सोमवार, 29 अगस्त 2016

गाय और इंसान - गौशास्त्र महिमा खंड - इतिहास खंड - धर्म खंड ::लेखक : डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल B.Com(Hons) LLM, Ph.D

 डॉ.श्रीकृष्ण मित्तल की कलम से
प्रिय गौभक्त मित्रों, ॐ जय भारत, जय गौमाता
मानव सभ्यता का प्रारम्भ ही गौदोहन से हुआ कहा जाता है| सृष्टि निर्माण में सभी खाद्य, कृषि, सिचाई, तिलहन, यातायात, यानि जीवनयापन का स्रोत्र गौवंश रहा है| आपके हाथ में गौशास्त्र है जो गाय और इंसान के अटूट सम्बन्धो, अर्थ, महिमा  को बताने का प्रयास है| आज देश में गौवंश रक्षा, सम्वर्धन और गौमांस को लेकर बड़ी चर्चा चल पड़ी है|
यह प्रयास आपको विभिन्न खंडो में  गौ शब्द और महिमा, विभिन्न प्रजातियों का विवरण देगा| बौध,जैन,सिख,पारसी और मुस्लिम धर्मो में गौस्थान और और फतवे और फरमान, विभिन्न गौरक्षा प्रयासों, स्वतन्त्रता संग्राम ,संविधान सभा में चर्चा और निर्णय, विभिन्न समिति और आयोग का कथन,पंचवर्षीय योजनाओं में स्थान,राष्ट्रिय पशु आयोग की अनुशंशाए, विधि विधान और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की झांकी प्रस्तुत करेगा| गौवंश का देश के आर्थिक विकास में सम्भावित योगदान प्रस्तुत करेगा|
अर्थ खंड  में गौवंश द्वारा देश की अर्थ व्यवस्था, ग्रामीण विकास, स्त्रीशक्ति, युवाशक्ति और गाँव में नगर की सुविधा प्रदान करने की, विभिन्न गौ उत्पाद, जीवामृत द्वारा जीरो बजट खेती आदि विषय आपके समक्ष रखने का प्रयास करेगा|
देश में आज नूतन सरकार की बहुत चर्चा है| गौवंस रक्षा में इसे क्या करना चाहिए और क्या किया है इसका लेखा जोखा भी रखने का प्रयास है
आशा करता हूँ यह प्रयास आपको  गौरक्षा, सम्वर्धन और देश के आर्थिक विकास में प्रेरित कर सहायक सिद्ध हो सकेगा
इस कामना के साथ यह गौशास्त्र मै स्वर्गीय परमपूजनीय सरसंघचालक श्री के.एस. सुदर्शन जी और पिता तुल्य माननीय गौऋषि ॐप्रकाश जी को समर्पित करता हूँ.                                                                     आपका गौ सेवक
डॉ.श्रीकृष्ण मित्तल
       अनुक्रमिका


डॉ.श्रीकृष्ण मित्तलकीकलम से
संदेश
प्रस्तावना
१.      महिमा खंड                
महिमा
गाय' शब्द का अर्थ
गौपूजन
गाय देवी रूप माता
शिव का  वाहन  नंदी
गौवंश के विभिन्न प्रकार
प्रवासियों की नजर में गाय
गाय-कामधेनु
शब्दावली और परिणाम गौशाला, पिंजरापोल, प्राणीदया संस्थाएं और भा.ज.पा प्रकोष्ट
२.      इतिहास खंड
गोहत्या का प्रारम्भ
ब्रिटिश भारत में गो हत्या
स्वराज आन्दोलन
संविधान सभा में गाय
गाय की दुर्दशा
गौ प्रजाति- अंधा अनुकरण
स्वतंत्रता बाद गोवंश  संरक्षण
३.      धर्म खंड
गाय और बौद्ध धर्म
गाय और जैन धर्म



१०   
११

१३
१६
२१
२२
२४
२६
२६
२९
३०
३०
३१
३१
३४
३६
४१
२८
२९
३०
३१
३२

३३
३४
३५
३६
३७


३८
३९

४०
४१
४२
४३
४४
४५







४६
गाय और पारसी धर्म
गाय और सिख धर्म
गाय और इस्लाम
बादशाहों के फरमान
मुस्लिम शायरी में गाय –
मजहब ए इस्लाम में गाय
मुस्लिम सूफी संतो के विचार
गौ क़ुरबानी ना करने के फतवे
राष्ट्रिय मुस्लिम तंजीम
हजरत मोहम्मद(सल्ल)औरगाय
मुस्लिम राजनीति में गौ षड्यंत्र
४.निति योजना खंड
 पंचवर्षीय योजनाओं में गाय विभिन्न समितियां
 जीवजन्तु कल्याण बोर्ड
कृषि पर  राष्ट्रीय कृषि आयोग
राष्ट्रीय पशु आयोग के गौरक्षा सम्वर्धन में सुझाव

Report on  Meat export  by Sri Bhagat Singh Koshiyari MP

कसाईखानों की निरक्षण रपट
कर्णाटक गौसेवा आयोग – रपट
५. आर्थिक विकास खंड
गोवंश आधारित उद्योग
नंदी राष्ट्रिय ग्रामविकास योजना 
अनुसन्धान-वैश्विक पेटेंट
गौबर गौमूत्र आधारितउद्योग
गोमय गोबर आधारित उत्पाद
पूजन लेप, लाल दंत मंजन

४३
४६



५०
५२
५५
५३

५७

८१
८९

९९
१०५


१०९
११०
१११

११५








१२०
    गाय और इंसान : गौशास्त्र
© 













                                    

अनुक्रमिका
४७








४८
४९
५०

५१
५२
५३
५४
५५
५६
५७

५८
५९
६०
६१
६२
६३
६४
६५
६६
पार्टिकल बोर्ड उद्योग,
टिकिया )मुक्ता पावडर मूर्तियाँ पौधों हेतु गमला
मच्छर क्वायल,स्नान टिकिया (साबुन)सोंदर्य प्रसाधन (फेस पेक) धूपबत्ती गोबर इंधन समिधालकड़ी -  हवन गौमय कागज़
गौ जिवामृत
गौमूत्र आधारित उत्पाद
गौमूत्र अर्क
सफ़ेदफिनायल,नील,हैण्डवाश,
ग्लास क्लीनर नेत्र ज्योति कर्णसुधा,घनवटीशेम्पू,
पशुओं हेतु-सुरभिसंजीवनी, खुर्पक्का 
गाय और स्वास्थ्य  उपचार
यातायात का साधन बैलशक्ति
६.विधि विधान खंड
अपराध सूचि
F.I.R
कसाईखाना विरोध एक सोच
भारतीय संविधान
केन्द्रीय विधि विधान - नियम


१२१






१२३
१२४
१२७
१२८
१२९
१३१
१३६


१३७

१४१
१४४
१५६
१६१
१६९
१७१
१७२
१७३
१७४
१७६


६७
६८
६९
७०
७१

७२
७३
७४
७५
७६
७७
७८
७९
८०



Criminal Penal Code,
Indian Penal Code,
PCA ACT 1960,
Transport ofAnimals Rules,
PCA(Slaughterhouse)Rules
PCA  (SPCA) RULES
वाहन अधिनियम १९८८
वाहन (परिवर्तित ) नियम२०१५
राज्योंद्वारापरिपारितनियम
Forest Department:
गौहत्या निषेध अधिनियम
राज्यों द्वारा पारितवाहन नियम
१.      न्यायालय खंड
गौचर भूमि पर निर्णय
अंतरिम सुपर्दगी पर निर्णय
न्यायिक निर्णय सन्दर्भ
बकर ईद पर गौहत्या पर रोक
कार्य योजना
८.नूतन सरकार खंड
गौमांस विषय  
प्रधानमंत्री जी को ज्ञापन
मंत्रालयों  को सुझाव् 
भारत सरकार के बढ़ते कदम
राष्ट्रिय गोकुल मिशन
गोकुल ग्राम योजना
     काव्य
गौवंश करेपुकार,गोवंशकाप्रभाव
प्रश्नोतरी
उपंसहार


१७८
१८३
१८५
१८६
१९४


१९६
१९९

२०५
२१६
२१८
२२०
२२२

२२५
२२७ 


                                         डॉ.श्रीकृष्ण मित्तल
    ‘श्रीकुञ्ज’ १९/१ ,३सरा ब्लाक, ५वाँ मेन,
   जयलक्ष्मी पुरम, मैसूर ५७००१२
   कर्णाटक (भारत)

दूरभास: 0821 4255242(नि) 4264005-4282005 (का.)
मोबाईल 9980246400: blog: gaumata.blogspot.com
Face book :@ DR.SK Mittal Twitter: @mittalmysore
हक़: सभी अधिकार लेखक के आधिन
संस्करण : पृथम
प्रकाशक : अखिल कर्णाटक गौरक्षा संघ  (प)
           ‘श्रीकुञ्ज’ १९/१, ३सरा ब्लाक, ५वाँ मेन,
          जयलक्ष्मी पुरम, मैसूर ५७००१२ –
          कर्णाटक (भारत)

