, दवायीआं, मूर्तियाँ, यहाँ तक कि जानकारीसूचिका आपके सामने है. हमे आप के साथ जुड़ने और इस विषय पर और जब भी और जैसी भी जानकारी हमारे पास है आप तक पहुँचाने और उपलब्ध कराने में अति प्रसन्नता होगीआईये गोवंश और इस पर आधारित उद्योगों के कुछ लाभों कि चर्चा करें करें
· .उद्योगों को चलाने के लिए लगभग ७ करोड़ टन वार्षिक गोबर और गोमूत्र के रूप में कच्चा माल
· प्रति वर्ष १०% कि अनुमानित बढोतरी
· राज्य सरकार का गोबर और गोमूत्र डेरी स्थापना कर निश्चित दाम पर खरीद और उपलब्ध करने का आश्वासन
·
उपलब्धता हर जिले, हर तालुक, हर गाँव यानी सम्भावित उद्योग के १० किलोमीटर के दायरे में होने से उद्योग स्थान चुनने में आसानी और इसके अनगिणित स्थानीयलाभ.
· केवल कच्चा माल ही नहीं बैलशक्ति का मशीन संचालन में विद्युतशक्ति के स्थान वायु, सोर्य उर्जा की तरह गैर पारम्परिक शक्ति उपयोग की असीम सम्भावना
लाभ का प्रतिशत इतना अधिक यानी गैर लाभ गैर हानी बिंदु क्षमता के १० प्रतिशत में ही प्राप्त किया जासकता है प्रतिदिन बढ़ते हुए खनिजतेल दाम जो कभी भी २०० डालर पार कर सकते हैं भारतीय उद्योग के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा माना जाते हैं. कया हमे अभी से विभिन्न उपलब्ध उर्जा वाह कच्चे माल के स्त्रोत नहीं निकलने और इस्तमाल में लाने चाहियें.
·
देशवासिओं के स्वास्थ्य का ध्यान नेसर्गिक उत्पादन प्रारम्भ कर और क्रत्रिम रासायनिक उत्पादों पर निर्भरता कम कर के ही रखा जा सकता है. गोवंस आधारित उद्योग स्थापना और इनके उत्पादों का कच्चे माल की तरह उपयोग कर ही हम यह आश्वासन पूरा कर सकते हैं.
इस अति लाभ दायक उद्योग सम्भावना के लिए आप आगे आयेंगे तो राज्य में एक नए उद्योगिक वातावरण का निर्माण होगा जो लाखो नवयुवकों को को रोजगार, स्वस्थ्य भोजन, और आद्यात्मिक जीवन की और अग्रसर करेगा साथ में
लाखों मूकप्रानिओं की रक्षा में सहायक होगा. इस विशेष उद्योग के लिए विशेष उद्योगिक क्षेत्रों की संरचना की जाये, गोवंश आधारित आदर्शग्राम निर्धारित कीये जाएँ, विशेष रियायतें, अनुदान आर्थिक कर व् आबकारी से छुट प्रदान की जाये. जहाँ भी सरकारी विभागों में सम्भव हो गोवंश आधारित निर्माण को खरिदा जाये.
साथियो आपने देखा की कीतना लाभकारी और विस्तृत है हमारा गोवंश|आइये हम सब हाथ मिलाएँ और इस विश्व को गोवंश की महत्ता बता दें और इसे सिर्फ शाब्दिक नहीं लेकिन वास्तविक कामधेनु स्थापित करते हुए राष्ट्र उन्नति, प्रगति और युवा शक्ति, स्त्रीशक्ति, ग्रामशक्ति सबके उत्थान का मार्ग प्रसस्त करें और देश के उत्थान में अपना योगदान देकर रास्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की रामराज्य कल्पना साकार करें.
कहाजाता है कि विदेशी यात्रि भारत से कामधेनु और कल्पतरु यानी गाय और गन्ना लेकर गया था जिस से योरप में समृधि बढ़ी.
१.
माननीय इन्द्रेशकुमारजी लिखते हैं गाय मानव जाति के कल्याण का मन्त्र है | विश्व में जितने भी खाद्यान्न है उनमे दुग्ध को पूर्ण आहार माना गया|
२. गौवंश पर्यावरण, विज्ञानं, आयुर्वेद, कृषि, अर्थ, स्वास्थ्य, ग्रामीण और महिलाशक्ति का आधार बिंदु है| गाय प्रकृति का अनुपम उपहार है| दुग्ध, जैविक खाद, कीट नियंत्रक का भण्डार है | घर घर में स्थापित बिजलीघर और पंचगव्य के रूप में औषधालय है|
३. गाय के दूध में रेडियो विकिरण से रक्षा करने की शक्ति निहित है|
- शिरोविच
४. गाय अपनी नि:स्वास में प्राणवायु आक्सीजन छोडती है|
- डॉ. जुलिशस व् डॉ. ब्रुक
५. गौदुग्ध में विद्यमान ‘सेरिब्रासाईस’ मस्तिष्क और स्मरण शक्ति में सहायक स्ट्रांनटाईन , अनु विकारो का प्रति रोधक, एम्.डी.जी,आई प्रोटीन के कारण रक्त कोशिकाओं में केंसर प्रवेश नही करता
------ रोनाल्ड गौरायटे
६. शहरों से निकलने वाले कचरे पर गाय का गौबर घोल डालने पर दुर्गन्ध, कीटाणु पैदा नही होते, कचरा खाद के रूप में परवर्तित हो जाता है
.- डॉ. कांति रसेन सराफ
७.
विज्ञानिक मतानुसार गौदुग्ध में ८ प्रकार के प्रोटीन, ६ प्रकार के विटामिन, २१ प्रकार के एमिनो एसिड, ११ प्रकार के चर्बीयुक्त एसिड, २५ प्रकार के खनिज तत्व,१९ प्रकार के नाइट्रोजन,४ प्रकार के फासफोरस योगिक एवं २ प्रकार की शर्करा रहती है|
इसमें ४.९% शक्कर, ३.७% घी, ११% विभिन्न एसिड, ३.६% प्रोटीन जिसमे, युसन,ग्युकेटिन, टीरोसनी, अमोनिया,फास्फोरस आदि२१पदार्थ हैं.
८.
गौदुग्ध से कोलेस्ट्रोल नही बढ़ता|
९.
गाय के शरीर से प्रदूषण निवारक गूगल की गंध बहती है|
१०.
समस्त चतुस्पाद दुधारू प्राणियों में गाय ही ऐसी है जिसकी अंत १८० फीट लम्बी पायी जाती है जिसमे कैरोटिन बनता है जो मानव तन में दुग्ध के माध्यम से विटामिन ए तैयार करता है जो नेत्र ज्योति की रक्षा करता है |
११.
भारतीय देसी गौवंश विदेशी प्रजातियों से भिन्न देखा जा सकता है| भारतीय प्रजाति की पीठ पर गुम्ब होता है जो सूर्यकेतु नाम से भी जाना जाता है| य्ढ़ सूर्य
गोबर गौमूत्र व् बैल शक्ति द्वारा
सम्भावित उत्पादों की सूचि
|
||
Bull Power:
· Use as Prime Mover in Cottage & Small Scale units
viz
1.
Water Suction
2.
Minor Irrigation
3.
Cultivation
4.
Oil Expeller,
5.
Flour Mill
6.
Spice Mill,
7.
Fodder Cutting
8.
Thresher
9.
Sugarcane Crasher
10.
Bull Driven Tractor
11.
Pneumatic Tire
12.
Bullock Cart
13. Local & Inter District Transportation
14. Electricity Generation
Milk & Milk
Products
1.
Gee
2.
Curd
3.
Butter
4.
Butter Milk
5.
Confectioneries
6.
Sweets
7.
Cheese with different
flavor
8.
Ice Cream
9.
Vansh lochan
Panch Gavya
|
Consumer products
1.
Particle Board
2.
Fuel Briquettes
3.
Skin Doors
4.
Tiles
5.
Writing Paper
6.
Packaging material
7.
Furniture
8.
Plywood and Board
9.
Mosquito Coils
10.
Phenyl
11.
Wall Distemper
12.
Shampoo
13.
Soap
14.
Hand Wash, Latrine
& Blue powder
15.
Dhoop
16.
Gomay Aushodhi
17.
Samidha Powder
18.
Shaving Cream
19.
Face Cream
20.
Tooth paste
21.
Mercury
22.
Automotive Fuel
23.
Low smallest to
Large Scale Housing
|
Medicine & Healthcare
More than 100 formulations as per
Ayurveda can be manufactured for curing 170 + diseases including Sugar,
Heart, Stomach, Cancer, Aids
Leather & Leather
based items
1.
Shoe,
2.
Chappal,
3.
Jacket, Water Carriage,
4.
Storage bag,
5.
parts of agriculture
implements
Cow Dung-Cow Urine
1.
Organic Fertilizer
2.
Wormy compost
3.
Samadhi Khad-
4.
Sing Khad –
5.
Pest Repellant
6.
Bio Gas
7.
Electricity generation
8.
Cooking fuel
Lighting agent
|
१२.
केतु नाडी सूर्य के प्रकाश में क्रियाशील हो कर स्वर्ण पदार्थ संग्रह करती है| अत: देशी प्रजाति की गाय का दुग्ध पीलेपन का होता है| इसमें विद्यमान यह केरोटिन तत्व रोग व् विष विनाशक माना जाता है|
१३.
गाय के घी को चावल के साथ मिला कर हवंन करने पर अत्यंत महत्वपूर्ण गेसें जो जीवाणुरोधक व् वर्षा का आधार मणि जाती हैं, उत्पन्न होती हैं
जैसे- इथिलिन आक्साइड, प्रोपलिन आक्साइड, फार्मलडीहाइड आदि.
१४.
गौमूत्र में २४ रसायन व् खनिज तत्व पाए गए हैं. ताम्र, लोह, केल्शियम, फास्फोरस, कार्बोलिक एसिड, पोटास और लेक्टोस तत्व विभिन्न औसधियों, कीट नियंत्रक, प्रसाधन निर्माण का आधार बनते है
१५.
गौबर में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, आयरन, जिंक, मेंग्निज़, ताम्र, बोरोन, मोलीबीडयम आदि तत्व विभिन्न उर्वरक व् अन्य उत्पाद का आधार है
१६.
पंचगव्य गौमूत्र, गौबर, गौदुग्ध, दधि, गौघृत का मिश्रण पंचगव्य कहलाता है| पंचगव्य भारतीय औषधि विज्ञानं का आधार मन जा सकता है| इसका मानव जीवन में बहुत ही उच्च स्थान है| सैकड़ो रोगों का एकमात्र उपाय पंचगव्य माना गया है|
नंदी राष्ट्रिय ग्राम विकास योजना -आदर्श ग्राम देश के सामने
गौवंश और ग्राम, युवाशक्ति स्त्रीशक्ति का अद्भुत मेल है. भारतवर्ष को
कृषिप्रधान ग्रामो वाला देश जाना जाता है| लगभग ६ लाख ग्रामो में देश की ८२%जनता
रहती है | अत्यधिक रसायन और आधुनिक यंत्रो के उपयोग ने कृषि व्यवसाय को बहुत
खर्चिला बना दिया है | जिस दो बैलों की जोड़ी में किसान का ह्रदय निवास करता था,
जिस दो बैलो की जोड़ी के नेतृत्व में देश का स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा गया था वोह हर
कार्य से निवृत कर दिया गया है| आज पुन:
इस बैलशक्ति को स्थापित करने की आवश्यकता है| आज एक भी गाँव गौधन आधारित
नही है जबकि यह नितांत सम्भव है |इस के चिन्तन हेतु निम्नलिखित योजना आपके समक्ष
है |
गौरक्षा आयाम में कार्य करते हुए लगभग २० वर्ष हो गए और सुरक्षा, संवर्धन आर्थिक उपार्जन आदि विषयो पर भारतीय जनता पार्टी के गोवंश विकास प्रोकोस्ट के राष्ट्रीय सह संयोजक के रूप में पूर्ण देश के सामने विषय रखने का अवसर मिला था।
भारतीय जनता पार्टी की विजय यात्रा और सरकार से जन आकांक्षाएं बहुत बढ़ी हुयी है और एक के बाद एक राज्य गौरक्षा अधिनियम पारित करते जारहे हैं. आने वाले समय में एक बहुत गहन विषय देश के सामने आने वाला है यानी अगर पशु पालक को प्राणियों के आर्थिक उपयोग से नहीं अवगत कराया गया और पशुधन को ग्रमीण अर्थव्यवस्था और सेवा नही जोड़ा गया तो कृषक व् गौपालक सरकार के पशु सुरक्षा के प्रयासों के विरोध में खड़ा हो जायेगा और उस समय एक विकट प्रस्तिथी से झूझना पड़ेगा। सभी न्याय पालिकाएं इन अधिनियमों को निरस्त करने को बाध्य हो जाएँगी। केवल विधि विधान बनाना और यह सोचना कि जो मूक प्राणी इन विधि विधानों द्वारा बचाये गए, उन का पालन कृषक और ग्वाला ही करे।
इस विषय पर संघ परिवार का सोच बड़ा ही स्पष्ट रहा है यानी इन प्राणियों का और इनसे प्राप्त गोबर, गौमूत्र व् बैल शक्ति का अधिक से अधिक उपयोग।
परम पूजनीय परम सरसंघ चालक श्री सुदर्शन जी और गौऋषि माननीय श्री ओमप्रकाश जी के आदेश और मार्ग दर्शन मुझे विश्व के प्रथम गोबर पार्टिकल बोर्ड व् अन्य वस्तुएं बबनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
आज कृषि की लागत अत्यधिक बढ़ने के कारण एक भी फसल बिगड़ने पर कृषक आत्म हत्या पर मजबूर हो रहा है। ऐसे समय में उसकी पशु सम्पदा एक बड़ा सहारा बन जाती है और बिना देखे की उसे कौन खरीद रहा है वोह कसाई को बेचने को मजबूर हो जाता है।विभिन्न विधिविधानों के अनुपालन से उसका यह मार्ग अवरुध्द होने जारहा है.
इस समस्या का समाधान है अगर कृषक / ग्वाले को उसके गौधन - पशुधन से उचित आय मिलनी प्रारम्भ हो जाये। अगर
१.ग्राम की विद्द्युत,पेयजल,ईंधनआवश्यकता पशुधन से पूरी की जाये
२. रासायनिक उर्वरक के जगह प्राकृतिक खाद उपलब्ध करा दी जाय
३. ग्राम के हरपरिवार को विकल्पक रोजगार उपलब्ध करा दिया जाये
तो निसंदेह वोह अपने पशुधन को भार ना मानते हुए वर्तमान और आने वाले विधि विधानों का समर्थन करेगा और प्राणी रक्षा में सहायक होगा
केवल भाषण नहीं वरन करके दिखाना होगा -यह मानते हुए एक योजना की रूप रेखा तयार की और मैसूर जिले के हूँसुर तालुक के विभिन्न ग्रामो का भर्मण और अध्यन कर मैसूर से लगभग ७५ किलोमीटर दूर कूचविनहल्ली ग्राम को आदर्श गोवंश आधारित विकसित ग्राम बनाना तय किया।
इस ग्राम में १५० गृह, ५५० पशुधन, १०००एकड़ कृषि भूमि, लगभग १००० जनसँख्या का निवास है. लगभग ७०% गृह सौचालय रहित हैं.