मुद्रक :     पारिजात प्रिंटर्स
       १३६८/२, बी.बी लया, के.आर मोहल्ला
        मैसूर ५७००२४  फ़ोन:०८२१-४2४५१४७
             यह पुस्तक आप डाक द्वारा भी मंगवा सकते  है
              सहयोग राशि :गौ कार्यों हेतु : रु. २००/- मात्र
सुचना
यह पुस्तक गौरक्षा. गौ संवर्धन और देश के आर्थिक उत्थान में गौवंश सहयोग हेतु प्रयास है और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस को कोई भी गौभक्त प्रयोग में ला सकता है, इसको या इसके किसी भी भाग को लेखक को सुचना देकर छाप सकता है|
१.  महिमा खंड
गौवंश का अर्थ और महिमा
त्वं यज्ञस्य त्वं माता सर्वदेवानां कारणम |
त्वं  सर्वतीर्थानां नमस्तुतेअस्तु  सदानघे |,
शशि सूर्यरूणा  यस्या ललाटे वृषभ ध्वज:|
सरस्वती हुंकारे सर्वेनागास्च कम्बले  ||
क्षुर पृष्टे गन्धर्वा  वेदाश्चत्वार एव |
मुखाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावारानि चराणि ||
“ हे निष्पापे तुम सब देवताओं की माँ,यज्ञ की कारण रूपा और सम्पूर्ण तीर्थों की तीर्थ रूपा हो. हम तुम्हे सदा नमस्कार करते हैं. तूम्हारे ललाट में चंद्रमा, सूर्य, अरूण और वर्षभध्वज शंकर विराजमान हैं. हुंकार में सरस्वती, गल कम्बल में नागगण, खुरों में गन्धर्व और चारो वेद तथा मुखाग्र में चर-अचर सम्पूर्ण तीर्थों का वास है”.
गोवंश भारतीय जीवन, संस्कृति, ईतिहास का अटूट अंग है यानि  जबसे सृष्टि की रचना हुयी तभी से गौ इतहास का भी प्रारम्भ होता है. आदिकाल में देव और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था. प्रभु ने कच्छप अवतार लेकर सुमेरु पर्वत को धारण किया और वासुकी नाग को रज्जू के तौर पर प्रयोग में लाकर मंथन किया गया जिसमे पृथम हलाहल विष की ज्वाला से तारने के लिए रत्नस्वरूपा कामधेनु का प्रागट्य हुआ जो सभी मनोकामना, संकल्प और आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम थी. कामधेनु को पालन हेतु देवताओं ने महाऋषि वशिष्ट को प्रदान किया जिन्होंने गौलोक की रचना की
सर्वसुख प्रदायनी गौ के विषय में एक और कथा आती है. जब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो ब्रह्मा जी ने मनु को सृष्टि रचना का आदेश दिया जिसके कारण हम मानव कहलाते है. मनु जिनका नाम पर्थु था उन्होंने गोमाता की स्तुति की और गोकृपा अनुसार गौदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया पर्थु मनु के नाम से यह धरा पृथ्वी कहलाई.    
मानव संरक्षण, कृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग और साथ रहा है. इसही कारण हमारे  शास्त्र वेद-पुराण गो महिमा से भरे है. रघुवंश के राजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और रामजन्म सुरभि गाय  के दुग्ध द्वारा तैयार खीर से माना गया है . कृष्ण, जो गोपाल के नाम से जाने गए ने पूर्ण यादव क्षेत्र की रक्षा गोवर्धन पर्वत उठा कर की और माखन चोर भी कहलाये.
औषधियोके स्वामी धन्वन्तरी ने गौभक्ति और गौसेवा कर आरोग्य प्रदायनी गौ दुग्ध, गौ घी, गौदधि, गौमूत्र और गौबर के मिश्रण से पंचगव्य की रचना की यहां तक ​​कि गाय (गोबर) का मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दीवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया था. शुद्ध रहने के लिए  हर  घर और मानव   शरीर पर गोमूत्र छिड़काव एक आम बात थी.
गोधन  धन के रूप में और धन के एक उपाय के रूप में माना जाता था. गोकुल यानी जहाँ १०,००० से अधिक गौवंश हो और नन्द जो की हजारों गौवंश का अधिपत्ति हो जाना जाता था. सनातन धर्म में कन्या को दुहिता का नाम दिया है यानी दुग्ध को दोहन करने वाली यानि दुहिता गाय का दान एक सबसे महान के रूप में कार्य के रूप में माना जाता था.             
गाय' शब्द का अर्थ
वेद और स्मृति में गौ"cow",  'गाय' का बड़ा व्यापक अर्थ है.  इसमें केवल गाय, बैल और बछडे ही नही बल्कि दूध, गौमूत्र और  गोबर भी शामिल है. मानव इन्द्रियों को भी गौ और गौभक्षण को इंद्री,अर्थात: काम, क्रोध, मोह, दर्शन, श्रवण, स्वाद आदि दमन का सम्बोधन दिया गया है. आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के विख्यात प्राध्यापक डॉ. मोनियार विलियम ने अपने शब्दकोश में गौ के ७२ समानांतर अर्थ दिए है कुछ इस प्रकार है 
.गौ .श्रिंगने 3.तम्चा .महा .पुरारी .सुरभि .उसरा .अर्जुनी .अग्र१०. रोहिणी ११.धेनुधेनुका १२.अमृत १३.गौधेनु १४.स्त्रिगावी १५.दुग्धि १६.पिनोघनी१७.प्रियारुपणी १८.धेनुषा १९.गोवृन्दवारा २०.गोमुतालिका २१.गोप्रकंड २२.वत्सकामा २३. वत्सला २४.वसुंधरा २५.वसुधा २६.धरित्री २७.धारिणी  २८.मेधिनी २९.वत्सिया आदि
गावो विश्वस्य मातर: गोएँ विश्व की माँ हैं
यजुर्वेद: गो:मात्रा विद्यते अर्थात: गौ अनुपमेय है
ब्रह्मांड पुराण में भगवान व्यास ने गौ-सावित्री स्तोत्र में समस्त गौवंश को साक्षात् विष्णु का रूप माना और इसके सम्पूर्ण अंगो में भगवान् केशव का वास कहा
पदम् पुराण का कथन हैगौमुख में षढढ्ग और पदक्रम सहित चारो वेद रहते है स्कन्द पूराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी  और वेद सर्व गोमय हैं. जिस घर में गौ  नही वह बन्धु शून्य है गौ को आदिकाल से पवित्र और करुणा का द्योतक माना गया है. मान्यतानुसार इस की सेवा और अर्चना से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है
गाओ विश्वश्य जगत: प्रतिष्ठा
अर्थात गाय विश्व में सबसे प्रतिष्ठित है जिसे भगवती के रूप में पूजा गया है             पश्वे तोकाय शं गवे..२०
युगे गावो मेद्यया कृशं चिद्श्रीरं चित्कुणुथा सुप्रितकम .
वेद ऋचाओं में प्रभु से गौवंश को पूर्ण सुरक्षा और दीघ्र आयु की प्रार्थना की गयी है
भद्रं ग्रहँ कृणुय भद्रवाचो ब्रहदो वय उच्च्यते सभासु”(अर्थववेद .२१.)
हे गौ तुम्हारी पवित्र ध्वनि हर एक को प्रसन्न करती है
ऐतद्रे विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपं (अर्थववेद ..1.२६ )
हे गौ तुम विश्व रूप हो
रूपं अघ्न्ये ते नम: अघ्ने ते रूपाय नम: अर्थववेद १०,१०.1)
हे अवध्या मै तुम्हे नमन करता हूँ   
हिंदुओं में धर्मग्रंथों की विशाल श्रृंखला है और ये तमाम धर्मग्रंथ बतातें हैं कि मनुष्य और जीव-जंतुओं के बीच प्राचीन काल से ही अन्योन्याश्रय संबंध रहा है। इनग्रंथों का संदेश है कि तमाम जीव-जंतुओं की रचना ईश्वर ने मनुष्यों की भलाई के लिए ही की है और गाय इन जीव-जंतुओं में सबसे श्रेष्ठ है। इसलिए सृष्टि के इस आदि धर्म में जो भी ग्रंथ मान्य हैं उन सबों में बिना अपवाद गाय की महिमा का बृहद् बखान है, जिसके केवल उदाहरण दिये जाये तो भी एक ग्रंथ बन जायेगा। वेद से ले कर पुराणों तक में और रामायण से ले कर महाभारत जैसे इतिहास ग्रंथों में गायों को अहन्या माना गया है और उसे माँ का स्थान दिया गया है। हिंदू गृन्थ  गाय की महिमा के बखान से ओत-प्रोत हैं।इसके कुछ उदाहरण हैं-
अर्थववेद में कहा गया है- मित्र ईक्षमाण आवृत आनंदः।
युज्यमानों वैश्वदेवोयुक्तः प्रजापति विर्मुक्तः सर्पम्।।
एतद्वैविश्वरुपं सर्वरुपं गोरुपम्।।
उपैनंविश्वरुपाः सर्वरुपाः पशवस्तिष्ठन्ति एवम् वेद।। (अर्थववेद)
अर्थात् -देखते समय गो मित्रदेवता है पीठ फेरते समय आनंद है। हल तथा गाड़ी में जोते जाते समय (बैल) विश्वदेव, जाने पर प्रजापति, तथा जब खुला हो तो सबकुछ बन जाता है। यही विश्वरुप अथवा सर्वरुप है, यही गोरुप है। जिसे इस विश्वरुप का यर्थाथ ज्ञान होता है, उसके पास विविध प्रकार के पशु रहतें हैं।
अर्थववेद में ही कहा गया है ब्राह्मण तथा क्षत्रिय विश्वरुप गो के नितंब है। गंधर्व पिंडलियां तथा अप्सरायें छोटी हड्डियां हैं। देवता इसके गुदा हैं,मनुष्य आंते तथा अन्य प्राणी अमाशय है। राक्षस रक्त तथा इतर मानव पैर हैं।
गाय के संबंध में एक जगह कहा गया है-
प्रत्यंग तिष्ठन् धातोदङ तिष्ठनन्रसविता।।
तृणाणि प्राप्तः सोमो राजा।।
अर्थात् पश्चिमाभिमुख खड़े होते समय गाय विधाता  उत्तराभिमुख खड़े होते समय सविता तथा घास चरते समय चंद्रमा है।
विभिन्न ग्रंथों में कहा गया है कि गाय के अंगों में ईश्वर का वास है।उदाहरणार्थ-बृहत्पराशरस्मृतिपद्मपुराण(सृष्टिखंड अथर्ववेद में गायों को संपतियों का भंडार कहा गया है-(अर्थववेद
धेनुः सदनम् रयीणम   अर्थात् गाय संपदाओें का भंडार है।
एक जगह आता है गावो विश्वस्य मातरः
अर्थात् गाय संसार की माता है।
वेदों में तो गाय को टेढ़ी आंख से देखना तथा लात मारने को भी बड़ा अपराध माना गया है-
यच्च गां पदा स्फुरति प्रत्यड़् सूर्यं मेहति।
तस्य वृश्चामि तेमूलं च्छायां करवोपरम्।। अर्थववेद 13
अर्थात् जो गाय को पैर से ठुकराता है और जो सूर्य की ओर मुँह करके मूत्रोत्सर्ग करता है मैं उस पुरुष का मूल ही काट देता हूँ संसार में फिर उसे छाया मिलनी कठिन है।
प्रभु राम के वनवास गमन के पश्चात् जब भरत जब उनसे मिलने वन में गये तो प्रभु का पहला प्रश्न भरत से यही था कि तुम्हारे राज्य में गाएं तो ठीक से है   स्कंदपुराण (आवंत्यखंड रेखाखंड अध्याय-13 ब्रह्मांडपुराण (गोसावित्रीस्त्रोत) भबिष्यपुराण (उतरपर्व बह्मवैर्वापुराण के श्रीकृष्णजन्म कांड आदि में गाय की महिमा का वर्णन है। 
गोवध का निषेध करते हुये वेद में कहा गया है-
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृत्स्य नाभिः।
प्रश्नु वोचं चिकितुषे जनायमा गामनागादितिं वधिष्ट।।
अर्थात् गो रुद्रों की माता वसुओं की पुत्री अदितिपुत्रों की बहन तथा धृतरुप अमृत का खजाना है | प्रत्येक विचारशील मनुष्य को मैनें यही कहा है कि निरपराध अवध्य गो का कोई वध करे।
शिव का  वाहन  - धर्म का अवतार नंदी
वृषभ  'संस्कृत अंग्रेजी शब्द' बैल 'के बराबर है| नंदी बैल भगवान शिव का  वाहन  है. वैदिक साहित्य में शिव  शब्द 'जनता के कल्याण' (लोक कल्याण) का पर्याय है| और  बैल लोक कल्याण कर्ता का वाहक है|हमारी कृषि और ग्रामीण परिवहन की 90% अभी भी हमारे बैलों पर निर्भर हैं| बैल इस प्रकार हमारे धर्म के अवतार हैं. वस्तुतः बैल मानव जाति का एक भाई है| 3 वर्ष की आयु के बाद बछड़ा, बछिया, और बैल, जो अपने जीवन प्रर्यंत  मानव  जाति का कार्य करता है|
प्रत्येक शिव मंदिर में हमेशा एक नंदी की प्रतिमा भगवान शिव की प्रतिमा शिव दरबार में मिल जाएगी| यही नही,भारत के राष्ट्रिय  चिन्ह में बैल को स्थान दिया गया है|कितने ही सम्प्रदायों जैसे लिंगायत सम्प्रदाय में नंदिश्वरकी आराधना की जाती है|
गौपूजन
गौ का स्थान हमारे समाज में इतना उच्च था कि वार्षिक पंचांग में गौपूजा के लिए विशेष पर्व और दिन निर्धारित कर दिए गए थे जैसे दीपवाली  से 3 दिन पृथम बछ्वारस औषधि के देव धन्वन्तरी के साथ, दीपावली से अगलेदिन बलिप्रतिपदागोवर्धन पर गौपुजन किया जाना निश्चित था. ना केवल गौ बल्कि नंदी भी पूजे जाते हैं जैसे श्रावन मॉस का अंतिम दिन पोला जिसमे बैल को सजा कर घर घर ले जाया जाता है जहाँ उनकी पूजा की जाती है गौदान सबसे पवित्र और महान माना गया है| मकर संक्रांति में गौ-नंदी की विभिन्न रूपों में पूजा अर्चना की जाती है| गौपदम व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक नित्य, गौवत्स व्द्वादशीव्रत, गौवर्धनपूजा गौपास्टमीव्रत, पयोव्रत, वैतरणी एकादशी व्रत आदि गौवंश पूजा से सम्बन्धित हैं| गृहप्रवेश, पानिगृहण, आदि संस्कार गौपूजा, गौदर्शन, गौदान से ही पूर्ण माने जाते हैं | गौदुग्ध, दधि, घृत, गौमूत्र, पंचगव्य आदि हर पूजा, हवन के अटूट अंग देखे जाते हैं |    
गाय - देवी रूप माता
वेदों और वैदिक काल में गाय को सर्वोच्च उत्पत्ति का पर्याय माना गया| गाय भूमि, गाय  देवमाता, गाय  मेघ गाय  प्राकृतिक जीवन जल, मानी गयी| गाय या गौवंश पुरातन काल में विशेष सम्पत्ति मानी गयी और युद्ध में विशेष प्राप्त सम्पत्ति मानी गयी| इसके मुकाबले में किसी और प्राणी को स्थान नहीं दिया जाता था| एक विशिष्ट अनुवेष्ण में पाया गया की जैन सम्प्रदाय ने वृध और असहाय गौवंश के लिए गृहपिंजरापोल बनाये| नन्द यानि जिसके गौकोष्ट में गायो का समूह हो| ब्रज यानि जहां एक लाख से अधिक गौवंश हो, कन्या को दुहिता कहा गया
गौवंश के विभिन्नप्रकार
हमारे लिए, 'गाय' मूल रूप से हमारे स्वदेशी नस्लों की गाय, जिसमे  कुछ निहित दिव्य और प्रमाणित  गुण है,  50 से अधिक स्वदेशी नस्लों, जिनमें से कुछ के नाम नीचे का उल्लेख कर रहे हैं
1.गीर 2. काकरेज 3. हरियाणा  4. नागौरी  5. अमृतमहल  6. हल्लीकर, 7.मलावी   8. निमरी   9. दाज्जल 10. अलाम्हादी 11. बरगुर  12. कृष्णवल्ली     13. लालसिन्धी  14. थारपारकर 15. गंगातीरी 16. राठी 17. ओंगोल 18. धन्नी  19. पंवार  20. खेरिगढ़ 21. मेवाती 22. डांगी 23. खिल्लार 24. बछौर   25. गोलो 26. सिरी कांगयम  
यह नस्लें अपने उत्तम दुग्ध, शक्ति और पर्यावरण रक्षक के रूप में पूर्ण विश्व में जानी जाती हैं.
१.      आकृतिप्रकृति गुण-दोष एवं रूप रंग के आधार पर अगर बांटे तो मैसूर की लम्बे सींगों वाली अमृतमहल, हल्लिकार, कान्ग्यम, खिल्लार, कृष्णवल्ली, बरगुर, आलमवादी आदि
२.      काठियावाड़ की लम्बे कान वाली गीर, देवानी, डांगी, मेवाती, निमाड़, आदि
३.      उत्तरी भारत की चौड़े मुख तथा मुड़े हुए सींग वाली सफेद रास, कांकरेज, मालवी,नागौरी, थारपारकर,बचौर,पंवार,केनवारिया आदि
४.      मध्य भारत की संकरे मुख और छोटे सींग वाली भगनारी. गावलाव, हरियाणवी, हांसी-हिसार, अंगोल, राठ आदि साहिवाल, धन्नी,पहाड़ी सीरी, लोहानी, आदि
यह प्रजातियां अपने दुग्ध क्षमता, गुणवता, शक्ति के लिए विश्व विख्यात है| आज ब्राजील, आस्ट्रेलिया, इस्रायल और योरप के कितने ही देशों में इन को अर्थ व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. गिन्नी विश्व रिकार्ड में गीर और अंगोल को शामिल किया गया है|
विदेशी प्रवासियों की नजर में गाय 
माक्रोपोलो में भारत आया और लिखा कि यहाँ हाथी के समान नंदी जिन की पीठ पर व्यापारी माल लाद कर लेजाया जाता है घरो में गोबर से घर लीपा जाता है और उस पर बैठ कर प्रभु आराधना होती है
में रहा तथा मुगल दरबार को नजदीक से उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हिन्दुस्तान में गोवध मनुष्य के वध के समान दण्डनीय था।उसने तत्कालीन बादशाहों के भोज्य पदार्थों की सूची दी है जिसमें कहीं भी गो मांस का उल्लेख नही है।
ईटालियन यात्री पीटर डिलाब्रेल ने 1963 में लिखा है कि खम्बात में गो बछड़े और बैल मारने की सख्त मनाही थी| कोई मुसलमान भी यदि गोहत्या करता तो उसे मृत्युदण्ड जैसा कठोर दण्ड मिलता था।
एक अन्य यूरोपीय टेवनियर लिखता है कि मुगल काल में व्यापारी माल लश्कर की सामग्री ढोने का कार्य बैलों से किया जाता था इसके लिए बंजारा जमात बहुत महत्वपूर्ण थी उनके पास दक्षिण भारत की अमृतमहल महाराष्ट्र की जैवारी (खिलार) काठीयावाड़ की तलवड़ा बुंदेलखण्ड की गोरना इत्यादि नस्लों के बैल थे ये बैल रोज 50-60 कि.मी. पीठ पर माल लेकर चलते थे।
कहा जाता है कि विदेशीयात्री भारत से  कामधेनु और कल्पतरु यानी गाय और गन्ना लेकर गया था जिस से योरप में समृधि बढ़ी और “सोने की चिड़िया” भारत लुट गया | 
गाय कामधेनु
विकराल राष्ट्रिय समस्याओं का परिहार गौवंश है| माननीय शंकरलाल जी जी के शब्दों में भारत के विकास और सम्पन्न भारत के स्वप्न को यह कामधेनु ही पूर्ण कर सकती है यानि :


रोग मुक्त भारत,
कर्जमुक्त भारत,
अपराध मुक्त भारत,
प्रदूषण मुक्त भारत,
कुपोषण मुक्त भारत,
अन्नयुक्त भारत,
उर्जा उक्त भारत,
रोजगारमय भारत,
स्वालम्बी भारत
सम्पन्न-भारत


संकल्प पूरा करने में गौवंश सक्षम है इसलिए इसकी रक्षा करनी होगी| जल, जमीन, जंगल, जीवात्मा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और संस्कार की रक्षा करनी हो तो पृथम गौवंश को बचाना होगा
अंग्रेजी में इसे COW MOTHER कहा जाता है इसमें एक एक अक्षर अपने में महिमा संजोये हुए है| माननीय श्री राधेश्याम गुप्ता जी के शब्दों में देखिये :-
C – Capital Formation    सम्पति प्रदायनी  
O Organic farming      प्राकृतिक जीरो बजट खेती
W – Weather, Wealth     मौसम नियंत्रक, सम्पति
M Money, Milk, Medicine,पैसा, दुग्धशाला, माँ 
O- -- Organic Manure      प्राकृतिक खाद का खजाना
T-  Trade – Transport      व्यापार,उद्योग,परिवहन
H- Health                 स्वास्थ्य प्रदायक, सर्व रोगनिवारक.
E-EnergyEconomy,Ecologyशक्ति,अर्थव्यवस्था,पृदूषणनिवारक
R - Rural Development     ग्राम विकास की धुरी
गौशाला, पिंजरापोल, प्राणीदया संस्थाएं और भा.ज.पा प्रकोष्ट
जबसे मानवता का प्रारम्भ हुआ प्रानिदया और इस संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ| राज्यों का विषय होने के कारण कोई प्रामाणिक आंकड़े तो नही है परन्तु भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के साथ आज ३२०० संस्था पंजीकृत हैं जिनमे १५०० से अधिक गौशालाएं हैं. जिन राज्यों में गौसेवा आयोग बने और साकारी अनुदान मिले वहां तो गौशालाओं की बाढ़ आ गयी| मध्यप्रदेश गौसेवा योग के अध्यक्ष श्री शिवजी चौबे का कथन की उनके यहाँ तो चार मंजिल पर भी गौशालाएं पकड़ी गयी, सत्य स्थापित करता है| अनुमानत: देश में १५,००० के आसपास विभिन्न नामों में गौशालाएं कार्यरत  हैं जिनमे ५० से ५००० तक यानी २०-२५ लाख कुल गौ,बैल, भेंस बछड़े, कटड़े आदि  भी प्राणियों का पालन होता है | इन प्राणीदया संस्थाओं में मुख्यत: गुजराती, मारवाड़ी, जैन, अग्रवाल, ब्राह्मण अहिंसक समाज का वार्षिक अनुदान १५०० से २००० करोड़ के बीच में आंका जा सकता है| विशाल नगरीकरण के कारण शहरो में गौशालाएं और गौपालन समाप्त प्राय: है जबकि ६ लाख ग्रामों के इस देश में हर गाव, हर तहसील, हर जिले में गौशाला की आवश्यकता है
मुझे देश की विभिन्न प्राणीसंस्थाओं को देखने का अवसर मिला है| नागपुर देवलापार, कानपूर, कलकत्ता, गौहाटी, जयपुर, हिसार,  बवाना दिल्ली,मथुरा की महाजनी,अहमदाबादकीस्वामीनारायण,बंसीगोपालआदि गौशालाएं गौबरगौमूत्र से वस्तु-उत्पादन, नस्ल सुधार आदि कार्यो में रतहै|
१९३८ से कार्यरत दक्षिण भारत की विशालतम संस्था ४००० से अधिक प्राणियों का जीवनयापन कर रही है| मै मैसूर पिंजरापोल में गत २० वर्षो से सेवा दे रहा हूँ|आज ३०० किलोमीटर क्षेत्र में कहीं भी प्राणी पुलिस द्वारा बचाए जाते हैं तो उन्हें विश्वास है कि मैसूर पिंजरापोल इन्हें सम्भालेगी, अदालत में केस लड़ेगी|
राजनीति में जनकल्याण कार्यों का मुख्य समावेश होता है| इस तथ्य को स्वीकार कर भा.ज.पा ने गौसेवा आयोगों की स्थापना की और केंद्र में अध्यक्ष श्री राजनाथसिंह जी ने सभी राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ते हुए भा.ज.पा गौवंश विकास प्रकोष्ट की २००८ में माननीय श्री राधेश्याम गुप्त जी को संयोजक मनोनित करते हुए रचना की और माननीय नितिन गडकरी जी ने कृषि, ग्रामीण स्वालंबन, महिला शक्ति, युवा रोजगार आदि कार्यो को प्रकोष्ट माध्यम से को बढ़ाने की प्रेरणा दी|
मुझे राष्ट्रिय सह संयोजक के नाते पूर्ण देश में कार्य का और प्रकोष्ट विस्तार का अवसर मिला| आज अधिकतर राज्यों में प्रकोष्ट गौवंश, गौशालाओं, गौभक्तों की आवाज बन चुका है |  
अनुचित शब्दावली और परिणाम
Cattle कह कर गौवंश कहा जाये :गाय और गौवंश को अंग्रेजी में Cow & its progeny कहा गया है. भारतीय संविधान में भी इन शब्दों का प्रयोग  किया गया है लेकिन ना जाने कब, किस साजिश में इसे पशु, मवेशी Cattle कहा जाने लगा| आज पृथम इस में सुधार की आवश्यकता है |
बीफ शब्द में से भैंस आदि के मांस को अलग करा जाये गौमांस यानि BEEF जिसे प्रसिद्ध Oxford शब्दकोश में भी flesh of a cow, bull, or ox, used as food " यानि गाय या बैल से मिला भोज्य मांस | ना जाने किस षड्यंत्र में इस में भैंस का नाम जोड़ दिया गया जबकि उसे भैंस मांस के रूप में प्रचारित किया जाना चाहिए |
बैलशक्ति : अश्व अपनी गति के लिए पहिचाना जाता है ना कि शक्ति के लिए और गति कार्यो के आलावा और किसी कार्य में उपयोग में नही आता है जबकि बैल अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है फिर भी शब्द अश्वशक्ति को प्रचारित किया जाता है| इसे बैल शक्ति जो की अश्व से गुना से भी ज्यादा आंकी गयी है के रूप में लिखा जाना चाहिए
गौवंश को अनुपयोगी कहना सही नही,यह तो सर्वकार्य प्रदायिनि कामधेनु है|
राष्ट्रिय झंडा, राष्ट्रिय गान, राष्ट्रिय चिन्ह का दुरूपयोग, अपमान जघन्य अपराधों की श्रेणी में आता है | और बैल को राष्ट्रिय चिन्ह में स्थान प्राप्त है | परन्तु देश की स्वंत्रता के पश्चात् इस विषय पर संज्ञान लिया नही गया है और बैलों सांडो बछड़ो का निर्मम क्रूर यातायात और कत्ल पुरे देश में पैसे के लालच में किया जा रहा है | परिणाम कृषक की आत्महत्या, कृषि लागत में असहनीय वृधि, पर्यावरण क्षरण आदि दृष्टी गोचर है|