भोजन बनाने के लिए पास के वन से लगभग वर्ष में ५००० मीट्रिक टन काष्ट काट कर लाया और जला दिया जाता है. पेयजल की गहन संशय से यह ग्राम जूझ रहा है। मुख्य व्यवसाय तम्बाकू की खेती है जिसको सूखने में भी हज़ारो टन लकड़ी जलादि जाती है। इस ग्राम की विद्द्युत आवश्यकता लगभग ३० किलोवाट बताई गयी है.
१. विद्द्युत उत्पादन के लिए बैल चलित विद्द्युत उत्पादनसंयंत्र .... ४ प्रति यंत्र की क्षमता ८ किलोवाट
1.
+ बिओगेस चलित विद्दुत उत्पादन संयंत्र क्षमता २५ किलोवाट कुल उपलब्धि =५५ किलोवाट
2.
अतिरिक्त जरुरत के लिए १५० घरो में सौचालय निर्माण और अपविष्ट निष्काशन को जोड़ कर पुनः: १६० घन मीटर गैस उत्पादन करना संभव होगा
3.
१६० घनमीटर बायोगैस उत्पादन संयंत्र जो ग्राम पशु से प्राप्त ४००० किलो गोबर से लगभग २२५ घन मीटर गैस पैदा करने में सक्षम होगा
4.
१५० घर गैस पाइप लाइन से जोड़ कर भोजन बनाने को गैस उपलब्ध करायी जाएगी जिसमे लगभग ७० घन मीटर गैस का उपयोग होगा
5.
२. बिओगेस संयंत्र से प्राप्त सैलरी जो लगभग ६०% आंकी गयी है को प्राकृतिक खाद बनाने में उपयोग किया जायेगा जिस से लगभग ५,००० मीट्रिक टन खाद तैयार करना लक्ष्य होगा और उर्वरक १००० एकर भूमि में कृषि के लिए उपलब्ध हो सकेगा
6.
उपरोक्त कार्यो में ग्राम में उपलब्ध जन को प्रकट कर लगभग ३० जन को रोजगार दिया जायेगा
7.
दुग्ध उत्पादन जो अभी लगभग १००-२०० लीटर प्रति दिन है उसे नस्ल सुधार के द्वारा ५०० लीटर से १००० लीटर ले जाया जा सकेगा
गौमूत्र, चर्म, गोबर आदि की उपलब्धता सुनिश्चित कर पृथमत : इस ग्राम की आवश्यकता हेतु साबुन, कीट नियंत्रक, फिनायल आदि का उत्पादन जिसमे १५० गृहो की महिला शक्ति और बेरोजगार युवा शक्ति को कार्य प्रदान किया जा सकेगा।
अनुसन्धान और
वैश्विक पेटेंट रूपी सफलताएँ
गोविज्ञानं अनुसन्धान केंद्र,नागपुर
श्री सुनीलमंसिंघका के नेतृत्व में विषद कार्य कर रहा है| उनके अनुसंधानों को
अंतरराष्ट्रिय मान्यता मिली है जैसे US patent No 6410059- for Antibiotic
Anti Fungul, Bio enhancer effect of Gomutra.
गौवंश आधारित आधारित उद्योगों का चित्रण
माननीय सांकल चंद जी बागरेचा एक विख्यात अर्थ शास्त्री और
लेखा परिक्षक के रूप में जाने जाते है उन्होने प्रश्न उठाया कि उद्योगपति इस विशाल उपलब्ध कच्चे माल को
एकत्र करने के लिए क्या करे ? वर्ष में १२० करोड़ टन गौबर और ८० करोड़ किलो लिटर
गौमूत्र एकत्र करना वास्तव में एक सरल कार्य तो नहीं है लेकिन इसे एक विस्तृत
रोजगार में अगर बदल दें तो देखिए क्या होता है |
परिषकरण इकाई : उपरोक्त
१०० संग्राहको से जुडी एक लघु उद्योग इकाई जो प्रति दिन लगभग ४०० टन गौबर और 200
किलो लिटर गौमुत्र परिष्करण की क्षमता रखे| इसका कार्य गौमूत्र का वाष्पीकरण कर,
छान कर निथार कर और विभिन्न मापकों पर परखना होगा| ऐसे ही ४०० टन गौबर प्रतिदिन को
छांटना, सुखाना, पीसना छानना और रेशा और कण अलग करना होगा
इसके लिए १० एकड़ भूमि २०० किलोवाट विद्दयुत और विभिन्न
यंत्र स्थापित करने होंगे इकाई में पूंजी की आवश्यकता एक करोड़ के लगभग की होनी
चाहिए
इस इकाई से लगभग १५० किलो लिटर गौमुत्र अर्क और ९० टन रेशा
और १४० टन महीन पावडर प्राप्त होगा| वर्ष में ३६००० टन गौबर और १८००० किलो लिटर
गौमूत्र का परिष्करण क्षमता वाली इकाई विभिन्न लघु उत्पादकों की गौबर पावडर, रेशा,
परिष्कृत – वाशपिकृत गौमूत्र अर्क की जरूरतें पूरी करने में सक्षम होगी. विभिन्न गौवंश आधारित उत्पादनों में उपरोक्त
अलग अलग कार्य में लाये जाते है जैसे कागज़,
बोर्ड, गमले, आदि में रेशा, साबुन,
खाद, आदि में गौबर पावडर ही लगता है अर्क विभिन्न रूपों में विभिन्न घरेलु
उत्पादों में पर्युक्त किया जाता है. लघु उत्पादक विभिन्न औषधियां, गृह
उत्पाद, जिनका व्यवसाय अरबो खरबों रु. प्रति वर्ष का है जिनके लिए भारत ही नही विदेशो में भी विस्तृत बाज़ार
उपलब्ध है| लेकिन इस बाज़ार में टक्कर भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों के
साथ है. गुणवत्ता इस की पृथम कसौटी है.
गोमय
(गोबर ) आधारित उत्पाद
गोवंश हमारे देश
की संस्कृति का आधार, ग्रामीण विकास- कृषि, यातायात, जल सिचाई, स्वास्थ्य, कुटीर
उद्योग का साधन है जो औच्चे लालच और षड्यंत्र में अनुपयोगी, भार कह कर कसाई को
बेचा जा रहा है. विभिन्न
चर्चाओं मे गोवंश रक्षा में मुख्य समस्या आर्थिक सवालम्बन और किस
प्रकार गोवंश और गोपालक को पालन के लिए अर्थ प्राप्ति हो का विषय चर्चित रहता था.
रक्षण के उपाय और प्रयत्नं सफल नहीं हो पा रहे थे. गाय का महिमा मंडन उसे बचाने
में सफल नहीं हो पा रहा था . एक सोच उभरा कि गोबर और गोमूत्र को उद्द्योगिक माल के
रूप में में लाया जाये और उस के उचित दाम गोपालक को मिलें तो वह गोवंश और निजी
पालन कर सकेगा और गोवंश कसाई के हाथो में जाने से बचाया जा सकेगा .
स्थापना का
आदेश दिया .इस से पूर्व देश के लगभग २० उद्योग पार्टिकल
बोर्ड बनाने में रत्त थे और आज भी हैं परन्तु गोबर का इसमें उपयोग एक कल्पना ही था
.दिपावली के पश्चात नवम्बर २००८ में की मैसूर से आकर उद्दोगिक क्षेत्र मथुरा में
गोवर्धन उद्योग की नीव रखी
गयी, विभिन्न संयंत्रों की स्थापना हुयी और एक
स्वप्न जो १६ दिसम्बर २००८ को पूजनीय स्वामी रामानंद जी और माननीय श्री ॐ प्रकाश
जी के सानिध्य और आशीर्वाद औरभा.जा.पा.गोवंश विकास परकोस्ट संयोजक श्री
राधेश्यामजी गुप्त के कर कमलों से साकार हुआ और विश्व ने प्रथम बार गोबर द्वारा
निर्मित पार्टिकल बोर्ड देखा.
गोबर द्वारा
निर्मित पार्टिकल बोर्ड यानी कास्ट का, प्लाई का
विकल्प, वृक्ष रक्षा द्वारा पर्यावरण का रक्षक, तथा उपभोक्ता के लिए अग्नि जल निरोधक, कीट, परमाणु
विकरण से सुरक्षित, सस्ता, ठंडा, विद्दयुत अवरोधक, टिकाऊ, साथ में
गोरक्षा का आयाम, उत्पाद प्रारम्भकिया गया
पृथम्त :४
फीट X ३ फीट आयतन का ८ मम से १२ मम मोटाई का
बोर्ड बनना प्रारम्भ हुआ. लगभग ३०० बोर्ड प्रति दिन यानी ३६०० वर्ग फूट और वजन में
लगभग ३६०० किलो जिसमे लगभग २,००० किलो
सूखा गोबर, १५०० किलो गन्ने की खोयी ७०० किलो रसायन
लगना प्रारम्भ हुआ. रु.२/- प्रति किलो से लगभग रु. ४,००० प्रतिदिन गोपालकों को जाने प्रारम्भ हुए.
यह ३६०० वर्ग फीट त्यार माल रु. ६/- प्रति वर्ग फूट से रु. २१,६००/- की बिक्री देने लगा. रु. ४,००० के गोबर के अलावा रु. ३,००० की गन्ने की खोयी, रु. ७,७००/- का
रसायन, रु.२,००० का
कोयला,विद्दयुत, रु.१,००० की श्रमिक लागत आदि सभी जोड़ कर लगभग रु. ४,००० प्रतिदिन का लाभ दिखने लगा.
यह तो एक
सुरुआत थी बाज़ार में बड़े आयतन यानी ८ फीट X ४ फीट की
अधिक स्वीकारिता थी और मोटाई भी १८ एम् एम् , दरवाजों के
लिए २६ एम् एम्, ३१,एम् एम्
माँगा जाता था. हमने कमर कसते हुए बड़े संयंत्र की और कदम बढाया और शीघ्र ही लगभग
रु. २.५० करोड़ की लागत से और गोवर्धन उद्योग को कंपनी का
रूप देते हुए गोवर्धन अर्गेनिक्स प. लिमिटेड में दोनों आयतनो के उत्पादन का आयोजन
किया. ३१ अक्तूबर २००९ को परम पूजनीय कर्श्नी श्री गुरुशर्नानंद जी और माननीय श्री
ॐ प्रकाश जी के आशीर्वाद और सानिध्य में, आगरा क्षेत्र
सांसद श्री राम शंकरजी कठेरिया और प्रदेश के माननीय कृषिमंत्री चोधरी लक्ष्मी
नारायण जी के कर कमलों से इस संयंत्र का सुभारम्भ हुआ
यह संयंत्र
प्रतिदिन ८ फीट X ४ फीट के 6०० यानी
लगभग 19,००० फीट और ४' X ३' के ३०० यानी
३,६०० कुल लगभग २२,००० वर्ग फीट उत्पादन क्षमता का ६ एम् एम् से
५० एम् एम् की मोटाई तक का पार्टिकल बोर्ड निर्माण कर रहा है . गोबर के सन्दर्भ
में विभिन्न आयतन, मोटाई और कडाई का संज्ञान लेते हुए लगभग
१० से १५,००० किलो प्रतिदिन सूखा गोबर कार्य में
आयेगा और यह उद्द्योग प्रतिदिन लगभग. ३०,०००/-
गोपालक को दे पायेगा. यह उद्दयम वर्ष में ५०,००० वृक्षों
को जीवनदान और १००० गोवंश को चारा देने में सक्षम होगा.
पार्टिकल
बोर्ड बनाने में गोबर को सूखा कर पिसा जाता है और छान कर
मृद्दा अलग कर दी जाती है, ऐसे ही गन्ने कि खोयी को सूखा कर पिसा
जाता हैऔर मोटा बारीक़ अलग किया जाता है. रसायन का घोल फार्मलडिहैयड, युरीया व्अन्य रसायनों को स्टील की केटल
में ताप देते हुए तैयार किया जाता है मिश्रण सयंत्र में गोबर, खोयी और रसायन को मिश्रित किया जाता है.
इस मिश्रण को बाहर निकाल कर अलुमुनियम की चादर पर बीछा कर पूर्व प्रेस में दबाया
जाता है . इस पूर्व प्रेस से मोटाई दब कर लगभग १/३ रह जाती है. इस दबे हुए को
वास्प
तापमान
नियंत्रित और हाइड्रोलिक दाब वा ल प्रेस में एक बार में १० शीट रखी जाती हैं.
पूर्ण नियंत्रित दाब और तापमान में तैयार होकर पार्टिकल बोर्ड बाहर निकलता है. इस
की चारों दिशाओं को डी डी कटिंग से ८' X ४' में काट लिया जाता है. कटिंग को
पुन: पीस लिया जाता है
इस के ऊपर
विभिन्न उपयोगों के लिए,लेमिनेट, फील्म, विनिर, सीमेंट, रंग आदि उपभोक्ता की जरुरत अनुसार
चढ़ा-लगा कर मूल्यवृद्धी के साथ बाज़ार में भेजा जाता है.
पार्टिकल
बोर्ड आज देश के हर हिस्से में काम में लिया जा रहा है और विदेश से बड़ी मात्र में
आयात हो रहा है. मुख्यत लकड़ी के सामान, ध्वनिबॉक्स, चित्रों के पीछे, खेल के सामान, दरवाजे खिड़की, विभाजन, रेल, बसों में संगीतयंत्र,विस्फोटक संग्रह, यानी जहाँ
भी कास्ट और प्लाई का उपयोग होताहै उन सभी वस्तुओं में इस के अलावा गृह निर्माण
में इस का उपयोग हो रहा है.
गोवर्धन ने गत वर्ष सरसंघचालक
परम पूजनीय सुदर्शन जी के करकमलों से गोपूजा कर पूर्ण
पार्टिकलबोर्ड निर्मित गृह रास्ट्र को अर्पण किया था.
गोवर्धन
आर्गेनिक्स(प)लि.केवल बोर्ड ही नहीं गोमूत्र अर्क, फिनायल, तरल और पावडर हस्त प्रक्षालन, हवन समिधा, मछार भगाओ
तेल आदि विभिन्न उत्पादन कर रहा है. गोवंश रक्षा में बढ़ते हुए मैसूर में गोवर्धन
का विशाल उद्योग स्थापना की और बढ़ रहा है जिस में २,००,००० किलो
सूखा किलो 3, ००,००० किलो गीला गोबर
और १०,००० लीटर गोमूत्र प्रति दिन प्रयोग में
कर प्रति दिन रु. ५.०० लाख यानी वर्ष में १५-१६ करोड़ रु. गोपालकों को
प्रदान करने की क्षमता होगी. और १० लाख वृक्षों की रक्षा करेगा.
देश मे गोवन्श अर्थ व्यवस्था ग्रामिण विकास की धुरी रहा है.
जीस दो बैलो कि जोडी के नेत्रत्व मे आजादी की लडाई लडि गयी थी, जो गोवन्श देश मे समर्धि का पर्याय माना जाता था और जिस को
कामधेनु यानी सर्व मनोकामना पुर्ण करने मे सक्छ्म माना जाता था वह गोवन्श आज
नित्यप्रति अनुपयोगी और भार कह कर असुरकछित कर कसाई के हाथो मे बेच दिया जाता है.