२.  इतिहास खंड
          भारत में गोहत्या का प्रारम्भ
एक बड़ा प्रश्न है कि क्या भारतवर्ष में आर्यों द्वारा आदि काल में गौमांस खाया जाता था| बहुत से प्रश्न खड़े किये जाते हैं जैसे वेदों में गौभक्षण लिखा है| कुछ ग्रंथो में गौभक्षण शब्द का प्रयोग हुआ है जिसे आधुनिक इतिहास शौधकर्ता पुरातनभारत में गौमांस भक्षण से जोड़ते हैं| जिसे अपभ्रंश के रूप में ही स्वीकार किया जा सकता है| वास्तव में गौ का एक अर्थ इन्द्रियां भी है और गौभक्षण अर्थात काम क्रोध, स्वाद, वासना,आलस्य आदि यानि इन्द्रियों केदमन के लिए लिखागया लगता है|  भारतीय संस्कृति में तो गौवंशपालन, सुरक्षा, दान, आदि के आख्यान भरे पड़े हैं| समुद्र मंथन में रत्न के रूप में कामधेनु-गौ प्रागट्य, रघुवंश के राजा दिलीप, द्वापर युग में गोपाल कृष्ण, आदि कितने ही उदाहरण हैं| रामायण का प्रारम्भ ही गौमांस भोजन में होने की आकाशवाणी से हुआ था जिसमे केवल गौमांस की सुचना से राजा प्रतापभानु को रावण बनना पड़ा था|
कहा जाता है कि महाभारत में गोहत्या की इजाजत दी गई है जबकि महाभारत के आश्वमेधिकपर्व बैश्णव धर्मपर्व के 12वें अध्याय में गाय की महिमा के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-राजन्, जिस समय अग्निहोत्री ब्राह्मण को कपिला  गौ दान में दी जाती है उस समय उसके सींगों के अग्रभाग में बिष्णु तथा इंद्र वास करतें हैं। सींगों के जड़ में चंद्रमा तथा व्रजधारी इंद्र रहतें हैं। सींगों के बीच में ब्रह्मा तथा ललाट में शिव का निवास होता है।इसी तरह आगे गाय के प्रत्येक अंगों में विभिन्न देवी-देवताओं के वास के बारे में बताया गया है।
गाय और गौवंश तो शुरू से हमारे यहाँ अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी  गयी  है उसके वध की इजाजत कैसे दी जा सकती है? महर्षि च्यवन ने अपने शरीर का मूल्य राजा नहुष के साम्राज्य को नहीं वरन् एक गाय को माना था। नंदिनी गाय की रक्षा में प्रभु श्रीराम के पूर्वज राजा दिलीप अपने प्राण देने को तैयार हो गये थे। महर्षि जमदग्नि तथा ऋषि वशिष्ठ ने गो रक्षा के लिये प्राणों की बाजी लगा दी थी। श्रीकृष्ण को तो गाय पालने के कारण ही गोपाल कहा गया है।
उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि हिंदू धर्मग्रंथों में गोहत्या जैसे धृणित कर्मकी इजाजत नहीं दी गई है। जिन लोगों ने भी हिंदू ग्रंथों में गोहत्या तथा गोमांस का वर्णन आना बताया है वो इन ग्रंथों के श्लोकों की गलत व्याख्या करतें हैं।
गोरक्षा की राह में सबसे बड़ी बाधा ऐसी मानसिकता के लोग हैं।
वेदों केप्रख्यात विद्वानव अतिप्रसिद्ध व्याख्याकारमहर्षि दयानंद सरस्वती ने गोमेध शब्द की व्याख्या करते हुये अपने गंथ सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है, ‘‘जो कोई भी ब्राह्मण ग्रंथों में प्रयुक्त अश्वमेध, गोमेध, नरमेध आदि शब्दों का अर्थ घोडें, गाय आदि को मारकर होम करना बतातें हैं  उन्हें इसकी जानकारी नही है। वेदों में कहीं भी गोहत्या की इजाजत नहीं हैं केवल वाममार्गी ग्रथों में ऐसा लिखा है। अग्नि में घी  आदि का होम करना, अश्वमेध, इंद्रियां, किरण, पृथ्वी, आदि को पवित्र करना गोमेध,  तथा जब मनुष्य मरजाये तो विधिपूर्वक उसके शरीरदाह करना नरमेध है।
ये भी है कि वैदिक काल में मनुष्य पशुओं पर बहुत अधिक निर्भर रहा करते थे। यही कारण है कि वेदों में बहुत सारे पशुओं का उल्लेख हुआ है।
वैदिक यज्ञों के संपन्न करने में भी कई प्रकार के पशुओं की आवश्यकता होती थी। यथा घोड़े का उपयोग अश्वमेध यज्ञ में तथा रथों को खींचने आदि के कामों में किया जाता था। सुअर का उपयोग सफाई कार्यों में होता था वहीं बैल हल तथा गाड़ी को खींचने में काम आते थे| कुता रखवाली का काम करता था। इसी तरह विभिन्न पशुओं का याज्ञिक कार्यों में कई तरह का उपयोग था और इन सारे पशुओं में गाय का स्थान सर्वोपरि था क्योंकि गाय का घी, गोदुग्ध, दही, गोबर इत्यादि का व्यापक प्रयोग यज्ञादि कार्यों में, हिंदू धार्मिक संस्कारों में होता रहा है।
यज्ञ के दौरान यज्ञकुंड के आसपास गायें बांध दी जाती थी ताकि आवश्कता पड़ने पर तुरंत ही ताजा दूध निकाला जा सके या गोबर प्राप्त किया जा सके।
बांधने का दूसरा प्रयोजन ये भी था कि यजमान यज्ञ के पश्चात् याज्ञिकों को दक्षिणा में गायें दिया करते थे क्योंकि उस समय लोग पशु को भी धन ही मानते थे। अतः दक्षिणा प्रसंगों में गौदान, अश्वदान, अजादान आदि शब्द सामान्य रुप से प्रचलन में थे। इसी को अश्वालंभ, गवालंभ आदि भी कहा जाता था। इसी प्रसंग में गोमेघयज्ञ आता है।
पारसी ग्रंथ जंदावेस्ता, अथर्ववेद से काफी हद तक मिलता जुलता है और इसे एक तरह से अर्थववेद का पारसी भाषा में रुपांतरण ही समझा जाता है। इसके कई श्लोकों और अथर्ववेद के मंत्रों में काफी समानताएं है। इस ग्रंथ के अध्ययन के आधार पर वेदों के ऊपर शोध करने वाले विद्वान डा0 मार्टिन हाग कहतें हैं कि गोमेध का अर्थ गोवध नहीं वरन् इसका अर्थ मिट्टी को उर्वरा बनाकर वनस्पति उगने योग्य कर देना है।    
जंद भाषा मे गोमेध का अपभ्रंश गोमेज है।जिसका यही अर्थ है।      हाग लिखतें हैं कि पारसी मत में खेती करना धर्म समझा जाता है। इस कारण कृषिधर्म से संबंध रखने वाले प्रत्येक क्रियाकलाप धर्मकार्य ही समझा जाता है।
अतः कृषिधर्म से संबंध रखने वाले समस्त क्रियाकलाप का नाम गोमेज है। महर्षि दयानंद के अनुसार शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है अन्नं हि गो अर्थात अन्न का नाम गौ है वहीं मेध शब्द मेधा व मेधावी अर्थ में आता है। इसका अंगेजी अनुवाद कल्चर है। कल्चर शब्द कृषि के लिये ही आता है।अतःभूमि को अन्न उगाने योग्य करने कोही गोमेघ कहा गया।
अव्वल तो ये कि हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी ऐसा वर्णन नहीं है कि हिंदुओं में गोमांस का चलन था और एक क्षण के लिये यह मान भी लिया जाये कि ऐसा था भी तो भी क्या यह हिंदुओं के बौद्धिक विकास का घोतक नहीं है कि आज वह इस कृत्य को पापकर्म मानता है और हर तरह से बहुउपयोगी गाय के प्रति श्रद्धा भाव रखता है?
अगर हमारे पूर्वजों के समय कुछ सामाजिक कुरीतियां थी भी तो उसका निवारण करना क्या हमारी बुद्धि के उत्कृष्टता का परिणाम नहीं माना जाना चाहिये महज इसलिये गाय को काट के खाया जाए कि ऐसा किसी धर्मग्रंथ में लिखा है तो यह दलील भी स्वीकार्य नहीं है।
हम अपनी माँ के साथ गाय का दूध भी पीकर पलते है। अपनी सगी माँ का दूध तो दो-ढ़ाई साल की उम्र में छूट जाता है पर गौमाता का दूध सारी उम्र नहीं छूटता।
गाय जैसा बहुउपयोगी जीव तो कोई भी नहीं है। गाय धरती पर की अकेली जीव है जिससे प्राप्त होने वाली कोई भी चीज बेकार नहीं है।
उपरोक्त विवरण अनुसार यह भी स्पष्ट है की इस्लाम परम्परा में भी गौमांस का वर्णन कदाचित नही पाया जाता था क्योंकि भारत में पहली बार 1000 ई. के आसपास जब विभिन्न इस्लामी आक्रमणकारी  तुर्की, ईरान (फारस), अरब और अफगानिस्तान  से आये  और वे इस्लामी परंपराओं के अनुसार. विशेष अवसरों पर वे ऊंट और बकरी और भेड़ बलिदान करते थे|
हालांकि, मध्य और पश्चिम एशिया के  इस्लामी शासक, गोमांस खाने के आदी नही  थे, उन्होंने भारत में आने के पश्चात् गाय के वध को और गायों की क़ुरबानी, विशेष रूप से बकरी ईद के अवसर पर शुरू कियालगता है. भारतवर्ष में गौहत्या का प्रारम्भ अंग्रेजो के पदार्पण के साथ हुआ| वोह ठन्डे क्षेत्र से आते थे जहां गौमांस और सुवर मांस उनका आहार था| यहाँ आने पर उन्हें कसाई प्रारम्भ में इंग्लेंड सेही लाने पड़े थे|                     
ब्रिटिश भारत में गोहत्या और विरोध
2000 से अधिक वर्षों से , यूरोप गाय का मांस का एक प्रमुख उपभोक्ता है  19 वीं सदी के प्रारंभिक भाग में, भारत में ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ, एक नई स्थिति गोरों के आने से, जो गोमांस खाने के अभ्यस्त थे उत्त्पन्न हुयी. लेखक"N.G. चेरन्यस्विसकी ने उपन्यास (अंग्रेजी संस्करण विंटेज 1961) में  लिखा  रूसी लोगों को विश्वास है कि गोमांस मनुष्य को महान शक्ति और सहनशक्ति देता है| स्वाभाविक रूप से, इसलिए गोरों ने भारत में  19 वीं सदी में भारत के विभिन्न भागों में गौहत्या को शुरू किया|  और पश्चिमी तर्ज पर भारत के विभिन्न भागों में वधघरों की एक बड़ी संख्या विशेषत:  ब्रिटिश सेनाओं की  तीन कमान  (बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी में) बनाये गये | इनमे कसायिओं  को बड़ी संख्या में  रखा जाना था | हिंदुओं ने इस काम को मना कर दिया इस लिए परिवर्तित भारतीय ईसाइयों और मुसलमानों कसाई को गायों के वध के लिए उपयोग किया गया.
हरियाणा के  लाला हरदेव सहाय ने अपनी जीवनी में  एक अनुमान दिया  कि किसी एक वर्ष में इस्लामी शासन के दौरान मारे गए गायों की अधिकतम संख्या 20,000 गायों से ज्यादा नही थी . जबकि राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी के  1917 में मुजफ्फरपुर में दिए गए भाषण में 30,000 प्रतिदिन  गौबध कहा  ब्रिटिश (CMMG 14, पृष्ठ 80) (सालाना 1 करोड़ 10 लाख)यह  समय था जब  ब्रिटिश ने  भारतीय गायों की निंदा शुरू कर दी व प्रचार किया की भारत में अंधविश्वासी लोग जिनका जानवर, नदियों, पेड़ों और पौधों भूमि में एक अंधविश्वास था, और भारतीय कमजोर और गंदे मैले  थे, और यहां तक ​​कि उनके पशु  कमजोर नस्लों के और अर्थव्यवस्था पर भार थे|
महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने , अपने उपन्यास गोदान  " में इस भावना को प्रगट किया , जब उन्होंने  अपने पात्रों में से एक किसान द्वारा  एक पश्चिमी नस्ल की गाय की खरीद की वकालत की | कृषि पर रॉयल आयोग की 1928 की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय भारतीय गाय नस्लों को  कमजोर और बेकार बताया और इस प्रकार इस देश में उन्होंने विदेशी नस्लों की आमद को शुरू कर दिया|
१८०० ई में  देश में  ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों की संख्या  20,000 के आसपास थी 1856 ई में  यह संख्या 45,000 के आसपास हो गयी थीऔर1858 के अंत तक (विद्रोह) स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के बाद यह संख्या एक लाख से अधिक हुई,. ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय नागरिकों और सेनाकर्मियों सहित लोगोंकी कुल संख्या 1800-1900 के बीच करीब 3 से 5 लाख थी.
इस का प्रमुख भाग के रूप में उत्तरी भारत और उनके परिवारों में तैनात था.सेना कर्मियों,में वृद्धि से गाय की हत्या और मांस की खपत बढ़  गयी  उत्तरी भारत के कई हिस्सों में यह चारगुना होगयी थी
सिपाही मंगल पांडे, ने , मुंह से गोमांस लिपित कारतूस खोलने के लिए मजबूर .करने वाले एक संकेत के बाद अपने ब्रिटिश कमांडर को गोली मार दी, जिसे आजादी के पृथम संग्राम का नाम दिया गया था|  
१८७०-७१ में नामधारी सिखों ने  एक गाय संरक्षण क्रांति, जिसमें वे अपने जीवन को, गाय की सुरक्षा के लिए त्याग करना, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया.इसे  कूका क्रांति के रूप में जाना जाता है|
सद्गुरु रामसिंह जी के अनुयायिओं ने अमृतसर के कसाईखाने में बंधी गायों को मुक्त किया और विरोध करने वालों के सर काट दिए और हँसते हरी भजन करते फासी पर चढ़ गये|
मलेरकोटला पंजाब १४० सिख गौभक्त कसाईखाने में पहुँच गये और गौरक्षा में सफल रहे| इनमे से ८० वीरों को बिना मुक़दमा चलाये ही  तोपों से उदा दिया गया था|
इन सब के प्रेरक सद्गुरु रामसिंहजी को अंग्रेज शासन ने पकड़ कर रंगून भेज दिया जहां उन्हें फासी दे दी गयी थी|
१९१८ में हरिद्वार के निकट कटारपुर के मुसलमान थानेदार ने बकर ईद पर गाय क़ुरबानी की घोषणा की काटने के लिए जाती गायों के जलूस को हनुमान मन्दिर के महंत रामपुर के नेतृत्व में बलिदानी गौभक्तो  ने रोक लिया| भीषण संघर्ष किया और गौरक्षा में सफल हुए| बाद में दमन कार्यवाही में १३५ गौभक्तों को पकड़ काले पानी का दंड दिया गया तथा ४ गौभक्तों को फंसी पर चढ़ा दिया गया|
कुछ साल बाद में, स्वामी दयानंद सरस्वती ने अंग्रेजों के  गोहत्या प्रोत्साहन के विरोध में आह्वान किया और गोसंवर्धन सभा जो गाय की हत्या के मुद्दे पर देश,के जन संगठन का सुझाव दिया.
1880-1894 वर्षों के दौरान उत्तर भारत भर में एक बहुत ही गहन और व्यापक गौरक्षण आंदोलन प्रारंभ किया  जिसमे सब  पंजाब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक उत्तरी और मध्य भारत के गैर हिंदुओं सहित करोड़ो ने  इस आंदोलन में सहभाग किया. इस से साधू संन्यासी  जुड़े  और  1893-1880 अवधिमें  गाय कसाई के चंगुल से बचाया रखने के लिए सैकड़ों गौशाला खोलीगयी थी 
1891 में, महात्मा गांधी ने इस  गौरक्षा आंदोलन की सराहना की और लिखा की विरोधी अंग्रेजों द्वारा भारत में  महान गौहत्या विरोधी आंदोलन की हत्या की.प्रस्तुत है;- 
The Great Anti kine-killing Movement against the killing of the cow bythe British in India  (1880 – 1894)And certainly the milking of the cow, which, by the way, has been the subject of painting and poetry, cannot shock the most delicate feeling as would the slaughtering of her. It may be worth mentioning en passant that the cow is an object of worship among the Hindus, and a movement set on foot to prevent the cow from being shipped off for the purpose of slaughter is progressing rapidly.
M.K. GANDHI ON THE COW: 189(also in Collected Works of MahatmaGandhi (CWMG) Vol. 1, p.19 fromTHE VEGETARIAN, LONDON, 7.2.1891
बिर्टेन का इस आन्दोलन के प्रति विरोध जग जाहिर हुआ जब महारानी विक्टोरिया ने व्यासराय लेंसडाउन को. इस आन्दोलन की चरम सीमा पर .१२.१८९३ के पत्र द्वारा कहा की   " The Queen greatly admired the Viceroy's speech on the Cow-killing agitation. While she quite agrees in the necessity of perfect fairness, she thinks the Muhammadans do require more protection than Hindus, and they are decidedly by far the more loyal. Though the Muhammadan's cow-killing is made the pretext for the agitation, it is, in fact, directed against us, who kill far more cows for our army, than the Muhammadans.”
यह तथ्य था कि उपरोक्त आन्दोलन ,००,००० से अधिक अंगरेज सेनिको और अन्य गौरों  की आबादी को दैनिक गौमांस  की आपूर्त्ति के लिए कत्ल किये जाने वाले गोवंश की रक्षा के लिए था लेकिन मुस्लिमो को लाड प्यार और हिन्दुओं को सबक सिखाने की निति का निर्देश का पालन किया गया और हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आड़ में इसे कुचल दिया गया| इसका उल्लेख देश के महत्वपूर्ण समाचारपत्रों में प्रमुखता से हुआ. सर्वोदय नेता माननीय धर्मपाल जी ने इसका लेखाजोखा कई बार दिया विभिन्न पत्रों कीसुर्खिया जैसे   1. सुलभ दैनिक 11/ 2. 26/  3. / 4. 7/95. १२/   6. चंद्रिका दैनिक समाचार 17/ , २१/,२२/ 7. 21/  8. 22/ 9. 7/  10./ 11. सहचर  /            12. 30 / 13. ढाका गजट  १७/  14 बंग निवासी ११/  15. सुलभ सूचक २१/ 16. कर्णाटक पत्र ३१/ 17. राज्य, भक्त 8 / 18. कल्पतरु २०/ 19. महारत 27/20.हिन्दुस्तानी (लखनऊ)12/21.सितारा--हिंद(मुरादाबाद) 22/722.सुभचिन्त्लोक 12/८23.शुभ(Jubhulpore) Chintak 19/8 24.२६/८ 25. सुबोध सिंघु (खंडवा) ३०/८ 26. मौजी  नेर्बुद्दा १/९/1944  आदि में, जबकि ब्रिटिश अभी भी भारत में सत्ता में थेसरकार द्वारा  3 वर्ष से कम आयु के सभी पशुओं के वध, नरपशु के बीच 3 और 10 साल, मादा पशु उम्र के 3 और 10 साल के बीच जो दूध का उत्पादन करने में सक्षम हैं सभी गायों जो गर्भवती हैं,पशुओं के वध पर प्रतिबंध  किया गया था |
जबकि कांग्रेस की एक समिति ने कहा कि मरे हुए के मुकाबले में  कत्ल किये गये गोवंश से ज्यादा  विदेशी मुद्रा की प्रप्ति होती है जो कि गौरक्षा के विपरित मत था. ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण सिफारिशों के अनुसरण के रूप में के रूप में 1950 में भारत सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया था कि मृत गाय की त्वचा बलि गायों की त्वचा की तुलना में कम मूल्य देती है  और राज्य सरकारों,को गौवध पर पूर्ण रोक नहीं शुरू करने की सलाह दी.
स्वराज आन्दोलन के नेताओं का देश को आश्वासन
महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पुरुषोत्तम दास टंडन  आदि  स्वराज आंदोलन के सभी प्रमुख नेताओं  ने देश की जनता को बारम्बार आश्वस्त किया कि देश को स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त होने पर गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया जायेगा और  स्वदेशी सरकार की पहली कार्रवाई होगा|
महात्मा गाँधी ने १९२७ में स्वराज से बड़ा प्रश्न गोरक्षा कहा , “As for me, not even to win Swaraj, will I renounce my principle of cow protection.”1940 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विशेष समिति ने कहा कि गोवंश हत्या पूरी तरह से वर्जित किया जाना चाहिए| आजादी से पूर्व वर्षों में गायों की बलि की संख्या में असामान्य वृद्धि हुई थी.
पंडित ठाकुर दास द्वारा संविधान सभा में बहस के दौरान , २४.११.1948 को कहा कि   1944 में 60,91,828 बैल मार डाले गये  और 1945 में, पैंसठ लाख कत्ल  किये  गये  यानी 4 लाख से अधिक की वृद्धि हुई| उन्होंने आगे कहा कि देश में 5 साल में (1940 से १९४५) बैलों की आबादी में 37 लाख से की कमी हुई.
गाय संरक्षण पर संविधान सभा के वाद - विवाद
संविधान राज्यों को निदेशक सिधांत '48-A. राज्य कृषि और पशु पालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों अपनाएगा और विशेषत: पशु संवर्धन और नस्ल सुधार के सभी जरुरी कदम तथा गाय और विभिन्न काम में आने वाले पशु विशेषत: दुधारू और कृषि उपयोगी पशु और उनके वंश को हत्या से बचाएगा     
24 नवम्बर १९४८को संविधान सभा में प्रस्ताव पर  बहस के दौरानपंडित ठाकुर दास भार्गव (पूर्वी पंजाब), सेठ गोविंद दास (सीपी और बरार) श्री आर.वी. धुलेकर  (संयुक्त प्रांत), प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना (संयुक्त प्रांत), श्री राम सहाय (संयुक्त राज्य ग्वालियर - इंदौर - मालवा - मध्य भारत) और डॉ. रघुवीरा (सीपी और बरार).आदि ने स्वीकृत करने के लिए पक्ष में महत्वपूर्ण और पुरजोर आवाज में विषय रखा 
यह दिलचस्प है कि   संयुक्त प्रांत के  एक मुस्लिम सदस्य श्री JH लारी ने,सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के हित में कहा कि "इसलिए, अगर सदन की राय है कि गायों की हत्या प्रतिबंधित किया जाना चाहिए तो  स्पष्ट, निश्चित और गैर दुआर्थी शब्दों में निषिद्ध किया जाना चाहिए. मैं नहीं चाहता की हम कुछ लिखे और हमारी मंशा कुछ और हो. मेरी प्रार्थना है की अच्छा हो अगर पूरी  सभा आगे आये और बुनियादी  अधिकारों में धारा जोड़े कि अबसे गोवंश हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध होगा ना की निर्देशक सिधान्तो मे विभिन्न राज्य सरकारों को यह या वोह नियम बनाने को या ना बनाने को छोड़े . देश में सद्भाव और विभिन सम्प्रदायों में सदभावना के नाम में मैं अनुरोध करता हूँ की यह बहुसंख्यकों के लिए अपने को स्पष्ट और ठोस शब्दों में रखने का सही अवसर है. अगर वे खुले में बाहर आते हैं और सीधे कहते हैं, यह हमारे धर्म का हिस्सा है. गोहत्या से संरक्षित किया जाना चाहिए और इसलिए हम मौलिक अधिकारों में नाकि निर्देशक सिद्धांतों में प्रावधान करना चाहते हैं.
 इसी तरह, संविधान सभा के एक और असम से  मुस्लिम सदस्य, श्री सैयद मुहम्मद सैअदुल्ला  ने कहा, "महोदय, सदन के समक्ष बहस का विषय अब धार्मिक और आर्थिक  दो विषयों पर है.   मैं तुलनात्मक धर्मों के छात्र हूँ.  हमारे संविधान में एक खंड है कि गौवंशवध  हमेशा  के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए शायद यह धार्मिक आधार पर है . मैंने   उनकी भावनाओं के लिए सहानुभूति और सराहना की है, मुझे पता है कि   गाय हिंदू  सम्प्रदाय  की देवी के रूप में है और इसलिए वे यह बलि का विचार नहीं कर सकते.. धार्मिक पुस्तक, पवित्र कुरान   मुसलमानों को एक आदेश कह रही है  'ला इकरा बा खूंदी दीन', यानि  धर्म के नाम में कोई बाध्यता नहीं होना चाहिए -  इसलिए मैं अपने वीटो का प्रयोग मैं एक मुसलमान के रूप में नही करना चाहता. जब मेरे हिंदू भाइ धार्मिक दृष्टि से इस बात को रखना चाहते हैं .मैं नहीं चाहता कि, मौलिक अधिकारों में शामिल किए जाने के कारण, गैर - हिंदुओं के बारे में शिकायत हो  कि वे उनकी मर्जी के खिलाफ एक निश्चित बात को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया है. 
सारांश में संविधान सभा की पूर्ण बहस से नतीजा निकलता है की एक प्रारम्भिक प्रयास मौलिक अधिकारों में गोवंस हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध शामिल किए जाने के लिए किया गया था. यह पंडित ठाकुर दास भार्गव, सेठ गोविंद दास और प्रो शिब्बनलाल सक्सेना द्वारा दिए गए भाषणों से स्पष्ट है.
बड़े महत्वपूर्ण विचारों और सुझाओं और भारतीय जन मानस को जो गौवंश को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हुए मौलिक सिधान्तो में रखना चाहते थे, को अनदेखा करते हुए विषय को राज्यों को निदेश सिधांत ४८ में डाल दिया गया.
विभाजन और दो-राष्ट्र सिद्धांत की स्वीकृति के इतिहास केबावजूद, सत्तारूढ़ पार्टी ने अविवादित गोवंशहत्या निषेध  स्वीकार नहीं किया  यद्यपि प्राचीन काल से पूरे देश के लोगों द्वारा"गोमाता " के रूप में. पूजा गया है|संविधान सभा की ओर से उपर्युक्त चूक का अब  भी सुधार किया जा सकता है|            आधुनिक भारत में गाय की दुर्दशा
देश का स्वतन्त्रता संग्राम दो बैलों की जोड़ी के नेतृत्व में लड़ा गया था| तत:पश्चात कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह के रूप में रखा गया जो कांग्रेस विभाजन यानि १९६९ तक नेतृत्व करता रहा| इसके पश्चात भी इसका स्थान गाय-बछड़े ने लिया| त्रिमूर्ति को राष्ट्रिय चिन्ह की मान्यता दी गयी जिसमे बैल भी है|
अंग्रेजो से स्वतंत्रता संग्राम में गोरक्षा को एक बड़ा मुददा माना गया था. दो बैलों की जोड़ी स्वतन्त्रता संग्राम में जन भावना का मान और प्रदर्शन था. देश का हर नेता देश की जनता को विश्वास दिलाता था की आजादी से बड़ा प्रश्न गोरक्षा का है और स्वतंत्र भारत में पुथम कार्य कलाम की नोक से गोहत्या को रोकने का होगा.
लेकिन संविधानसभा में अथक प्रयास के बाद भीमुस्लिम सदस्यों के सहकार के बाद भी पूर्ण गोहत्या निषेध मुलभुत सिधान्तो में स्थान नही पा सका. इतिहास साक्षी है की सविंधान सभा पूर्ण गौवंश रक्षा के लिए सहमत थी केवल पंडित नेहरु ने  इसे अपनी निजी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर विरोध किया और अपने त्यागपत्र तक की धमकी दे डाली थी
इस दुःख भरी गौ खून की बहती गंगा की कहानी बड़ी दर्दनाकसमाज के लिए शर्मदेश को झटकाविधि विधानों की दुर्दशा बयां करती है. इस दुर्दशा में पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का प्रारम्भ से ही मुख्य हाथ  माना  गया|
इसका स्वतन्त्रता के पश्चात लगभग ४०० करोड़ गौवंश का कत्लखानो में काट दिया जाना ही नही, कृषि की लागत बढना, नकली रासायनिक दूध कृषको की आत्महत्या जैसे कितने ही परिणाम गिनवाये जाते है |
आज उसी गोवंश को छद्म धर्मनिरपेक्षिता और हरित क्रांति के नाम में  ट्रेक्टर और रासायनिक उर्वरक के आक्रमण  ने गोवंशको मिटा दिया और गोवंश को अलाभकर और अनुपयोगी बना दिया है  
स्वतंत्रता के ६५ वर्षों के पश्चात ४००० वैधानिक और ५०,००० ऐवैधानिक कत्लखानों में कटता हुआ जनप्रिय गोवंश लालची कसाई और चमडा माफिया से नहीं बचाया जा सक रहा है.
इस पवित्र धरा पर जो गोमाता माँ के रूप में पूजी जातीसाधू संतोंदेवी देवताओं,राम,कृष्ण,शिव,महावीर,गुरुनानक, तेगबहादुर, गोविन्द सिंहबुद्ध,अशोकविनोबा भावेशंकराचार्य,हरदेव सहाय, अटलबिहारी  वाजपयी और अनेक महापुरुषों द्वारा,पूजित गोवंश, आज अनुपयोगी, असहनीय और भार बना दिया गया है| 
१९६६ के गौरक्षा आन्दोलन के दौरान संसद में पूर्ण गौवंश हत्या बंद करने का आश्वासन दिया गया था लेकिन आश्वासनों के पश्चात भी ना तो गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगा ना ही करोड़ो गोवंश की रक्षा की जा सकी|  देश का गोभक्त समाज गत ६५ वर्षों में चुप नही बैठा. इस प्रयास में संघ परिवार हर कार्यवाही और हर मंच में शामिल रहा.    
गौ में विदेशी प्रजातियों का षड्यंत्र
पशु पालन को आधुनिक और वेज्ञानिक आधार पर सम्वर्धन और नस्ल सुधार बढ़ावा देने  में बिना अपनी मृदाखेतों का आकार,जनसंख्या, अपने बैलों की शक्तिविशेषत: देश के पारंपरिक तरीकों, अदि को भुला पाश्च्यात देशों का अँधा अनुकरण  किया गया|
जैसा ऊपर वर्णन किया गया है, अंग्रेजी शासन काल में रहन सहन, शिक्षा, वस्त्र उत्पादन के साथ गौवंश की  देशी प्रजातियों को नष्ट करने का षड्यंत्र भी किया गया| वोह प्रजातियाँ, जो की ना तो हमारी जलवायु, ना ही यहाँ के चारे आदि की अभयस्त थी उन्हें अधिक दुग्ध प्रदान करने वाली कह कर स्थापित करा गया| एक तरफ कृषि और ग्रामीण परिदृश्य में मशीनीकरण और दूसरी और इन विदेशी प्रजातियों ने हमारे कृषि प्रधान देश की रीढ़ ही तोड़ डाली|  
कृषि में मशीनीकरण और रासायनिक उर्वरकों ने ना केवल  खेती की लागत असीम बढ़ोतरी कर डाली  बल्कि जलमिटटी और फसल को जहरीला बना दिया जो उपभोक्ता और पशुओं के लिए घातक हो गया. गायों की उत्पादकता को सुधारने में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा विदेसी नस्ल के वीर्य का उपयोग कर क्रोस नस्ल और जर्सी और होलेस्तिन- फ्रीजियन आदि को बढ़ावा दिया गया| जबकि यह नसले हमारे देश की गर्मी सहन नही कर पाती हैं और तुलना में दुगना चारा खाती हैं. इन के कारण अनसुनी बिमारिओ का प्रकोप होता जारहा है. क्योंकी इनका दुग्ध हमारी देसी नस्लों से बहुत घटिया माना गया है| विदेशी प्रजाति के बैल हम्प ना होने के कारण हल चलाने और यातायात में अयोग्य पाए गये हैं|