देश की आजादी के समय गोवन्श और जन सनसन्खया का अनुपात लगभग समान था जो घट कर आज
१:७ से नीचे जा चुका है जब की गोवन्श कि प्रजनन शक्ति कयी गुना ज्यादा है यानी ऐक
गाय अपने जीवनकाल मे १०-१२-१५ गोवन्श प्रदान करती है जबकी हम दो ऐक हमारे ऐक यानी
केवल ऐक या दो बच्चो का जन्म हो पाता है.
यह सब गोवन्श बढोत्तरी गौचर नही हो केवल कसाई की आमदनी का
साधन बन चुकी है. यह षडयन्त्र हमारे देश कि अर्थ वयवस्था, ग्रामिण विकास स्वास्थय के साथ खिलवाड कर रहा है.
विभिन्न प्रयोगो और अनुसनधानो के पश्चात बैल शक्ति गोबर, गौमुत्र के विभिन्न लाभदायक निर्माणो को तैयार किया गया. उन
मे से ऐक विशिष्ट उत्पाद पार्टिकल बोर्ड तैयार किया गया.
य़ह पार्टिकल बोर्ड क्या होता है?प्रभु ने पेडो को पैदा किया हरयाली, फ़ल, औषधि पक्षियों
के बसेरे के लिये लेकिन मानव ने उपयोग
प्रारम्भ किया काट कर मकान बनाने मे. इन्धन के रूप मे जलाने मे, और छील कर प्लाई बनाने मे. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग १५ वर्ष पुर्व ईस
पर्यावरण विनाशी उद्योग का सग्यान लिया और प्लाई के लिये पेड काटने पर प्रतिबन्ध
घोषित किया. प्लाई निर्माताओ ने दुहाई दी कि विभिन्न आरा मिलो मे लकडी काट्ते हुए
लकडी का बुरादा बचता है और उन्हे उस के उपयोग से बोर्ड बनाने कि अनुमति दी जाये.
देश मे बुरादा यानि पार्टिकल और उस से निर्मित प्लाई यानि पार्टिकल बोर्ड.
आधुनिक जीवन में अच्छे स्वास्थ्य के लिए और रात्रि में शांत
निंद्रा में मच्छर विघ्न डालते हैं और पुरे देश में इनसे बचने के लिए मच्छर भगावो
कोइल उपयोग में लायी जाती है. हर दवाई और परचून की दुकान पर यह पाई जाती है और देश
में विदेशी कंपनिया अरबो रूपए का व्यापर कर रही हैं. हमारा गोमय पूर्ण प्राकृतिक, रशायन विमुक्त, स्वास्थ्य
प्रदक, मच्छरों को दूर भगाता है. अत्ति लाभकारी घरेलु उद्योग हर घर, गाँव में प्रारम्भ कर गोवंश रक्षा में सहायक बना जा सकता
है. कुछ घरेलु ग्रामीण उद्योगों और तकनिक आपकी जानकारी हेतु :
मच्छर क्वायल
घटक :
१. गोबर के उपले का पावडर २ की ग्रा (रु. १०/-)
२.लकड़ी पावडर
२ कीग्रा (रु. १०/-)
३.वनतुलसी पावडर : ४० ग्रा (रु.
१/-)
४.मैदा लकड़ी पावडर ३००ग्रा (रु. १/५०)
५.तिल का तेल
: १५० एम् एल (रु. १५/- )
६. सेंतरोला तेल:
४० एम् एल (रु. २०/-
)
७. ग्वार गुम
(चिप्पक): ४०० एम् एल (रु.
६/-)
कुल रु. ६४/- वजन ४.९३० किलो
उपकरण:मिश्रणयंत्र १० किलो क्षमता, हस्त चालित प्रेस २ न.साइज़, छलनी, पेकिंग
आदि
विधि:सभी
पावडर मिला कर १०० नम्बर की छलनी से छानले. मिश्रण यंत्र में तेलों के साथ मिला के
आते की तरह गुंधलें, लगभग १५ ग्राम की लोई बना कर रोटी तरह बेल्लें
और प्रेस में डाई से दाब कर काट लें और सूखा कर
डिब्बे में पैक करले. कुल
लागत (लगभग) प्रति दिवस लगभग १२०० कोइल के उत्पादन में १८
किलो यानी ४ घान प्रति घान रु.६४/- यानी २५५/- डिब्बे १२० लागत १२०/- मजदूरी 2 दर १५० रु. ३००/- कुल रु.६७५/- और अनुमानित विक्रय प्रति
पेकेट रु. १५/- से रु.१८००/- यानी लाभ ११२५/- प्रतिदिन : उद्योग प्रारंभ करने के लिए अनुमानित लागत रु. १,००,०००/- स्थान २०० वर्ग फीट का
कमरा एवम कुछ खुला आँगन
स्नान
टिकिया (साबुन)
दैनिक दिनचर्या का प्रारम्भ स्नान से होता है और अगर यह रासायनयुक्त, विदेशी कम्पनिओं के उत्पाद की बजाये शुद्ध गोमय से निर्मित
स्नान टिकया से हो तो निश्चित ही भगवत आशीर्वाद प्राप्त हो. देश में अरबों खरबों
का ये व्यवसाय इतना लाभ प्रद है की सभी प्रसारण विधाओं पर खरबों रु. का खर्च कर
जनमानस को रिझाता है . यह हमारे गोवंश की आर्थिक उपलब्धता का मुख्य साधन बन सकता
है. हमने विधि में चन्दन का प्रयोग दिखाया है लेकिन यह स्थान और मांग अनुसार, गुलाब, केवड़ा, केसर, कुछ
भी हो सकता है.
घटक
१. गोबर
१२.००० किलो
रु. २५.००
२. मुल्तानी मिटटी १०.००० किलो
रु. ५०.००
२. गेरू
५००
ग्राम रु. ३.००
३. नीम पत्ती .५०० ग्राम रु.
२.००
४. बेलपत्र
५०० ग्राम
रु. ३.००
५. चन्दन चुरा .५० ग्राम
रु. १५०-००
२३.५५०
किलो रु. २३३.००
विधि : सर्व पृथम नुल्तानी मिटटी को पिस कर पावडर बना लें
और गेरू,
नीमपत्र, बेलपत्र
, व् गोबर को अच्छी तरह मिला लें. चार से पाँच दिन तक अच्छी तरह सूर्य रौशनी में सुखाएँ. चक्की में पीस कर इसे पावडर
बना लें. अब इसमें चन्दन पावडर मिलाएँ.
नीमपत्र को लगभग ३-४ लिटर पानी में उबालें और इस क्वाथ से
उपरोक्त को गीला कर आते की तरह सान लें. १60 ग्राम
की लोई बना कर साबुन के सांचे की सहायता से मन चाही शक्ल में ढालें. इस को धुप में
सूखा कर रेपर में लपेटें.
उपकरण
: चक्की (छोटी), कढाई, भट्टी, सांचे, पेकिंग लागत: लगभग
रु. १.०० लाख,
प्रतिदिन उत्पादन क्षमता १००० टिकिया.दर रु.५/- बिक्री रु.
५,०००/- लागत कच्चा माल= ११५.०० किलो रु. १,५००/-, पेकिंग
२००/-, श्रम ३ रु.४५०/-, इंधन, बिजली, २००/-
कुल रु.२३५०/- लाभ: रु. २,६५०/-
प्रतिदिन
____________________ॐ ॐ ॐ ॐ _ __________
सोंदर्य प्रसाधन (फेस पेक)
घटक
१. गोबर
१२.००० किलो रु. २५.००
२. मुल्तानी मिटटी
१०.००० किलो रु.
५०.००
२. गेरू
.५०० ग्राम रु.
३.००
३. नीम पत्ती
.५०० ग्राम
रु. २.००
४. बेलपत्र
.५०० ग्राम
रु. ३.००
५. चन्दन चुरा .१०० ग्राम
रु. ३००-००
विधि : उपरोक्त को अपना कर पावडर तैयार किया जाता है केवल
सुगंध की मात्रा बढ़ जाती है. २०० ग्राम का पेक रु.१५/- में बिक्री किया जा सकता
है . धूपबत्ती
प्रभु आराधना, शुद्धि, हवन, रोग
नाश में प्रुक्त हर सुख, दुख, शांति का साधन परम्परा अनुसार धूप बत्ती आज पेट्रोल के कचरे
से, पाशों की खाल के बुरादे से तारकोल आदि अस्वास्थ्यकर घटकों
से बनायीं ज रही है और शुद्धता का साधन आज प्रदूषण का एक उदाहरण बनगया है. गोमय से
तैयार गोवर्धन धूपबत्ती गोरक्षा सहायक, शुद्ध, रासायन विमुक्त प्रभु को प्यारी है.
घटक
१. गोबर
२.५०० किलोग्राम
२. गौघृत
५० ग्राम
३. हवन सामग्री १.००० किलोग्राम
४. चावल
२०० ग्राम
५. ककड़ी का बुरादा १.००० किलोग्राम
६. मैदा लकड़ी २५०
ग्राम
उपकरण : चक्की, डाई, सुखाने की ट्रे, सेविया, लच्छे की मशीन, पेकिंग
आदि
लागत : लगभग रु. १.०० लाख
विधि: हवन सामग्री और मैदा लकड़ी का पावडर बनाकर घृत आदि
सभी घटकों को मिला, पानी में सख्त आते की तरह गुंध ले और लच्छे की
मशीन से गुजारें. निकलती हुयी बत्ती को आवश्यक परिमाण में काट कर ट्रे में सुखाने
को रखें. सुखने के पश्चात पेक कर लें.
____________________ॐ ॐ ॐ ॐ ________________________
गोबर इंधन - समिधा- लकड़ी -हवन टिकिया (बिस्कुट)
धूप, कर्पूर, घृत, होम, प्रभु अर्पण आदि कार्यो में, किसी आधार की जरुरत होती है और यह आधार गोमय द्वारा निर्मित
टिकिया को प्रयोग में ला कर शुद्ध और सुचारू रूप में किया जा सकता है. लगभग २-३
इंच की ४ एम् एम् मोटी टिकिया से २-३ इंच गोल लम्बे डंडो का निर्माण किया जा
सकता है
इंधन का प्राकृतिक विकल्प आज गोबर और कृषि अवशेष को प्रयोग
में लाकर गृह, उद्योग, होटल, हलवाई, समसान, यानी किसी भी उपयोग में लाकर पेट्रोल, कोयले, बिजली
आदि की बचत की ज सकती है. एक प्राणी के अंतिम संस्कार में २ से ३ वृक्षों की क्षति
होती है अंत:त देश के पर्यावरण की हानि होती है. २४ टन प्रतिदिन क्षमता का ब्रिकेट संयंत्र लगभग १५.०० लाख रु. में स्थापित हो सकता
है. इसमें लगभग २०,००० किलो गोबर प्रतिदिन उपयोग में लाया जासकता
है
अत्यंत लाभप्रद उद्योग
एक वर्ष में अपनी सम्पूर्ण लागत लाभ के रूप में देने मेंसक्षम है टिकिया बनाने के लिए गोमय गोबर को समतल स्थान पर प्लास्टिक
के यपर या चिकने फर्श पर बिछा लें. छोटी कटोरी को डाई केन रूप में उपयोग कर काट
लें और सूखने दें . सुविधानुसार पेकिंग कर विक्रय पर डाले
मुक्ता पावडर
घटक कंडे की राख१० कि.ग्रा,
डोलामाइट पावडर१० कि.ग्रा, ए. ओ. एस झाग के लिए१ कि.ग्रा निम्बू गंध५०
मि.लि
विधि: गौबर के कंडे विभिन्न कार्यों में जलाए जाने के बाद इसकी राख को छान कर
डेलोमाईट पावडर मिला लें. इ.ओ.एस और सुगंध मिला कर पुन:छान कर पेक कर लें|
मूर्तियाँ
घटक :गायकागौबर१०किग्रा, गुआरगमचिप्पक,३००ग्राम, चाइनाक्ले ५०० ग्राम गौमूत्र, गौदुग्ध, गौदधि
आवश्यकतानुसार विधि: गौबर में बायिंडर और चाइना क्ले डाल कर गौमूत्र, दुग्ध और
गौद्धी से गुंध लें. मूर्ति के सांचे को गौघृत से चिकना कर इस मिश्रण को भर लें.
मूर्ति का आकार देकर धुप में सुखा लें.
पौधों हेतु गमला (फ्लावर पॉट )
घटक गाय का गौबर१० कि
ग्रा,गुआरगम चिप्पक ३०० ग्राम उपकरण : डाइ और हाथ से निर्माण गौबर और गुवारगम को
मिला कर डाइ के माध्यम से बनाते है. धुप में सुखाया जाता है यह प्राकृतिक खाद का कार्य करता है पूजन लेप
घटकगाय के गौबर का पावडर १
किलों,कपूर ५० ग्राम, हल्दी ५० ग्राम
विधि: गौमय पावडर में कपूर और हल्दी मिला कर
तैयार करें
लाल दंत मंजन
घटक गेरू१ कि.ग्रा, नमक२०० ग्राम, अजवायन सैट२५ ग्राम, कपूर २५ ग्राम पिपरमेंट५
ग्राम लोंग तेल २मी.ली,फिटकरी१० ग्राम गौबरव् गौमूत्र
विधि : १ किलोग्राम गेरू को २५० मी. ली. गौमूत्र में भिगो कर १२ घंटे सुखाएं|
इसे पीस कर छान लें| इसमें २०० ग्राम नमक घोल कर मिला लें. अजवायन सत, कपूर,
पिपरमेंट किसी शीशी में मिला कर रखेंगे तो यह तरल हो जायेगा| इस तरल और लोंग तेल
को पावडर में मिला दें. तैयार मंजन को पेक करलें . गौमय
कागज़
घटक गाय का गौबर १० कि.ग्रा.पेपरपल्प ५ कि.ग्रा.कपड़े का पल्प ५ कि.ग्रा. आवश्यक
उपकरण : १. पल्प मशीन. २. पेपर मशीन
पल्प तैयार करने के पश्चात् गौबर का मिश्रण कर कागज मशीन से कागज तैयार करें |
गौ जिवामृत
जिवामृत से एक देशी गौ से ३० एकड़ कृषि की कल्पना सम्भव है|
इसे जीरो बज़ात कृषि भी कहा जाता है.
घटक: देशी
गाय का गौबर १० किलो, गौमूत्र ५ से १० लिटर, गुड १ किलो या गन्ने का रस २ लिटर या
एक लिटर नारियल पानी, मुंग/उड़द/तूअर/चने का आटा १ या २ किलो, खेत की मेड की मिटटी १ किलो, पानी २०० लिटर
विधि : सभी
मिला कर २-३ दिन किण्वन क्रिया (फेर्मंटेशन) के लिए रखें. दिन में दो बार लकड़ी से
चलाएं| और ७ दिन के अंदर इस्तमाल करें
1.
गौमूत्र
आधारित उत्पाद गौमूत्र अर्क
घटक :
गौमूत्र यंत्र : वाश्पिकरण यंत्र – भट्टी
2.
विधि
:देशी गाय का गौमूत्र पात्र में २/३ भरें .भट्टी
पर गर्म करें | भाप को यंत्र द्वार शीतल कर अर्क रूप में परिवर्तित करें | पहले
गौमूत्र को गर्म कर अमोनिया हटा देना चाहिए| यंत्र में जमी छार को एकत्रित करते
जाएँ |
3.