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के गोवंश  संरक्षण आन्दोलन
स्वतंत्र भारत में समय - समय पर देश के कई भागों में गोहत्या के खिलाफ  आंदोलन मुख्य रूप से उत्तर भारतीय शहरों जैसे मुंबईइलाहाबादअहमदाबाददिल्ली में अदि में होता रहा  1966 मेंएक बड़े पैमाने पर विरोध मार्च आयोजित किया गयाजिसमें सभी धर्मोंजातियों और आयु समूहों के लोगों ने भाग लिया. शांतिपूर्ण प्रदर्शन में संसद मार्गदिल्ली में जो एक सौ के आसपास लोगों की जानचलीगयी थी .
वर्ष 1979 में आचार्य विनोबा भावे ने गोहत्या की रोकथाम के प्रश्न पर एक 1979/04/22 से अनिश्चितकालीन उपवास पर जाने का फैसला किया. उनकी मांग थी कि पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों को गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने कानून अधिनियमित करने के लिए सहमत होना चाहिए.
१२ /४/१९७९ को   लोकसभा  में एक निजी सदस्य के संकल्प को पारित किया गया था. संकल्प 42 मतों से ८ मत विरोध में और १२ अनुपस्तिथ से अनुमोदित किया गया था. संकल्प " यह संसद सरकार को संत विनोबा भावे के २१ अप्रैल से अनशन और पशु संवर्धन और विकास समित्ति की राय , सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  निर्देशक सिधांत ४८की व्याख्या अनुसार गोवंश हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध लगाया जाए   इसके पश्चात उस समय के प्रधानमंत्री द्वारा संसद में घोषणा की गयी की सरकार गो सुरक्षा के विषय पर संविधानिक क्षमता  के लिए संविधान परिवर्तन करेगी और संविधान संशोधन विधेयक १८.५.१९७९ को संसद में रखा गया था जो छटी लोकसभा भंग होने के बाद निरस्त हो गया  
जुलाई 1980 में  आचार्य विनोबा भावे ने अखिल भारतीय गोसेवा  सम्मेलन को संबोधित. करते हुए गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को दोहराया और  उन्होंने अनुरोध किया कि गायों को एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं जाना चाहिए.
१९८१ में सरकार ने पुनह: विधेयक लाने का विचार किया लेकिन विषय के गंभीर परिणाम और राजनितिक मजबूरिओं को सोचते हुए उको और देखो निति अपनाई गयी हालाँकि विभिन्न शिकयातोंका संज्ञान लेते हुए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागाँधी ने २४.२.१९८१ को आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, गुजरात,हरयाणा,हिमाचलप्रदेश,कर्नाटक,मध्यप्रदेशमहाराष्ट्रउड़ीसापंजाब राजस्थान, उत्तरप्रदेश  और जम्मू कश्मीर, सभी १४ राज्यों को पत्र भेजा और कहा गोहत्या पर प्रतिबंध का पालन करें.कत्लखानो को जाने वाले पशुओं  की  समिति जाँच करे  कुछ  सरकारों की गोरक्षा अधिनियमों की  अवहेलना और संज्ञान ना लेने के कारण सलाह दी गयी की यह सरकारिया आयोग के संज्ञान में लाया जाये         
गौरक्षा आन्दोलन -7 नवम्बर १९६६
७ नवम्बर १९६६ की घटना देश के इतिहास में काले अक्षरों में लिखी गयी भारत की कांगेस सरकार जिसमे  इंद्रा गाँधी प्रधानमन्त्री थी, श्री लाल बहादुर शास्त्री जिन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया और पूर्ण गौवंश रक्षा के समर्थक थे, का असमय निधन हो चूका था| भारत १९६५ की लडाई में विजयी हो कर उभरा था|
बहुत आशा के साथ कि केंद्र सरकार हिन्दू धर्म भावनाओं का महत्व समझेगी और गौहत्या निषेध की मांग अवश्य मान लेगी, देश के कोने कोने से आये परम पूजनीय करपात्री जी के नेतृत्व में देश के गौभक्त लाल किले पर एकत्र हो कर संसद को ज्ञापन देने को अहिंसक रूप में लगभग १० लाख की संख्या में आगे बढे |
संसद मार्ग पर इस विशाल जनसमूह जो एक सभा के रूप में परिवर्तित हो चूका था उस समय के सांसदजनप्रिय श्रीअटल बिहारी वाजपयीजी ने संबोधित किया| प्रधानमंत्री घबरा गयी और उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा को, इस शांत जनसमुद्र पर गोली चलाने को कहा जो उन्होंने अस्वीकार कर दिया और अपना त्यागपत्र पेश कर दिया  |
लेकिन राजहट, त्रियाहट  जग जाहिर है| प्रधान मंत्री ने गृह सचिव के माध्यम से निहत्ते, शांत गौभक्तो और साधू संतो पर गोलियां चलवा दी. सैकड़ो साधू संत गौभक्तो की उसही स्थान परनिर्ममहत्या हो गयी|
भगदड़ में कितने ही नारी बालक वृद्ध कुचले गए| गौभ्क्तो पर २०९ राउंड गोलियों की बौछार की गयी थी| डाक्टरी जांच में स्पष्ट था की यह गोलियां मारने के लिए छोड़ी गयी थी ना की जख्मी या तितर बितर करने के लिए| अनुमानत: ३०० से अधिक साधू संत गौभक्त शहीद हो गये थे| हजारों गौभक्तों को गिरिफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया था जिनके ऊपर बर्बर कैदियों द्वारा यातना पहुचाई गयी थी|सायं ३ बजे ४८ घंटे का कर्फ्यू लगा दिया गया था क्योंकि बिखरी लाशो को अँधेरे में ठिकाने लगाना था| समाचारों से बचने को रातो रात इन लाशो की दुर्दशा करते हुए तेल डाल कर जला दिया गया |
आचार्य महा मंडलेश्वर स्वामी प्रकाशानंद जी, आर्य नेता रामगोपाल शाल वाले, पूरी शंकराचार्य स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी आदि ने इस घटना को दिल्ली और देश का काला दिन बताया| श्री जगदीश मुखी जो उस समय MA के विद्यार्थी थे इस पूर्ण आन्दोलन में अग्रिम पंक्ति में विद्यमान थे  और इस भीषण नरसंहार की याद कर ठीठर उठते हैं|आज भी प्रतिवर्ष ७ नवम्बर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है और इन शहीदों को श्रधांजलि देते हुए पूर्ण गौवंस रक्षा का आग्रह किया जाता है | आज गत ५० वर्षो में देश में गौरक्षा की आवाज उठती रही है |



3. धर्म खंड
गाय और बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म संस्थापक गौतम बुद्ध सत्य, अहिंसा और शांति के पालक थे|
इन्होने हिन्दू धर्म की एक शाखा के रूप में बौद्ध धर्म की स्थापना की और गौ संवर्धन का प्रचार किया| अहिंसा का महत्व बताया| सम्राट अशोक, जिन्होंने बौद्ध धर्म अंगीकार किया और अपने पुत्र और पुत्री को प्रचार के लिए समर्पित किया उनके शिला लेखो में गाय, बैल आदि की हत्या निषेध की गयी है| चीनी यात्रियों ने वर्णन किया कि बौद्ध धर्मावलम्बी मुख्यत: शाकाहारी, पशु पालक और अहिंसक हैं|
महाकवि जयदेव ने लिखा की निन्दसि यज्ञविधेरहः श्रुति जातम
सदयहृदय दर्शित पशुधातम| केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश हरे||
अर्थात भगवान बुद्ध ने यज्ञ हिंसा की निंदा की है|भगवान बुद्ध कहते हैं          
               माता यथा नियं पूतं आयुष एक पुत्तंनुरक्खे |
               अवम्पि  स्ब्बभुतेसू मानसं भावये अपरिमाण ||
अर्थात माता जिस प्रकार अपने एक्लोते बेटे के प्रति स्नेह रखती है, उसी प्रकार सभी प्राणियों में परिमित स्नेह रखना चाहिए| भगवन बुद्ध गाय की निर्दोषता पर मुग्ध थे  न पड़ा अ विशानेण नास्सू हिस्संति केनचि |
गावो एलक समाना सोरता कुम्भदूहना ||
अर्थात गौतम बुद्ध कहते हैं “ गाय अपने पैरों से या सिंग से किसी अंग से नही मारती वह तो भेड के सामान प्रिय और घड़े भर दूध देने वाली है| उन्होंने गाय को माता का दर्जा दिया है और उसे अपार सुख समृद्धि का स्त्रोत्र मानते थे| अन्नदा बलदा चेता वनन्दा सुखदा तथा|
           एत्मत्थवंस त्रत्वा नास्सू गावो ह्र्निसुते||
अर्थात गाय अन्न बल, वर्ण, तथा सुख प्रदाता है इसे जानकर ही पूर्वज गायों को नही मारते थे | अंत में बौधधर्म को मानना, भगवानगौतम बुद्ध में श्रधा रखना यानि मांसाहार का, पशु हिंसा का पूर्ण विरोध करना और शाकाहार स्वीकार करना होता है|                
गाय और जैन धर्म
जैन धर्म का मूलमंत्र अहिंसा है| जैन ऋषियों ने पांच महाव्रत धारण किये थे इनमे अहिंसा व्रत प्रमुख मन गया और इस पर आचरण करने के लिए निति नियम बनाये गए | अकबर काल में हरिविजय सूरी जी के अहिंसा प्रचार से प्रभावित हो कर जैन तीर्थों में प्राणी हत्या पर पाबंदी लगायी| प्रमाण स्वरूप श्रुत्न्ज्य पर्वत पर जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ मंदिर के द्वार पर सन १५९३ से लगा शिलालेख है| सन १६१० में जैन साधू पंडित विवेक हर्ष ने बादशाह जहाँगीर से प्राणी हत्या बंदी फरमान जारी करवाए| देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् भी दिगम्बर, स्वेताम्बर, मन्दिरर्मार्गी, मूर्ति पूजक, तेरापंथी  आदि विभिन्न जैन सम्प्रदायों के संत पूर्ण देश में प्राणीदया की अलख जलाये हुए हैं |