ग्लास क्लीनर
घटक गौमूत्र
अर्क २ लिटर, आई. पी. ए. ५०० ग्राम, जल ८ लिटर, रंग (क्यों.एस) आवश्यकतानुसार
विधि:
गौमूत्र अर्क में आई.पी.ए व् जल मिलाते हैं. पश्चात रंग मिला कर चलाते हैं और शीशी
में पेक करते हैं |
४.सफ़ेद फिनायल
घटक गौमूत्र अर्क ७० लिटर, रोजिनयुक्त पाइन तेल१२ लिटर,गर्म
पानी२० लिटर
भट्टी पर पात्र में अर्क को गर्म कर उसमे गर्म पानी और
रोजिन युक्त पाइन तेल मिलाया जाता है| इस मिश्रण को मथा जाता है. इसमें स्वीकृत
गंध और रंग भी मिलाया जा सकता है. इस मिश्रण को बोतल में पेक कर विक्रय किया जाता
है . बड़े उपभोक्ता ड्रम में लेना पशंद करते है जो किफायती होता है और पुन: उपयोग
किया जा सकता है.
6.
नील
घटक गौमूत्र अर्क१लिटर, नीला रंग ३०० ग्राम, नानआयनिक ५००
ग्राम,
पानी ९
लिटर,सोडियम बेन्जोएट५० ग्राम|
विधि:
गौमूत्र अर्क में पानी मिला कर नान आयनिक मिलते हैं. नीला रंग घोल कर इसमें मिलाया
जाता है. इस मिश्रण में सोडियम बेन्जोएट मिला कर शीशी में भर लिया जाता है |
7.
हैण्ड
वाश
घटक गौमूत्र१
लिटर, एस.एल.इ एस ४ लिटर, सी.डी इ.ए ३०० ग्राम, सोडियम बेन्जोएट ५० ग्राम, पानी ५ लिटर, सुगंध
विधि: गौमूत्र को पानी में मिला कर एस.एल.इ.एस,सी.डी.इ.ए सोडियम बेन्जोएट,सुगंध
आदि मिला कर शीशी में भर लिया जाता है
8.
नेत्र
ज्योति
घटक गौमूत्र
१२ लिटर, गुलाब पुष्प २ कि.ग्रा, दारू हल्दी ५० ग्राम, रतन ज्योत ५० ग्राम,हरड बड़ी
५० ग्राम, बहेड़ा५०ग्राम,फिटकरी ५० ग्राम,
उपकरण: आसवन
संयंत्र
विधि: गौमूत्र में दारूहल्दी, रतनज्योत, हरडबटी व् फिटकरी
को कूट कर घोल लें. इसकी भाप वासपन यंत्र से बनाए. गुलाबपुष्प यंत्र के मुख के पास
ऐसे रखें की भाप से उसका भी अर्क आ जाए. इसका पी. एच. नियमित रखने के लिए एलोवीरा
का उपयोग किया जाता है|
9.
कर्णसुधा
घटक गौमूत्र
४ लिटर,सुदर्शनपत्र १०० ग्राम, लटजीरा २००ग्राम, नीम पत्ती १०० ग्राम, हरडबटी ५०
ग्राम, बहेड़ा ५० ग्राम, आंवला ५० ग्राम, आंवा हल्दी ५० ग्राम, मजिष्ठा ५० ग्राम,
यवक्षार २५ ग्राम, तिलतेल ४ लिटर.
विधि:गौमूत्र
में सुदर्शनपत्र, लटजीरा, नीम पत्ती का
काढ़ा बनाना होगा | शेष रह जाने पर इसे तिलतेल में मिलाना होगा | इसमें
हरडबटी,बहेड़ा, आंवला, आंवा हल्दी, मजिष्ठा, यवक्षार को महीन कूट कर डालिए और धीमी
आंच पर पकाइए| जल सूखने पर ठंडा कर पेक कर लें| घनवटी
घटक : गौमूत्र २० लिटर , अर्जुन पावडर १ किलो ‘
विधि: जो सीधा अर्क पान नही कर पाते उनके लिए राम बाण घनवटी
है| अर्क बनाते हुए बची छार या २० लिटर गौमूत्र को उबाल कर खोये की तरह बनाया जाता
है| लगभग एक किलो बनने के पश्चात् इसे उतार कर अर्जुन पावडर मिलाइए| चने के बराबर
गोली बना कर पेक कर लीजिये|
10.
शेम्पू
घटक: गौमूत्र १४ लिटर, एस.एल.इ.एस ४० लिटर, सी.डी.इ.ए. ४
लिटर, आंवला १ किलोग्राम, रीठा १ किलोग्राम, शिकाकाई १ किलोग्राम, सोडियम बेन्जोएट
५०० ग्राम.
विधि : गौमूत्र में आवला, रीठा, शिकाकाई, का काढ़ा बनाइये,
जल में एस.एल.इ.एस और सी.डी.इ.ए. मिलते हैं
सोडियम बेन्जोएट और सुगंध डाल कर एक घंटा चला कर रख दें और दुसरे दिन शीशी
में पेक करलें| सुरभि
संजीवनी (पशुओं हेतु)
घटक :
गौमूत्र घन १० किलो, अर्जुन पावडर १० किलो
उपकरण
: टिकिया या दाना मशीन
विधि
: गौमूत्र और अर्जुन पावडर को गुंध लें| ५ ग्राम
की गोली बना कर उपलों की राख में रख दें. जब यह सुख जाये तो छान कर राख को अलग कर
दें. गोलियां पेक कर लें|
11.
खुर्पक्का
(पशुओं हेतु)
घटक:
गौमूत्र १० लिटर, अर्जुन पावडर २५० ग्राम, फिटकरी ५० ग्राम, देशी
बाबुल छाल ५०० ग्राम
विधि : गौमूत्र में बाबुल छाल को कूट कर डाले और उबालें. इसमें
फिटकरी और अर्जुन पावडर को मिला लें. ५-५ ग्राम की गोली बना कर रखें | एक गोली को
आधा लिटर पानी में घोल कर मवेशी के पैर पर छिडकाव करे | १२. मरहम
घटक :
गौमूत्र घन १०० ग्राम, पेट्रोलियम जैली १किलोग्राम, सोनागेरू १०० ग्राम, मौम१००
ग्राम
विधि : जैली
को गरम कर इसमें सोनागेरू और मौम मिला लें. फिर गौमूत्र घन मिला कर शीशी में पेक
कर लें .