किसी भी शुभ कार्य में प्राणी अभयदान यानी पशु छुड़वाना निरंतर देखा जा सकता है| | देश की १५,००० से अधिक गौशालाओं,पिंजरापोल में तन मन धन से जैन धर्मावलम्बी प्रतिदिन देखे जा सकते है| यह अतिश्योक्ति नही होगी कीजैन धर्म पालको के कारण आज का गौधन बच रहा है
गाय और पारसी धर्म
आर्यावृत की एक शाखा ईरान में पनपी जिसे पारसी कहा जाता है| अग्नि उपासक धर्म ग्रंथो में गाय के लिए गौ शब्द का प्रयोग हुआ है | अवेस्ता और और धर्म की मुख्य धारणा है की मुख्य धर्मगुरु जरथृष्ट को इश्वर ने गौरक्षा के लिए धरती पर भेजा है | इस धर्म में गौहत्या निषेध है| इनके पूजा स्थानों में बैल की मूर्तियाँ मिलाती हैं |
उत्सव निरंग दिन में बैलमूत्र एकत्र कर मंत्रोचार से शक्तिमान किया जाता है, जिसे प्रशाद  रूप में संग्रह किया जाता है | इसका पान, मलना और रोग निवारक के रूप में उपयोग देखा जा सकता है|
पारसी धर्म गुरु को प्रणाम करने पर उनसे गौवृधि का आशीर्वाद मिलता है| शिल्पकला में अर्धपशु चित्र बहुतायत में देखने को मिलते हैं |                             
                    गाय और सिख धर्म
सिख धर्म में गौरक्षा,गौसेवा मुख्य आधार है | गुरु गोविन्द सिंह जी की प्रार्थना यही देह आज्ञा तुर्क को खपाऊं, गौ घातका दू:ख जगत से हटाऊं
आस पूरण करो तुम हमारी, मिटे कष्ट गौअन झूटे खेद भारी ||
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दूध के विषय में कहा गया है –
दूध कटोरे गडवे पानी, कपिला गायी नामे ढूह आनी |
गावदी मंगलानी पश्येत |
यानि कपिला गाय का दूध बहुत पवित्र है | गौ केवल दर्शनीय नही वाल तो मानव माता है | गौरक्षा करते हुए शहीदों में सिख धर्मावलम्बी नामो की बड़ी लम्बी सूचि है| गुरु तेग बहादुर ने अपने दोनों बेटो की कुरबानी दी थी| आज भी पंजाब राज्य का मुख्य भोजन दूध, मक्खन, लस्शी और व्यवसाय कृषि है और यहाँ की प्रजाति सुन्दर, सुघड़, अत्यधिक दुग्धशाली, मानी जाती है | 
दशमेश गुरु गोविंद सिंहजी ने घोषणा की थी कि उसके खालसा पंथ की स्थापना  आर्य धर्म, गाय और ब्राह्मण की रक्षा और संतों और गरीबों की सेवा के लिए है उन्होंने"1812 में 'चंद  दी वार' कविता में माता दुर्गा भवानी से प्रार्थना की
मुझे दुनिया से तुर्क और गाय की हत्या की बुराई को खत्म करने,गौ हत्यारो  के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध की शुरुआत  की शक्ति  दे
ईसाई धर्म
हर धर्म करुणा, प्राणीदया की सिक्षा देता है| कुरीतियाँ भी समयानुसार धर्म का भाग बन जाती हैं चाहे उसे बलि देना कहें या क़ुरबानी और धर्मगुरु समय समय पर इसका प्रतिकार करते रहे हैं | लेखक ने मुस्लिम बहुल देशो यानि अरब के सीरिया, दुबई, कुवैत, टर्की आदि में बहुत सुन्दर ढंग से विशाल गौशालाओं में गौपालन देखा है| इस्रायल देश ने तो भारतीय गौवंश को उन्नत कर विश्व मानक स्थापित किये हैं | आस्ट्रेलिया में भारत की हालिद्कार नस्ल के बैल हाथी के समान  विशालकाय देखे जा सकते है| क्रिसचन धर्म में प्राणीदया और करुणा का बड़ा महत्व है| उदाहरण के लिए दक्षिण भारत की बृहत संस्था मैसूर पिंजरापोल की स्थापना एक क्रिसचन महिला द्वारा १९३८ में कीगयी थी|
गाय और इस्लाम
भारत में मुस्लिम आक्रमको का आना तो सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य काल से पाया जाता है लेकिन शासन मुख्य रूप से बाबर हुमायु काल से माना गया है इस विषय पर इतिहास गवाही देता है कि शहंशाह बाबर से बादशाह बहादुरशाह ज़फर तक सभी बाद्शाहो ने गौ हत्या पर रोक लगायी थी| कुछ थी भी तो ज्यादा करके  इस देश के मूल निवासियों  को अपमानित करने और उनके  भोजन प्रयोजनों में  संप्रभुता और श्रेष्ठता करने को  किया गया था. मुस्लिम शासनकाल का ब्यौरा इस प्रकार बताया जा सकता है|
मुस्लिम बादशाहों द्वारा गोहत्या के विरूद्ध फरमान व संदेश
            बाबर का अपने पुत्र हुमायूं को संदेश पत्र
यघपि बाबर की गिनती कट्टर मुस्लिम शासकों में होती है बाबर के बारे में कहा जाता है कि उसनें एक हाथ में कुरान और एक हाथ में तलवार लेकर भारत में ईस्लाम फैलाने का ओदश दिया था किंतु यह आश्चयजनक सुखद तथ्य बहुत कम लोगों को पता कि बाबर ने अपने अंतिम समय में पुत्र हुमायूं को एक पत्र लिखकर हिंदुओं कीआस्था का सम्मान करने एवं गोहत्या कभी न होने देने की बात थी। बाबर द्वारा हुमायूं को लिखे गए पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार था
’’ ए मेरे बेटे भारत वर्ष में भिन्न-भिन्न संप्रदाय के लोग रहते हैं। खुदा का धन्यवाद हे कि उसने तुम्हारे में इस देश का शासन सूत्र सौपा है, तुम्हें अपने मन से धार्मिक पक्षपात के अलम कर देना चाहिए प्रत्येक धर्म के नियम के हिसाब से अनेक सांय न्याद करना और विशेषकर गोहत्या से परहेज रखना क्योंकि ऐसा करने से ही तुम भारतवासियों के हृदय पर विजय प्राप्त कर सकोगे . और देश की प्रजा तुम्हारी कृतज्ञता के पारा में बंधकर तुम्हारी कृपा पात्र बन सकेगी तुम्हारे राज्य के भीतर किसी भी जाति के मंदिर या पूजा के स्थान है, उन्हें भ्रष्ट मत करना और बादशाह से और बादशाह प्रजा से प्रसन्न रहे।गिरीशपेकन -एक गाय की आत्मकथापृष्ठ 95 हुमायूं ने अपने पिता की इस बात की गांठ बांध ली और अपने साम्राज्य में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया
बादशाह अकबर का गोहत्या के विरूद्ध फरमान व संदेश
बादशाह अकबर का नाम अत्यंत उदार मुस्लिम शासक के रूप में जाना जाता है और अकबर की यह उदारता गोरक्षा के विषय में दिखाई पड़ती है।अकबर के नव रत्नौ में से एक अबुल फज़ल ने आईने अकबरी नामक ग्रन्थ लिखा इस ग्रंथ का एक अध्याय गाय को ही समर्पित है।       अबुल  फज़ल ने लिखा है संदर भारत में गाय मांगलिक समझी जाती है उसकी भक्ति भाव से पूजा होती है इस उपकारी जीव की बदौलत भारत की खेती होती है और उसके द्वारा उत्पन्न अन्न दूध और मक्खनआदि से गुज़र बसर चलता हैं।
अकबर के समय गोशाला कार्यरत थी और अकबर की स्वयं की एक गोशाला थी, अकबर के पास एक जोड़ी गाय थी जिसकी कीमती पाँच हजार मुहर बताई गई हैंअकबर खाने में शद्ध घी लेता थादही खाता था।
बादशाह अकबर ने गोचर भूमि पर किसी भी तरह के शिकार पर प्रतिबंध लगाया था, तथा गायों के चरने में बाधा उत्पन्न करने वालों के लिए कड़ी चेतावनी भरा फरमान भी जारी किया था
 बादशाह अकबर को जब कवि नरहरि के छप्पय (कविता का एक छंद) के माध्यम से पता चला कि राज्य में चला कि राज्य में चोरी छिपे गोहत्या हो रही है तो उन्होंनें ये ऐतिहासिक फरमान जारी किया।
        13 ज़िलहिज्ज सन् 31 में जारी फरमान
‘‘सल्तनत के प्रबंधक कर्मचारी, अमीर-उमराव, परगनों के धार्मिक और शाही मुल्कों के कारबर ज़िम्मेदार जान लें कि इस न्याय के युग में यह फ़रमान जारी किय पशु ईश्वर के बनाये हुए है और सबसें एक न एक लाभ होता है। इनमें गाय की जाति चाहे वो नर हो या मादा, अत्यंत लाभ देने वाली है क्योकि मुनष्य और पशु अन्न ख गया है। इसका पालन सबके लिए परम आवश्यक है सबको मालुम रहे कि समस्त खाकर जीते है। अन्न खेती के बिना नही हो सकता। खेती हल चलानें से ही होती हैं। और हलों का चलना बैलों पर निर्भर है। इससे स्पष्ट हुआ कि समस्तसंसार और पशुओं तथा मनुष्यों के जीवनकाआधार एक गायही है।
ऊपर लिखे कारणों से ही हमारी ऊंची हिम्मत और साफ नियत का तकाज़ा हे कि हमारे में गोहत्या की रस्म बिल्कुल ना रहे। इसलिए शाही फ़रमान को इस विषय में रूप से प्रयत्न करना चाहिए जिससे अब से किसी भी गांव और शहर में गोहत्या का नामो निशान बाकि न रहे यदि कोई आदमी इस आज्ञा का उल्लंघन करेगा और वर्जित काम को नही छोड़ेगा तो समझ ले उसकी सूलतानी अज़ब में, जों ईश्वरीय कोप का एक नमूना है फसना पड़ेगा और वह दण्डनीय होगा।और अकबर ने सख्त चेतावनी भी दी कि ‘‘जो भी उनके फ़रमान का उल्लंघन करेगा, उसके हाथ और पाँव की ऊँगलियां काट दी जाएँगी
बहादुरशाह ज़फर का शाही फ़रमान
‘‘खल्क खुदा का, मुल्क बादशाह का, हुक्म फौज के बड़े सरदार को जो कोई इस मौसम बकरीद में या उसके आगे-पीछे गाय-बैल या बछड़ा जुकाकर या छिपाकर अपने घर में जबद (हलाल) या कुरबान करेगा, वह आदमी जहाँपना का दुश्मन समझा जाएगा और उसे सजाए मौत दी जाएगी। (मुजफ्फर दुसेम)
इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि सचमुच 1 अगस्त 1857 को हुई बकरीद में एक भी गोवंश की कुरबानी नही हुई। कहा जाता है कि जंग आजादी में मुसलमानों ने इतने जोश व जज़बे से हिस्सा लिया कि अंग्रेज उनसे खौफज़दा हो गए और चुन-चुन कर वतनपरस्त मुसलमानों को पेड़ो पर फांसी दे दी आदेश जारी कर दिया कि किसी ने भी यदि इनके शरीर को पेड़ से उतारा तो उसे भी फांसी दे दी जायेगी। एक अनुमान के अनुसार 80 हजार आलिम, 14 हजार मुफ्ती, 34 हजार हाफिजों को तो कब्र भी नसीब नही हुई।
मुसलमान तो सदा गोहत्या से दूर रहे और जो लिप्त भी उन्होंने 1857 की क्रांति के बाद इससे तौबा कर ली फिर अंग्रेजो द्वारा दी गो हत्या को कारोबार चलता रहा इसी तरह से अन्य मुस्लिम राजाओं ने भी गोहत्या तथा गोमांस से परहेज ही रखा मैसूर के शासक हैदर अली भी बड़े गोप्रेमी हुए उन्होंने गो हत्यारों का सर कलम करने का कानून बनाया था तो उनका पुत्र टीपू सुल्तान गोहत्यारों के हाथ काट देता था‘‘                           
                   मुस्लिम शायरी में गाय
रसखान केवल बादशाहए नवाब निजाम ही नहीं कितने ही मुस्लिम गौभक्त कवियों ने गौ महिमाँ का बखान किया है जिसमे रसखान का नाम सबसे ऊपर लिखा जाता है जो कहते है
     ‘‘मानुष है तो वही रसखान बसौं संग गोकुल गांव के ग्वारन
  जो पसु है तो कहा बसु मेरा चरों नित नन्द की धेनु मँझाटन’’
यहाँ गो भक्ति कवि रसखान कह रहे है हे प्रभु यदि मुझे अगला जन्म मनुष्य के रूप में देना तो गोकुल के ग्वाल बाल के रूप में देना और यदि पशु के रूप में जन्म देना तो निश्चित ही नन्दबाबा की आंगन की गाय के रूप में देना।‘‘रसखान’’ ने श्रीकृष्ण जी की गोचारण लीला को बड़े सुन्दर ढंग से चित्रित किया है रसखान कहते है जब श्री कृष्ण गोचारण में लगे तो केवल गोपियाँ ही नही अपितु संपूर्ण ब्रजमण्डल श्री कृष्ण पर मोहित उनकी इस लीला पर बिक गया प्रस्तुत है संबंधित काव्य ‘‘ गई दहाई न या पे कहूँ, न कहूँ यह मेरी गरी निकस्यौ  है।
धीर समीर कार्लिंदी के तीर टूखरयो रहे आजु,ही डीठि परचो है।
जा रसखानि विलोकत दी सरका ढरि रांगसो आग दरयो है।
गइन घेरत हेरत सो पंट फेरत टेरत, आनी अरयो है।      
मेरठ के प्रसिद्ध गोभक्त कवि मौलवी मोहम्मद इस्माईल ने छोटे बच्चों के लिए एक कविता लिखि है जिसका शीर्षक है हमारी गायउर्दू की प्राथमिक शालाओं में ये कविता 50 और 60 के दशक में अनिवार्य रूप से पढाई जाती थी। जिसे बच्चे मोखिक रूप से याद करके सामूहिक रूप से गा गाकर पढ़ा करते थे । उन दिनों मुस्लिम समाज में गाय के प्रति कितना प्रेम और अपनापन था, वह इससे सिद्ध हो जाता है इसकी कुछ पंक्तियाँ यहा श्री मुजफ्फर हुसैन रचित पुस्तक इस्लाम एवं शाकाहार उद्घृत है।
रब का शुक्र अदा कर भाई,     जिसने हमारी गाय बनाई।
उस मालिका को क्यों ना पुकारेजिसने पिलाई दूध की धारे।
क्या है गरीब और कितनी प्यारी, सुबह हुई जंगल को सिधारी।
दाना दुनका भूसी चूकर,       खा लेती है सब खुश होकर।
दूध-दही और मटका, मसका,   दे न खुदा तो किसके बस का।
बछडे़ उसके बैल बनाये,       जो खेती के काम में आये।
गाय हमारे हक में ने अमत,    दूध है देती खा के बनिस्बत।
गाय ने मानवजीवन को नवरूप प्रदान किया है,
इसलिए ऋषियों ने इसे माँका नाम दिया है।
आर्य संस्कृति का गोरव हम नही सिमरने देंगे,
शीश भले ही कट जाये गाय नही कटने देंगे।
मेहनत कर किसान के मन में खुशियां यह भर देती है,
श्रम के साथी बैलों को भी यही जन्म है देती।
किसी जाती का नही,धर्मक नही, यह हर घर का है,
गो हत्या का प्रश्न समूची मानवता भरका है।
गोहत्या करने वाला सभ्यता उचार रहा है,
गौहत्या पर  तंज कसते हुए कवि अकबर इलाहाबादी  ने लिखा।
बेहतर यही है कि फेर ले आँखों को गाय से,
क्या फायदा है रोज की इस हाय हाय से।
                    कमजोरियों को रोक दे जांरो का क्या करें?
                 मुस्लिम हारे तो फौज के गोरों का क्या करें?
मुंह बंद हो सकेगा मुसलमां शरीफ का,
चस्का मगर ना जाएगा साहब से बीफ का।
गोभक्ति का रस बिखेरने वाले श्री अब्दुल गफ्फार साहब की कविता प्रस्तुत है।रब का शुक्र अदा कर भाई, जिसने हमारी गाय बनाई
गाय काटने वला अपनी माँ को काट रहा है।
माँ के हत्यारों को खुल के दण्ड दिलाना होगा,
इसकी रक्षा का घर-घर में अलख जगाना होगा।
वसुधा के वैभव का दर्शन नही चमकने देंगे,
शीश भले ही कट जाये गाय नही कटने देंगे।
जिस आंगन में गाय नही अपशगुन माना जाता,
गोदान तो भारतभूमि पर महादान कहलाता।
हिन्दु, मुस्लिम, सिख सभी अब आगे बढ़कर आओ,
भाल भारती से कलंक का ये टीका हटवाओ।
मजहब ए इस्लाम में गाय
इस्लामी परंपरा में न तो मांसाहार वर्जित है और न ही बकरीद आदि अवसरों पर पशुओं की कुर्बानी वर्जित है पर इसके बाबजूद मुसलमानों को उनका मजहब यहइजाजत नहीं देता कि वो अपनी कुर्बानी अथवा मांसाहार के द्वारा किसी गैर-मुस्लिम की भावनाओं को ठेस पहुँचाए या उनका दिल दुखायंे। भारत में मुसलमानों द्वारा गाय की कुर्बानी करना तथा गोमांस खाना ऐसा ही मसला है जो भारत के बहुसंख्यक हिंदुओं के दिलों को जख्मी करता है। इसको लेकर आये दिन हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़े होते रहतें हैं। गाय की कुर्बानी तथा गोमांस भक्षण को लेकर विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग मुस्लिम विद्वानों द्वारा दिये गये व्यक्तव्य यह तो स्पष्ट करतें हीं हैं कि इस्लाम में इसको लेकर क्या कहा गया है अथवा इस बिषय पर मुसलमानों का क्या रवैया होना चाहिये पर इसके साथ-साथ अरब की परंपरा, पवित्र कुरआन का आदेश, मुहम्मद (सल्ल0) की सीरत और आप (सल्ल0) के सहाबियों की सीरत भी यहीकहती है कि गाय की कुर्बानी इस्लाम में अनिवार्य नहीं है और ऐसा करने से अगर किसी का दिल दुःखता है तो ऐसे में मुसलमान को इससे बिलकुल परहेज करना चाहिए। अरब में बकरीद के अवसर पर अथवा हज के मौके पर दी जाने वाली कुर्बानी में गायों की कुर्बानी नहीं होती। जो मुसलमान हज करके आतें हैं वो बतातें हैं कि कुर्बानी हेतू जो जानवर बेचे जातें हैं उनमें भेड़, बकरी, ऊँट आदि तो होतें हैं पर गायें नहीं होती। गाय को लेकर होने वाले फसाद न हों इसके लिये ये जानना आवश्यक हैकि इस्लाम की तालीम इस मसले पर क्या रहनुमाई करती है और गोहत्या करनेअथवा गोमांस भक्षण करने वाले लोग क्या इस्लाम की शिक्षाओं के अनुरुप आचरणकर रहें हैं?
पवित्र कुरआन में नुजू़लशब्द असाधारण लाभदायक वस्तुओं के अर्थ मेंप्रयुक्त हुआ है। कुरआन हर उस चीज के लिये अनजल‘ (यानि नाजिल किया गया) शब्द का इस्तेमाल करता है जो इंसानों के लिये बेहतरीन फायदों का कारक हैं। मसलन कुरआन सूरह हदीद में लोहे के संदर्भ में कहता है कि हमने लोहे को नाज़िल फरमाया और सब जानते हैं कि मानव-जाति को जिस धातु ने सबसे अधिक फायदा पहुँचाया वो लोहा है। वस्त्र के संदर्भ में भी कुरआने-करीम नुजूल शब्द का प्रयोग करता है क्योंकि वस्त्र इंसानों के लिये बेहद जरुरी है। नबियों में केवल हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के बारे में कुरआन ने नुजूलशब्द का इस्तेमाल किया और इसकी
वजह ये थी कि तमाम रसूलों में इंसानों को सबसे अधिक फायदा नबी करीम(सल्ल0) की आमद से पहुँचा है। यहां गोरतलब बात ये है कि कुरआन ने दूध देने वाले जानवर यानि अनआम के बारे में भी नुजूलशब्द का प्रयोग किया क्योंकि दूध देने वाले जानवर इंसानों के लिये खुदा की तरफ से बहुत बड़ी नेअमत है। सूरह नहल की 66वीं आयत में आता है, और निःसंदेह तुम्हारे लिए पशुओं में भी एक शिक्षा-सामग्री है। जो कुछ उनके पेट में है उनमें से, गोबर और खून के बीच में से हम तुम्हें दूध पिलातें हैं, जो पीने वालांे के लिये अत्यंत सुखकर है। इसके अलावा भी कुरआन मजीद में कई ऐसी आयतें हैं जिनमें उन चैपायों का आभार व्यक्त किया गया है जिससे इंसानों को दूध और ऊन वगैरह हासिल होता है और दुनिया के हर इल्म वाले को ये मालूम है कि गाय का दूधतमाम चैपायों में सबसे बेहतर माना गया है इसलिये गाय का एहतराम करना हर अक्लवाले के लाजिम होजाता है।
पवित्र कुरान में अनआम (यानि दुधारु चैपाए) कुरान मजीद का दूसरा और सबसे बड़ा अध्याय सूरह बकरह है, बकरह का अर्थ होता है गाय। सूरह बकरह कुरान की सबसे बड़ी सूरह है जिसके बारे मेंनबी-करीम (सल्ल0) ने फरमाया था कि प्रत्येक वस्तु का एक शीर्ष भाग होता है और कुरआन का शीर्ष भाग सूरह बकरह है। इस सूरह में तमाम नबियों का वर्णन आया है साथ ही कयामत तक के लिये इस्लाम के लिए जो खतरे हैं उन्हें भी चिन्हित किया गया है। इसी सूरह में इस्लाम के बुनियाद अरकान नमाज, जकात, रोजा, हज वगैरह का भी वर्णन आया है साथ ही इसमें मशहूर आयतुल-कुर्सी भी रखी गई है जिसे कुरआन की तमाम आयतों का सरदार माना जाता है। यह भी माना गया है कि इस सूरह में प्रत्येक विषय पर कुछ न कुछ कहा गया है। इतनी अजी़म सूरह का नाम गाय के नाम पर नाम रखा जाना भी खुदा का हम इंसानों के लिए गाय को लेकर एक इशारा ही है। हालांकि कई मुसलमान ये कहतें हैं कुरान के इस अध्याय में गोबलि का प्रावधान और आदेश मिलता है परंतु इस संदर्भ में कुरान की वो आयतें जो इस पूरे प्रसंग का वर्णन करतीं हैं उनके इस दावे को झुठला देती है। सूरह बकरह में गाय काजिक्र हजरत मूसा (अलै0) के अपने कौम वालों से खिताब के संदर्भ में आया है। मूसा (अलै0) तूर पर्वत पर तौरात की तख्तियां लाने गये थे और इसी बीच सामरी नामक बनी इजरायल के एक शख्स ने किसी बछड़े को अपनी कौम का माबूद (ईश्वर) पवित्र कुरान में गाय धोषित कर दिया। मूसा (अलै0) अपने कौम वालों के झूठे माबूदों को पूजने की आदत से बेजार हो गये थे इसलिये उन्हें ईश्वर की तरफ से हुक्म हुआ कि जिनको इन लोगों ने माबूद बना लिया है उस जीव को इन्हीं के हाथों जिबह करवाओ ताकि झूठे माबूदों की इबादत से ये कौम बच सके। सूरह बकरह की आयत सं0 67 ये 71 में इस पूरी धटना की तफ्सीर मौजूद है। इन आयतों में आता है कि जब हजरत मूसा (अलै0)ने अपने कौम वालों को एक गाय जिबह करने का हुक्म दिया तो उनके कौम वालों ने उनके इस हुक्म पर कहा कि क्या तुम हमसे मजाक करते हो?‘ कौम वालों का ये कहना यह बता रहा है कि उनके लिये यह बिलकुल अनूठी बात थी कि कोई उनसे गाय जिबह करने की बात करे। संभवतः बनी इजरायल में इससे पहले गोहत्या की कोई धटना हुई ही नहीं थी। इसके बाद भी वह मूसा (अलै0) के साथ टाल-मटोल के लहजे में बात करते रहें ताकि उन्हें गोहत्या करने का पाप न करना पड़े। कुरान कीआयतों से स्पष्ट है कि गाय को जिबह करने का मूसा का आदेश बछड़े को माबूद बना लेने के तात्कालिक संदर्भ में था। इस धटना का वर्णन कुरान के साथ-2 तौरात में भी आता है पर दोनों ही में कहीं भी ये नहीं वर्णित है कि हजरत मूसा (अलै0) का यह निर्देश कोई स्थायी आदेश था जिसे करते चले जाने का आदेश दिया गया हो। यहूदी इतिहास ग्रंथों में भी कहीं ये उल्लेख नहीं आता है गाय जिबह के मूसा के इस आदेश को कोई स्थायी परंपरा मान लिया गया हो। कुरआन में गोबलि की इस पूरी धटना का वर्णन प्रसंगवश ही किया गया है और वो भी हजरत मूसा (अलैहे0) की उम्मत से जोड़ कर। कहीं से भी ये साबित नहीं है कुरआन में मुहम्मद (सल्ल0) की उम्मत को गाय की कुर्बानी का आदेश दिया गया हो।कुरान और रसूल ने केवल पाक चीजों को खाने का हुक्म दिया
कुरान की दो अध्यायों सूरह बकरह और सूरह माहदह में हलाल और हराम खाने का तथा विभिन्न भोज्य वस्तुओं की वैधता तथा अवैधता का विशद् वर्णन आया है। सूरह माइदह ने हलाल खाने के साथ एक ऐसी शत्र्त जोड़ दी है जो इस्लाम और दूसरे सेमेटिक मजहबों में स्पष्ट अंतर दर्शा देता है और वो शत्र्त ये है कि सूरह माइदह में कुरआन ने कहा कि भोजन केवल हलाल ही नहीं अपितु पवित्र यानि पाकीजा भी होनी चाहिए अतः यदि कोई भोजन हलाल भी है तो भी बेहतर यही है कि उसे तब तक न खाया जाये जब तक वह पाकीजा और स्वास्थ्यवर्धक न हो। हलाल और वैध भोज्य पदार्थों का वर्णन करते हुये कुरआन कई स्थानों पर कहता है:- (कह दिया) जो पाक-साफ़ चीजों हमनें तुम्हें दी हैं उनमें से खाओ।(सूरहबकरह,आयत-57)
हे ईमान लाने वालों ! जो पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उन्हें खाओ। (सूरह बकरह, आयत-172)
जो उन्हें नेक बातों का हुक्म देता और बुरी बातों से रोकता है। उनके लिये उत्तम चीजें वैध और निकृष्ट चीजें अवैध ठहराता ह(सूरह अल-आराफ़,आयत 157)
खाओ जो कुछ हमने तुम्हें अच्छी चीजें प्रदान कीहैं।(सूरहताहा़,आयत-81)
जो कुछ अल्लाह ने हलाल और पाक रोजी तुम्हें दी है उसे खाओ। (सूरह अल-माहदह़, आयत-88)
पाक चीजें खाने का हुक्म रसूलों के लिये भी था। कुरआन इस बारे में कहता है, हे रसूलों! पाक चीजें खाओ, और अनुकूल कर्म करो।(सूरह अल-मोमिनूऩ,आयत-51)
इसके अलावा रसूलों की ये जिम्मेदारी भी थी कि वो अपने उम्मतियों को पाक और नापाक चीजों का फर्क बताते हुये उन्हें इसके लिये आगाह करें। मसलन कुरआन हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के लिये कहता है, जो उन्हें नेक बातों का हुक्म देता और बुरी बातों से रोकता है। उनके लिए उत्तम चीजें वैध और निकृष्ट चीजें अवैध ठहराता है। (सूरह अल-आराफ, आयत-157) उपरोक्त तमाम आयतों के अलावा ऐसा ही आदेश पवित्र कुरआन के सूरह माहदह की 4थी आयत (जिसमें हलाल औरहराम का वर्णन आया है) में भी दिया गया है, वे तुमसे पूछतें हैं कि उनके लिये क्या वैधनिर्धारित किया गया है। कह दो कि तुम्हारे लिए सब पाक चीजें वैध निर्धारित की गई है।
नबी-करीम (सल्ल0) अपनी एक हदीस में फरमातें हैं गाय का दूध और धी शिफा बख्श है और इसका मांस बीमारी को बढ़ाने वाला है। यानि अगर हम पवित्र कुरआन की इस आयत और नबी करीम (सल्ल0) को इस हदीस को जोड़कर देखें तो गाय का मांस कहीं से भी पाकीजा नहीं ठहरता। अल्लाह के रसूल अपनी मुबारक जुबान से जिस चीज को बीमारी बता दे वो किसी भी हालत में और किसी के कहने से पाकीजा नहीं हो सकता और अगर पाकीजा नहीं हो सकता तो फिर पवित्र कुरआन की आयत के अनुरुप वो हलाल या वैध भी नहीं है।
सूफी फकीरों द्वारा गोरक्षा व जीवदया का संदेश
मुस्लिम सूफी फकीर बड़े तपस्वी होते थे तथा आज भी इस परंपरा के लोग सादगीपूर्ण जीवन जीते है चूंकी यह वर्ग तपस्या, योग साधना व नामजप में लीन रहता है इसलिए इन फकीरों ने सात्विक भोजन को महत्व दिया तथा मन वचन कर्म से किसी भी प्राणीको नुक्सान पहुंचाने की सख्त मनाही की।
मुस्लिम सूफी परंपरा के संतो के विचार
हज़रत अली   इस्लाम के चौथे खलीफा पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के दामाद, उनकीपुत्री फातिमा के पति और सिया पंथ के प्रथम इमाम हजरत अली, जो सूफी संत केपितामाह कहलाते है,
उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘नहजुल बलागा’’ गो उनके द्वारासमय-समय पर दिये गये धार्मिक भाषण (खुलबात) का संग्रह है, उसमें कहते है किअपने पेट को जानवरों की कब्र ना बनाओ। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यदि तुम्हे मांस खाने की आवश्यकता पढ़े तब भी उसे  अधिक मात्रा में और प्रतिदिन उसका उपयोग न करो।
नागपुर के बाबा ताजुद्दीन गायों से बड़ा प्रेम करते थे। उनकी अपनी गोशाला थी। प्रसिद्ध रिऋी रावेआ ने भी गोशाला की स्थापना की थी। भारत में सूफीयों ने अपनी पत्नीयों ने साथ मिलकर अनेक स्थानों पर गोशालाऐं बनाई और गो का पालन किया। (मुजफ्फर हुसैन इस्लाम व शाकाहार)
संत समद  महान मुस्लिम संत समद कहते है कि धातु में प्राण नही है, वनस्पति भी सुप्त अवस्था में है, लेकिन पशुओं में जाग्रत अवस्था है जबकि मनुष्य जाति में उसने प्राण पूर्ण जागृत और संवेदनशील स्थिति में है।ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) ‘‘सीरते ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती‘‘रज़वी किताबघर दिल्ली द्वारा प्रकाशित किताब मेंगाय से संबंधित तीन महत्वपूर्ण प्रसंग है जो ख्वाजासाहब के जीवन से गहराई से जुड़े है।
हज़रत हमीदुद्दीन नागौरी
हज़रत हमीदुद्दीन नागोरी की दरगाह राजस्थान के नागोर में है सनातनि पंरपरा में इन्हें तारकिशन जी महाराज के नाम से जाना जाता हे ख़वाज़ा मोईनुदुद्दीन चिश्ती की दरगाह तरह यहाँ भी कमी भी तबरसक के रूप में गोमास तो दुर किसी भी तरह का कोई माँस नही बना, इसकी विशेषता यह है कि बिल्कुल मंदिर की तरह यहाँ कोई व्यक्ति माँस खाकर प्रवेश भी नही करता यदि ऐसा करता है तो उसकी तबियत खराब जाती है। बाबा हज़रत हमीदुद्दीन नागौरी ताउम्र शाकाहारी रहें आपने अपने जीवनकाल मे ही वसीयत कर दी थी कि ताकयामत मेरे परिसर में कभी भी किसी भी रूप में मांस खाया पकाया ना जाये
बाबा बंगलोरी मस्तान ‘‘ यदि कोई एक छोटी चिड़िया को बिना किसी कारण मारता है उस कयामत के दिन उसका हिसाब देना होगा। जहाँ तक गाय का प्रश्न है तो मोहम्मद (स.अ.ब.) की चिकित्सा पद्वति को ‘‘तिब-ए-नबवी‘‘ के नाम से जाना जाता है तिब - ए- नबदी अर्थात नबी की चिकित्सा पद्वति इसमें कहा गया है ‘‘गाय का दूध व हो शिफा और गाय का माँस बीमारी है‘‘ औरयदि हम मोहम्मद(स.ब.अ.)जीवनचरित देखे
सहाबियां का अध्ययन करे, सूफी परंपरा को छान ले कही भी किसी भी प्रकार से इनके द्वारा गोमाँस भक्षण का जिक्र नही आता है। ईरान के प्रसिद्व इस्लामी विद्यान अल ग़जाली1058 - ने दीन‘‘ के पृष्ठ 23 पर 17-19 पंक्ति है वह महत्वपुर्व बात का उल्लेख किया हे वह लिखता है।
‘‘गाय का माँस मर्ज यानि कि बीमारी हे, उसका दूधशिफा यानि स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है और दवा है तिब़-ए-नब़वी(हज़रत मोहम्मद सल्ल.की चिकित्सा पद्वति)                       ‘‘जिस मुल्क में रहो वहाँ के कानून का पालन करो ‘‘‘‘फतवए हुमापूंनी भाग ा । पृष्ठ 360 में लिखा है
गाय की कुर्बानी करना ईस्लाम का नियम नही हैबकरे और भेड़ की कुर्बानी गाय की कुरर्बानी से अच्छी है (दारूलमुख्तियार भाग4 पृष्ठ 288)
गरीब मुस्लमानों के लिए कुर्बानी जरूरी और नैमिस्तक नही है गरीब मुस्लमानों के लिए कुर्बानी जरूरी और नैमिस्तक नही है
 (मौलाना हसन निज़मी का फतवा)
‘‘ना तो कुरान और न अरब की प्रथा ही गो की कुरबनी का समर्थन करती है‘‘                (हकीम अजमल खाँ)
न उसके मांस अल्लाह को पहुँचते हैं, और न उनके रक्त, परंतु उसे तुम्हारा तक्वा (धर्मनिष्ठा) पहुँचता है। (कुरआन,सूरहअलहज्ज़,आयत-37)
राष्ट्रीय मुस्लिम तंजीम
राष्ट्रीय मुस्लिम तंजीम के बैनरों पर एक नारा लिखा दिखता है गाय नहीं कटने देंगें, देश नहीं बंटने देंगे ये नारा यथार्थ ही है क्योंकि पिछले कई सौ बर्षो से गोहत्या एक बड़ी वजह रही है जिसने इस देश के दो बड़े संप्रदायों को हमेशा आपस में संधर्षरत रखा और कभी भी उनके बीच स्थायी भाईचारा और एकता पनपने ही नहीं दी।