ऐसी सैकड़ो उपभोक्ता, उद्योग, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में
प्राकृतिक गौवंश आधारित वस्तुएं है जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की टक्कर में बनायीं
जा सकती हैं. पेकिंग, गुणवत्ता, कीमत तथा अनुसन्धान द्वारा अगर १२० करोड़ टन गौबर
और ८० करोड़ किलो लिटर गौमूत्र के छोटे अंश का भी उपयोग किया जाए तो हमारा गौधन
पुन: कामधेनु, नंदी के रूप में लाखो करोड़ का राष्ट्रीय आय में योगदान दे सकता है
और करोडो हाथों को रोजगार प्रदान कर सकता है|
गाय और स्वास्थ्य – उपचार
विभिन्न रोगों में गौदुग्ध, पंचगव्य और अन्य प्रकार से
प्रयोग द्वारा असाध्य रोगों पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है. माननीय श्री केसरीचंद
जी मेहता ने बलसाड गुजरात में विशेष चिकित्सा केंद्र स्थापित कर, केंसर जैसे
असाध्य रोग उपचार कर कितनो को जीवन प्रदान किया है |माननीय शंकरलाल जी पूर्ण देश
में हर बैठक में कृषि, वनस्पति, स्वास्थ्य में गौवंश के महत्व धाराप्रवाह वर्णन करते है | कुछ रोगों का उपचार देने का
प्रयास करता हूँ
आधाशीशी: गाय
के दूध की खीर/ मावा खाएं और पंचामृत घृत की दो दो बूंद नाक में डाले|
रतोंधी: तजा गौबर का रस निकल कर अंजन की तरह लगाएं|
पेट में कृमि:
गौदुग्ध में शहद मिला कर सेवन करे| बायवीडिंग चूर्ण गौमूत्र के साथ सेवन करें| गाय
के कंडे की राख लगभग २५ ग्राम लेकर २५० १०० एम् एल जल में मिला कर कपडे से छान
लें. ३ दिन सुबह शाम पीयें|
माथा दुखना :
गाय के दूध में सोंठ घिस कर सीर पर लेप लगाएं| ब्राह्मीघृत ५ से १० मी.ली. दिन में
दो बार सेवन करें|
पितविकार : गौघृत
सर पर मलें. भोजन उपरांत,हरड़े चूर्ण जल से सेवन करे
सांप का जहर : १० से
१०० ग्राम गौघृत पिलायें. पश्चात् गरम पानी पिलाएं उलटी, दस्त होने से विष दोष दूर
हो जाएगा |
खुजली-चरमरोग :
गौबर शरीर पर मलकर स्नान करें| गौमय मरहम का उपयोग करें|
दंत रोग :
दुर्गन्ध, कीड़ा लगने, मसुढो के दर्द आदि पर गौ लालदन्तमंजन का नियमित उपयोग करें |
जलने पर: देशी
गाय के ताजे गौबर का जले हुए स्थान पर लेप करें और धीरे धीरे ठन्डे जल से धोते
रहें| चंदनादियमक का उपयोग करें |
कफ और खांसी :
गौमूत्र का सेवन नित्य करें: गौमुत्रासव १०/१५ मी.ली. जल के साथ सेवन करें |
सुन्दर कांतिमय चेहरे के लिए : एक कप पानी मे २ चम्मच गौ दुग्ध दाल कर चेहरे पर मलें.|
अंगराज पावडर पानी में भीगा कर लेप लगाएं और १० मिनट बाद धोएं |
पीलिया रोग:
गौमूत्र में लोहभस्म को गला कर दूध केसाथ सेवन करें |
पेशाब का रुकना : नवटांक जल (वर्षा जल) में २५ मी.ली गौमूत्र डाल कर पिलाएं
तथा पुनर्नवादिअर्क सुबह शाम २ चम्मच जल से सेवन करवाएं |
मलेरिया : गौमूत्र में सेंधा नमक छान कर सेवन करें|
क्षयरोग (टीबी): गौदुग्ध का सेवन करें| बछिया के गौमूत्र का सेवन करें| गाय
को शतावरी का सेवन करा कर मिले दुग्ध का सेवन करें |मेदोहरअर्क और गौ घनवटी का
सेवन करें
बाल घने काले सुंदर करने केलिए गौमूत्र से धोएं गौशेम्पू उपयोग करें
सफ़ेद दाग :
बावची के बीज को गौमूत्र में घीस कर दाग पर शाम को लगाएं और प्रात: गौमूत्र से
धोएं|
सुन्दर संतान के लिए गर्भवती को चंडी की कटोरी में गौदधि
जमा कर सुबह शाम सेवन कराएं| प्रतिदिन खालीपेट ३० ग्राम गौमूत्र आठ तह वाले कपड़े
से छान कर दें|
गठिया : गौबर
को गर्म कर् लेप करें| गौमय तेल से मालिश करें |
कुत्ता काटने पर : गौमूत्र में कुचला मिटटी के पात्र में तीन बार भिगोएँ.
सूखने पर छोटी छोटी गोलिया बना कर जिसे काटा हो उसे २-२ गोली सुबह शाम गौदुग्ध के
साथ सेवन कराएं |
मधुमेह रोगी
को गौमूत्र अर्क सुबह शाम सेवन करना चाहिए |
गाय पर हाथ फेरने से मन शांत होता है| गौ परिक्रमा करने से
उर्जा वृधि होती है | शायद ऐसा कोई रोग नही जिसका इलाज़ गौवंश द्वारा ना हो सकता हो
|
यातायात और परिवहन का सस्ता और सुलभ साधन बैल शक्ति
लेखक को चाइना प्रवास में एक सूत्र प्राप्त हुआ था कि राष्ट्र में जो उपलब्ध है उसका उपयोग
करो. भारतवर्ष में अंधाधुंध मशीनीकरण ने आज पेट्रोल को सबसे अधिक आवश्यक बना दिया
है| आज माल परिवहन का साधन टेम्पो, ट्रक, आदि हैं जिनकी लागत लाखो में है. जो बिना
पेट्रोल दिसल के नही चल सकते, जिनको चलने में तकनिकी ज्ञान की आवश्यकता है और जो
प्रदूषण फ़ैलाने का बड़ा स्त्रोत हैं|
बैल की गति ८-१० किलोमीटर प्रति घंटा मणि जाती है और लगातार
४-५ घंटे हांका जा सकता है| बाल बियरिंग रबड़ टायर युक्त २ बैलो द्वारा चालित गाड़ी
में २००० किलो भार धोया जा सकता है | उदाहरन के लिए दिल्ली से मथुरा १४९ किलो मीटर
दुरी पर है| प्रति दिन सक्दो टन भार इधर से उधर भेजा जाता है | भेजने वाले को
ट्रांसपोर्ट कार्यालय में पृथम दिन माल देना होता है जिसको अगले दिन पहुँचाया जाता
है|
यह बिलकुल सत्य है कि बैल इतना सफ़र करने में सक्षम नही
लेकिन बैलगाड़ी तो है| यानि अगर हर ३०-३५
किलोमीटर पर बैल पलट दिए जाएँ तो लगभग ट्रक की टक्कर में भार पहुँच सकता है | इसके
लाभ गिनिये १० बैलगाड़ी दिल्ली से मथुरा और मथुरा से दिल्ली अगर लगायी जाये तो २० +
२० यानि ४० टन भार ढोया जाएगा. जिसका भाडा ७५० प्रति टन की दर से ३०,००० /- होता
है
इस परिवहन में २० गाड़ीवाहक, १०० बैल और २० बैल गाड़िया लगेगी|
एक बैलगाड़ी की लागत रु.१०-१५,०००/- यानि रु. ३,००००० /- बैल
का चारा ५०/- प्रति बैल -५,०००/- गाडीवाहक की मजदूरी २० X 3००/- यानि ६,०००/- कुल
११-१२,००० /- जबकि ४० टन भार को ढोने में २ ट्रक लागत रु. २० लाख जिसका ब्याज ही
१,०००/- रोज से ऊपर होता है डिजल खर्च
१०,००० /- चालक व्यय ४०००/- घिसावट मरम्मत का खर्च सब जोड़े तो १८,००० /- को पार कर
जाता है|
ग्रामीण रोजगार २० जन को १०० बैलो को अभयदान पर्यावरण मित्र
परिवहन, ग्राहक को किफ़ायत और उसके दरवाजे से लेना और देना संभव आदि
इसके अलवा जो ५ स्थावर बने वहां एकत्रित गोबर से बायो गेस
संयंत्र लगा कर बिजली और खाद पैदा की जा सकती है जो अतिरिक्त लाभ दे सकतीहै|
राष्ट्रिय सन्दर्भ में बृहत संख्या में गणना करे तो अरबो
रूपये की विदेशी मुद्रा बचत का यह माध्यम बन सकता है| लाखो परिवारों को रोजगार दे
सकता है | करोडो गौवंश की रक्षा कर सकता है बैलशक्ति उपयोग का यह एक सटीक उदाहरण
बन सकता है |
कहा जाता है गाय तो दूध क्षमता विकास कर बचा लेंगे लेकिन
बिना सुघड़ शक्तिशाली बैलो के गाय कहाँ से
आयेगी| गौवंश बचाना है तो बैल शक्ति को आजमाना ही होगा|
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