जब किसी देश के दो बड़े संप्रदाय आपस में संधर्षरत हों तो फिर वो देश कभी तरक्की नहीं कर सकता। देश के दो बड़े संप्रदायों के बीच का संशय और अविश्वासअबु नैम मुस्तदरिक अल हाकिम‘(तिब-ए-नबवी, पृष्ठ - 320 ) राष्ट्रीय एकात्मता को खंडित करता है और अंततः यही विभाजन की वजह भी बनती है। 1947 में सनातन काल से अखंड रही भारत भूमि विभाजित हो गई। इस विभाजनके पीछे कई वजहें थी जिसमें एक बड़ी वजह गोहत्या भी थी। मुसलमान जहाँ गोहत्या को अपना मजहबी अधिकार मानते हैं वहीं किसी हिंदू के लिये गाय देवी और माँ दोनों का का दर्जा रखती है। गाय को लेकर विचारों का यह भारी अंतर और इस मसले पर हो रहे झगड़ों ने भारत विभाजन की मांग करने वाले मुहम्मद अली जिन्ना जैसे लोगों को एक तर्क पकड़ा दिया। मुहम्मद अली जिन्ना ने विभाजन के समर्थन में जो तर्क दिये थे उसमें उन्होनें ये भी कहा था कि हिंदू और मुसलमान कभी भी एक साथ नहीं रह सकते क्योंकि चीजों को लेकर दोनों की मानसिकता में भारी अंतर हैमसलन एक तरह हिंदू जहां गाय को माता मानता है वहीं मुसलमान उसे काटता और खाता है।इसलिये अगर गोहत्या का मसला न होता तो शायद देश विभाजन की एक बड़ी वजह टल जाती।
गोरक्षा और गोकशी का प्रश्न भारत के सामने सदियों से अनुत्तरित खड़ा है। इस मसले को लेकर भारत में हिंदू और मुस्लिमों के बीच जितने फसाद हुये हैं अगर उसकी सूची बनाई जाये तो एक वृहद् ग्रंथ बन सकता है। गोहत्या के मसले के न सुलझने की सबसे बड़ी वजह है कि मुस्लिम समाज ने कभी अपने मजहब की किताबोंऔर मुस्लिम उलेमाओं तथा बुद्धिजीवियों के फतवों और मशवरों की रौशनी में इस मसले का समाधान सोचा ही नहीं। इस्लाम की तालीमातों के अनुरुप किसी मसले पर रहनुमाई के लिये मुसलमानों को क्या करना चाहिये, इसका निर्देश नबी-करीम (सल्ल0) की एक हदीस में मौजूद है, जिस में आता है कि एक इंसान नबी-करीम (सल्ल0) के पास आया और पूछा, हम हिदायत के लिये किसकी तरफ देखें? नबी-करीम (सल्ल0) ने फर्माया, कुरआन की तरफ। उस इंसान ने पूछा उसके बाद ?आप (सल्ल0) ने फरमाया, मेरी सुन्नत की तरफ। उस व्यक्ति ने फिर पूछा, अगर वहांसे भी समाधान न मिला तो ? तो आप (सल्ल0) ने फरमाया, अपने उम्मत के उलेमाओंकी तरह रुजु होना। उस व्यक्ति ने फिर पूछा, अगर वहां से भी समाधान न मिला तो? तो इसपर आपने फर्माया, फिर खुदा ने तुम्हें अक्ल किस लिए दिया है ?
इसका अर्थ है कि किसी भी मसले का सबसे बेहतर समाधान मुसलमानों को कुरआन से तलाशनी चाहिये, वहां से समाधान नहीं मिलता तो हदीस और नबी-करीम (सल्ल0) की सीरत से तलाशनी चाहिये और वहां से भी जबाब न मिलता हो उम्मत के उलेमाओं की तरफ रुजु होना चाहिये और वहां भी अगर निराशा हाथ लगे तो अपने अक्ल का इस्तेमाल कर इस मसले का समाधान खोजना चाहिये। गोहत्या और गोरक्षा के बिषय भी इसी आधार पर विचारणीय है। गाय के बिषय पर सबसे बड़ी बात ये है कि इस मसले का समाधान इन चारों ही रास्तों से मिलता है। कुरआन और नबी-करीम (सल्ल0) की सीरत में तो इस मसले का समाधान है ही साथ ही इस्लाम के बुर्जुग उलेमाओं ने भी इस मसले पर सार्थक रहनुमाई की है और हमारी अक्ल भी इस मसले का वही समाधान पेश करती है जो इन तीन रास्तों से निकल कर आता है।जिन लोगों ने इस मसले पर विचार किया और हिंदू-मुस्लिम वैमनस्यता की इस बड़ी सद्प्रयास करने वाले मुस्लिमों की लबंी ऋख्ंाला गोहत्या के मसले को लेकर चल रहे तमाम फसाद और झगड़ों के बाबजूद हम सब के लिये सबसे सुखद बात ये है कि इस देश में कई ऐसे ऋषितुल्य मुसलमान रहें हैं जिन्होनें अपनी-2 क्षमताओं के अनुरुप अहमद और मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे कई बड़े मुस्लिम नेताओं ने मुसलमानों का आह्वान किया कि वो अंग्रेजों के इस चाल में न फंसे और गोहत्या से दूर रहें। प्रख्यातशायर अकबरइलाहाबादी ने मुसलमानों को सलाह देते हुये कहा-
अच्छा यही है फेर ले आंखों से गाय को ,
क्या रखा है रोज की इस हाय-हाय से।
हजरत मुहम्मद (सल्ल0) साहब की जानवरों के प्रति भावना
हजरत मुहम्मद (सल्ल0) के बारे में पवित्र कुरान सूरह अंबिया की 107वीं आयत में फरमाता है, ‘ऐ मुहम्मद ! हमने आपको सारे आलम के लिये रहमत बना कर भेजा है।
रसूल (सल्ल0) की रहमत सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं थी वरन् आपके रहमत के समंदर में बेजुबान जानवर और परिंदें भी बसते थे। ये दया इतनी ज्यादा थी कि एक बिल्ली को तकलीफ देने वाली एक महिला के बारे में आप (सल्ल0) ने फरमाया था कि यह औरत इस बिल्ली के कारण नरक में दाखिल होगी, जिसने इसे बांध दिया और न ही उसे छोड़ा ताकि वह जमीन के कीड़े-मकोड़े खा सके। (ये हदीस सहीह है और अब्दुल्ला बिन उमर से रिवायत हुई है) इसी तरह अबू हुरैरा (रजि0) से रिवायत एक हदीस है जो बुखारी और मुस्लिम शरीफ दोनों में आयी है। इस हदीस के अनुसार रसूल (सल्ल0) ने एक व्यक्ति को जन्नत की खुशखबरी दी थी क्योंकि उसने प्यास से हांफ रहे एक कुत्ते को पानी पिलाया था। अबू-हुरैरा (रजि0) इस धटना का बयान करते हुये फरमातें हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फरमाया, एक बार एक व्यक्ति रास्ते पर चल रहा था कि उसे बड़ी तेज़ प्यास लगी उसे एक कुआँ मिला जिसमें उतरकर उसने पानी पिया। फिर बाहर निकला तो देखा कि एक कुत्ता प्यास से हांफ रहा था और गीली मिट्टी चाट रहा था। यह देखकर वह आदमी कुएं में उतरा और अपने मोजे को पानी से भर लिया फिर उसे अपने मुँह में थामा और कुएँ से बाहर आकर उस कुत्ते को पिला दिया। इस पर खुदा ने उसकी मग्रिफत फरमा दी। इस वाकिये को सुनाने के बाद आप (सल्ल0) ने फर्माया, प्रत्येक आर्द्र जिगर में तुम्हारे लिये प्रतिदान है। मुहम्मद (सल्ल.) की दयाशीलता का पता इस वाकिये से भी चलता है जिसमें आता है कि एक आप (सल्ल0) किसी अंसारी के बाग में दाखिल हुये, अंदर एक ऊँट था जो आप (सल्ल0) को देखकर आवाज करने लगा और उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे तो आप (सल्ल0) उसके पास आये और उसकी गर्दन पर हाथ फेरा तो वह चुप हो गया। आप (सल्ल0) ने पूछा, इसका मालिक कौन है? एक अंसारी लड़के ने उत्तर दिया कि ये मेरा ऊँट है। तो रसूल (सल्ल0) ने फरमाया, क्या इस जानवर के बारे में तुमको अल्लाह का डर नहीं है। इस ने मुझसे शिकायत की है कि तुम इसे तेज हांकते हो और निरंतर उसके ऊपर भारी बोझ डाले रखते हो। (अबू दाऊद शरीफ)
इसी आशय की एक हदीस हजरत अब्दुल्ला बिन जाफर बिन अबी तालिब (रजि0) से रिवायत हुई है वो कहतें हैं कि एक बार नबी करीम (सल्ल0) ने हम लोगों से कहा, क्या तुम उस जानवर के बारे में अल्लाह से डरते नहीं जिसको अल्लाह ने तुम्हारे अधिकार में दे रखा है। क्योंकि वह मुझसे शिकायत करता है कि तुम उसे भूखा रखते हो और हमेशा उससे मेहनत का काम लेते हो। (मुस्लिम शरीफ) हजरत जाबिर से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने किसी जानवर के मुँह पर मारने और दागने से मना किया है। (हदीसः मुस्लिम शरीफ) हजरत सहल-बिन-हनज़लिय्यह कहतें हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) एक ऊँट के पास से गुजरे जिसकी पीठ उसके पेट से लग गई थी। यह देखकर नबी (सल्ल0) ने फरमाया, इन बेजुबान जानवरों के संबंध में अल्लाह से डरो। इनपर ऐसी हालत में ही सवारी करो जबकि ये उसके योग्य और स्वस्थ हों।
हजरत मुहम्मद (सल्ल.) और गाय
हजरत मुहम्मद (सल्ल.) गाय के महत्त्व को जानते थे इसलिये समय-समय पर आपने अपने उम्मतियों को गाय की महत्ता से आगाह कराया। हयातुल हैवान में आता है रसूल (सल्ल0) ने फरमाया, गाय का दूध और धी शिफाबख्श है और इसका मांस बीमारी को बढ़ाने वाला है।
इमाम तबरानी ने भी इस हदीस को सहीह (प्रमाणिक) करार दिया है। घ्हयातुल हैवान में इब्ने मसूद (रजि0) से रिवायत है कि नबी (सल्ल0) ने फरमाया कि तुम गाय का दूध और धी खाया करो तथा इसके गोश्त से बचा करो। वो इसलिये क्योंकि इसका दूध और घी इलाज है और गोश्त में बीमारी है।
हजरत अब्दुल्ला इब्ने अब्बास से रिवायत एक हदीस में आता है कि पीने की चीजों में नबी (सल्ल0)-ए-करीम को सबसे अजीज दूध था। बीबी आएशा (रजि0) से रिवायत एक हदीस है जिसमें वो फरमाती है कि रसूल (सल्ल0) को हुजूर को खजूर में मक्खन और दही मिला कर खाना बड़ापसंद था।
नबी (सल्ल) ने ही नहीं वरन् इस्लाम के चैथे खलीफा हजरत अली (रजि.) ने भी यही फरमाया है कि गाय के घी से ज्यादा शिफा किसी भी चीज में नहीं है।
अबू दाऊद शरीफ में हजरत अब्दुल्ला बिन उमर (रजि.) से रिवायत एक हदीस है जिसमें वो फरमातें हैं कि जंगे-तबूक के दौरान नबी (सल्ल0) की खिदमत में पनीर पेश किया गया तो आपने बिस्मिल्ला पढ़कर उसे काटा। (यानि रसूल (सल्ल.) पनीर को पसंद फरमाते थे)
नबी (सल्ल.) ने फरमाया, गाय के दूध से इलाज किया करो क्योंकि अल्लाह ने इसमें शिफा रखी है और यह हर किस्म के दरख्तों पर चरती है।तिरमिजी शरीफ में हजरत मल्लिका बिंते अमरु (रजि0) रिवायत करतीं हैं कि नबी-करीम (सल्ल0) ने फरमाया, गाय के दूध में शिफा है, इसका मक्खन मुफीद है, अलबत्ता इसके गोश्त में बीमारी है। इसी रिवायत को हजरत सुहैब (रजि.) ने इब्नुस्समनी में नकल की है।
इमाम रिजा (रह.) जो इस्लाम में बहुत बड़े आबिद, हकीम और विद्वान गुजरें हैं वो जब तूस नामक जगह में कियाम कर रहे थे तो उन्होंनें लोगों की एक मजलिस को खिताब करते हुये फरमाया था कि गाय के दूध से बच्चे का दिमाग तेज होता है वहीं गाय का गोश्त दिमाग और याददाश्त को कमजोर बनाता है।इमाम गजाली (1058-1111) जैसे बड़े विद्वान ने अपनी किताब इहया उलूमूल-दीन में लिखा था, गाय का मांस खाना बीमारियों का कारण है, इसके दूध में शिफा और इसका मक्खन दवा है।
973 ईसवी में सीरिया में जन्में जन्मांध मुस्लिम कवि अबू याला  शाकाहारी थे और मुसलमानों को गाय आदि के मांस खाने  से परहेज करने को कहते थे।
हजरत मुहम्मद मौलाना फारुखी साहब ने अपनी किताब में गाय के महत्त्व को अर्थव्यवस्था से जोड़ते हुये कहा था कि गाय दौलतकी रानी है।
मौलाना हयासाहबखानखाना ने गौहत्या को हदीसके खिलाफ बताया था।
अल्लाह की नेमतों में गाय का मांस कहीं भी नहीं पवित्र कुरआन में और अहादीसे-नबबी में जन्नत और धरती पर के बतौरनेअमत कई खाने-पीने लायक चीजों के नाम आयें है, वल्अर्-ज व-ज-अहा लिल अनामि, फीहा फाकि हतुंव् वन्नख्लु जातुल् अक्मामि, वल्हब्बु जुल्-अस्फि वर्-रैहान, फबि-अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान
!‘यानि और उसी ने खल्कत के लिये जमीन बिछायी, उसमें (धरती) मेवे और गिलाफ वाली खजूरें हैं, और भुस के साथ अनाज और रैहान, तो ऐ जिन्न और इंसान तुम दोनों अपने रब की कौन-2 सी नेमतों को झुठलाओगे?‘ (सूरह रहमान, 10-12) इसी तरह बाद की आयतों में खजूर और मेवे को नेअमत बताया गया है। (सूरह रहमान, आयत-68)
इसी तरह सूरह वाकिया में जन्नती नेअमतों के बारे में कुरआन कहता है।‘‘अम्मा इन् का-न मिनल मुकर्रबीन, फरौहुव्-व रैहानु व्-व जन्नतु नअीम।‘‘ अर्थात्, ‘‘तो जो खुदा के निकटवर्तीहैं (उनके लिये) आराम, खुश्बूदार फूल और रैहान है।‘‘ (सूरह वाकिया, 88-89)कुरआन में और भी कई आयतें हैं कि जिनमें ऐसी नेअमतों का वर्णन आया है
उदा.-श्और वहां मेवे हैं जिसे पसंद करे। (सूरह मुरसलात, 77:42) और जो लोग ईमान ले आये और अनुकूल कर्म किये, उन्हें यह शुभ सूचना दे दो कि उनके लिये ऐसे बाग हैं जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जब-जब इन बागों में से कोई फल इन्हें खाने को दिया जाएगा, तो कहेंगें कि यह तो वही है जो इससे पहले हमें मिला था। (सूरह अल-बकरह, आयत-25)वे वहां निश्चिंततापूर्वक हर प्रकार के मेवे तलब करते होंगें। (सूरह अद-दुखान, आयत-55)उस जन्नत का हाल यह है जिसका वादा डर रखने वालों से किया गया है, उसमें पानी की नहरें हैं जिसमें सड़ांध नहीं, और दूध की नहरें हैं जिनका मजा बदला नहीं, और शराब कीनहरें हैं जो पीने वालों के लिये स्वादिष्ट है, और साफ-सुथरे शहद की नहरें हैं, और उनके लिए वहाँ हर प्रकार के फल हैं। (सूरह मुहम्मद, आयत-15)और बहुत सा मेवा है। (सूरह वाकिया, 5632) और मेवे जो पसंद करें। (सूरह वाकिया, 5620)तुम्हारे लिये यहाँ बहुत से मेवे हैं जिन्हें तुम खाओगे। अज-जुखुरुफ,आयत-73 ) बाग है और अंगूर (सूरहनबा,आयत-78:32)जन्नतियों के लिये उपलब्ध भोजन में अगर मांस का वर्णन आया भी है तो वहां वह वर्णन केवल पक्षियों के मांस है। (सूरह वाकिया, आयत-21) परंतु इन जन्नती नेअमतों में कहीं भी गाय का मांस का जिक्र नहीं है। अगर गाय के मांस की अहमियत इस्लाम में इतनी ही अधिक होती तो क्या अल्लाह उसे जन्नत की या धरती की नेअमतों में शामिल नहीं करते?       
गौ मुस्लिम राजनीति में एक षड्यंत्र
मानसिक विकृतों और राष्ट्रद्रोहियों का प्रपंच इस देश में कई लोग ऐसे हैं जो नहीं चाहते कि गौहत्या बंद हो क्योंकि उनके लिये यह मसला अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और कई दूसरे स्वार्थो को पूरा करने का है।
गौहत्या का मसला यूं ही चलता रहे इसके लिये हमेशा उनकी ये कोशिश रहती है कि किसी भी तरह इस मुद्दे को उलझा कर रखा जाये और ऐसा करने के लिये वो कई तरह की दलीलें भी देतें हैं

मसलन, हिंदुधर्मग्रंथों और विषेषकर वेदों में यह वर्णन आता है कि हिंदू भी गोमांस का सेवन करते थे और हिंदुओं में गोहत्या सामान्य धटना थी या फिर गोहत्या के लिये केवल मुसलमान ही दोषी नहीं है क्योंकि कोई लेकिन वोह अपने सारे फतवे, आयतें फरमान भूल जाते है. 

कोई टिप्पणी नहीं: