गौ’
भारतीय संस्कृति से आधुनिक जीवन तक पूजनीय है। ‘कामधेनु’ कल्पना नहीं हैं। आज के युग में ‘धेनु’ हमारी कामनाओं की पूर्ति और स्वास्थ्य की
रक्षा करती है। भारत का दुग्ध उत्पादन 2014-15 में बढ़कर 146.31 करोड़ टन पहुंच गया है, जबकि दूध की प्रति व्यक्ति
उपलब्धता भी बढ़कर 302 ग्राम हो गई है| भले ही भारत वैश्विक
दुग्ध उत्पादन परिदृश्य में पहले स्थान पर हो, लेकिन प्रति
पशु दुग्ध उत्पादकता में वह विकसित डेयरी देशों के औसत से बहुत पीछे है। वैसे भी
गाय –भेंस- जर्सी गाय आदि के दुग्ध में
बड़ा अंतर है
क्या सभी दुग्ध अमृत हैं ? हमारे लिए,
'गाय' मूल रूप से हमारे स्वदेशी नस्लों की गाय,
जिसमे कुछ निहित दिव्य और प्रमाणित गुण है, 50 से अधिक स्वदेशी नस्लों, जिनमें से कुछ के नाम नीचे का उल्लेख कर रहे हैं
1.गीर 2. काकरेज 3. हरियाणा 4. नागौरी 5. अमृतमहल 6. हल्लीकर, 7.मलावी 8. निमरी 9. दाज्जल 10. अलाम्हादी 11. बरगुर 12. कृष्णवल्ली
13. लालसिन्धी 14. थारपारकर 15. गंगातीरी 16. राठी 17. ओंगोल
18. धन्नी 19. पंवार 20. खेरिगढ़ 21.
मेवाती 22. डांगी 23. खिल्लार
24. बछौर 25. गोलो 26. सिरी कांगयम यह नस्लें अपने उत्तम दुग्ध, शक्ति और पर्यावरण
रक्षक, दुग्ध क्षमता, गुणवता, शक्ति के लिए विश्व विख्यात है| आज ब्राजील, आस्ट्रेलिया, इस्रायल और योरप के कितने ही देशों में
इन को अर्थ व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. गिन्नी विश्व रिकार्ड में गीर और
अंगोल को शामिल किया गया है|
‘गौ’दुग्ध
को अमृत कहा गया है क्योंकि इसके दूध में इतने पदार्थ
हैं जिनसे मानव शरीर की तमाम बीमारियों का इलाज संभव है। गाय के दूध में आमेगा-3
प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिससे आधुनिक चिकित्सा पद्धति में
कई रोगों की रामबाण औषधियां तैयार की जाती हैं। ‘गौ’ अपने जीवनकाल में और मरने के बाद भी हमारा कल्याण करती है। आधुनिक
वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार जिस ओमेगा 3 को इतना
महत्वपूर्ण माना जाता है। वह संसार में केवल हरे चारे पर पोषित गाय के ही दूध में
पाया जाता है। दूध के वसा में असंतृप्त वसा ओमेगा 3 और ओमेगा
6 कुल वसा का 25 से 30 प्रतिशत तक ही होता है। इनको ई एफ ए (इसेंशल फैटी एसिड) आवश्यक वसा कहा
जाता है क्योंकि यही वह वसा तत्व है जो मानव शरीर के लिए अत्यन्त आवश्यक और
महत्वपूर्ण है।
एक शोधनुसार चारा, दाना और पानी के साथ जो विषाक्त पदार्थ गोमाता खाती
हैं उन्हें वह कभी भी अपने दूध, मूत्र या गोबर के माध्यम से
बाहर नहीं निकालती जबकि बकरी, भैंस तथा सभी पशु विषाक्त
पदार्थों को दूध, मूत्र तथा गोबर से बाहर निकाल देते हैं।
उक्त प्रक्रिया के कारण गाय का दूध, मूत्र तथा गोबर पवित्र,
पोषक तथा औषधिगुणों से युक्त माना गया है। जल, पृथ्वी, वायु, आकाश और अग्नि
से पंच महाभूत शरीर की रचना होती है। पांचों तत्व सभी प्राणियों में भिन्न-भिन्न
मात्रा में पाया जाता है, लेकिन गौ माता के शरीर में पांचों तत्व संतुलित मात्रा में पाया जाता है
इसलिए गाय में दैविक शक्ति अधिक होती है।
गो का दूध भैस और बकरी के दूध की पौष्टिकता से कम होता है। लेकिन
संघटन की दृष्टि से गाय का दूध माता के दूध के समकक्ष होता है। मनुष्य का आहारनाल
जितनी आसानी से गाय का दूध पचा लेती है उतनी आसानी से भैंस के दूध को नहीं पचा
पाता क्योंकि गाय का दूध ही रोगी, वृद्ध तथा बच्चों को दिया जा सकता है। भैस के दूध से
इन लोगों को कब्जियत हो सकती है। इसीलिए पंचगव्य में गौमाता के दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है।
वैदिक
काल में गाय को दो प्रजातियों में देखा जाता था। एक वह गाय जिनके दूध में कम वसा
होती थी और दूसरी वे गायें जिनकी दूध में वसा का अनुपात अधिक होता था। प्राचीन
भारतवर्ष में पाणिनीय कालीन विवरण से ज्ञात होता है कि उस समय साधारण गाय दूध में
एक प्रतिशत से कम वसा होनी बतायी जाती थी।
वैदिक ग्रन्थों के अनुसार गौ माता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है। अगर यह सत्य है तो इससे उत्पन्न
होने वाले दूध, मूत्र तथा गोबर किसी न किसी देवी-देवता के
सान्निध्य से गुजरते हैं। मान्यताओं के अनुसार गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में गंगा तथा दूध में सरस्वती का निवास है। इसीलिए कहा जाता है कि
गो दुग्ध के सेवन से बुद्धि तीव्र होती है। दूसरे अर्थों में गो दुग्ध में सोम,
दही में वायु, गोबर में अग्नि तथा गोमूत्र में
वरुण देव का निवास माना गया है। अत: गाय का दूध, मूत्र तथा
गोबर दिव्य शक्तियों वाले माने जाते हैं। ऋग्वेद के 1/22/14
वें मंत्र में यह उपदेश मिलता है कि घृत और गो दुग्ध के घृत को
बुद्धिमान लोग बहुत सोच-समझकर प्रयोग में लाते हैं। आधुनिक विज्ञान यह बताता है कि
आहार में ओमेगा 3 से डी.एच.ए. तत्व बनता है इसी तत्व से मानव
मस्तिष्क और नेत्र शक्ति बनती है। इ.एफ.ए. में दो तत्व ओमेगा 3 और ओमेगा-6 बताये जाते हैं। दोनों तत्व जब संतुलित
अनुपात में पोषण द्वारा प्राप्त होते हैं तभी मानव मस्तिष्क कुशाग्र और संतुलित
होता है।
कालिदास
कर्चित रघुवंश काव्य में वर्णन है कि राजा दिलीप को गुरु वशिष्ट ने नंदिनी नामक गौ
को चराने और सेवा का सुझाव दिया| यानी नंदिनी जंगल में चरे और राजा उसका ध्यान
करें| इस अनुष्टान से नंदिनी जो जड़ी बूटियों का सेवन करती और राजा जो उसके पीछे
चलता यानी इस यात्रा व्यायाम से राजा का तन भी कृश हो गया और दिन में मात्र दो बार
उस दुग्ध सेवन से दुग्धकल्प भी हो गया और सूर्यवंश यानी रघुवंश आगे बढ़ा|
गाय
से प्राप्त पांच गव्यों के मिश्रण को ‘पंचगव्य’ कहते हैं। पंचगव्य में गाय के ही
गव्यों को महत्व क्यों दिया जाता है–
गौमाता का दूध पीने से मस्तिष्क तथा तंत्रिकातंत्र की कोशिकाओं की
बढ़त,
रखरखाव तथा मरम्मत होती है। जिन्दगी भर गौ दुग्ध पान करने वालों को
कैंसर तथा खासतौर पर माताओं और बहनों को स्तन का कैंसर नहीं होता। गाय का दूध अन्य
प्राणियों के दूध से अधिक गुणकारी होता है। इसलिए ‘पंचगव्य’
में गाय के दूध का प्रयोग होता है।
‘पंचगव्य
प्राशनम् महापातक नाशनम्’
पंचगव्य को सर्वरोगहारी माना गया है। अलग-अलग रूपों में प्रत्येक
गव्य त्रिदोष नाशक नहीं हैं। परन्तु पंचगव्य के रूप में एकात्मक होने पर यह
त्रिदोषनाशक हो जाता है। अत: त्रिदोष से उत्पन्न सभी रोगों की चिकित्सा ‘पंचगव्य’
से सम्भव है।
पंचगव्य एक अच्छा प्रोबायोटिक है। प्रोबायोटिक रोग न उत्पन्न करने
वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मनुष्य को उपयोगी किस्म का फ्लोरा उपलब्ध कराते हैं।
प्रोबायोटिक शरीर की व्याधियों को कम करके प्राणी की उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता ओज और रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं। पंचगव्य एक अच्छा
एन्टीआक्सीडेन्ट तथा एक अच्छा विषशोधक है। पंचगव्य में मौजूद घी विष शोधक का कार्य
करता है। उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त पंचगव्य का प्रयोग रक्तचाप, शुगर, मिर्गी तथा अन्य बहुत से रोगों में भी लाभकारी
हैं इस प्रकार से सर्वविदित है कि कैंसर जैसे रोगों के अलावा अन्य कई रोगों में भी
‘पंचगव्य’ की भूमिका महत्वपूर्ण है।
आधुनिक विज्ञान यह भी बताता है कि मानव
मस्तिष्क का 70 प्रतिशत भाग फास्फोरस युक्त
वसा तत्व जिन्हें विज्ञान की भाषा में डी.एच.ए. और इ. पी. ए. आहार से प्राप्त
ओमेगा-3 से ही बनते हैं। यही तो वह वसा तत्व हैं जो गाय के
दूध को अमृत तुल्य बनाता है। सभी वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव वीर्य भी उन्हीं
दो तत्वों से बना है जिससे मानव मस्तिष्क बना है।
गाय को बांधकर रखने से श्रमविहीन गायों के दूध
में अवगुण उत्पन्न हो जाते हैं जैसे श्रम विहीन जीवन शैली से रहने वाले मनुष्यों
में रोग आ जाते हैं। मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए असंतृप्त वसा
का आहार में इतना महत्व है कि ओमेगा-3 की कैप्सूल दवा के रूप में सब
रोगों के लिए रामवाण बताकर अरबों रुपयों का व्यापार किया जा रहा है। इसलिए गायों
के दूध का प्रयोग करें और स्वस्थ रहें।
हमारी शारीरिक
आवश्यकता के सभी प्रकार के तत्व हमारे दूध में मिल जाते हैं। गाय के दूध के पीने
से थायराइड नहीं होता है क्योंकि गाय के दूध में थायराइडग्लाण्ड का अंश भी मिलता
है। गौ दुग्ध निर्बल को सबल तथा रोगी को नीरोगी बनाने में सबसे उत्तम है।जो लोग
शुद्ध शाकाहारी हैं, उन्हें जितने प्रोटीन की जरूरत
है, वह उनको दूध और घी के सिवाय किसी अन्य वस्तु से नहीं मिल
सकता। दूध में रोगों को नष्ट करने की ताकत विद्यमान है। गाय के दूध को नाड़ी
दुर्बलता नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।यह वायु, पित्त
एवं खून की खराबी में भी गुणकारी है।
इसलिए पेट की
बीमारियों में अक्सर प्राकृतिक चिकित्सक दुग्ध कल्प करवाते हैं।
१. नक्सीर— दूध में शक्कर मिलाकर या घी मिलाकर नाक में टपकाने से नक्सीर बंद हो जाती
है।२. हिचकी— दूध की मलाई में चीनी और
इलायची मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है।३. प्रदर— भोजन के पश्चात् मीठा दूध पीने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।४. आधा
सीसी— गाय के दूध का खोआ खाने से, बादाम की पिसी हुई गिरी दूध में डालकर खोआ बनाकर खाने से आधासीसी या आधे
सिर में होने वाले दर्द में फायदा करता है।५. वातिक कास एवं अनिद्रा— पाव भर दूध में ५० ग्राम खसखस के दाने एवं शक्कर डालकर उबालें। कुछ देर
बाद छान लें। शाम समय यह दूध पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है और नींद आराम से आ
जाती है।६. मूत्र कृच्छ एवं मधुमेह— दूध
में गुड़ या घी डालकर पिलाने से पेशाब करते समय होने वाली तकलीफ एवं मधुमेह में
फायदा होता है।७. आंत्र शोथ— गरम सुहाता
हुआ दूध २ चम्मच फीका ही लेकर धीरे—धीरे उसे पेट पर खाने से
पहले मलें फिर एक घंटे तक विश्राम करने के बाद भोजन कर लें, तत्पश्चात्
लघु शंका को जाना चाहिए। इससे आँतों में होने वाला शोथ दूर हो जाता है तथा आँते
मजबूत हो जाती हैं।८. पाण्डु रोग— लोहे
के बर्तन में गर्म किया हुआ दूध ७ दिन तक पथ्य के साथ पीने से पाण्डु रोग तथा
संग्रहणी में लाभ करता है।९. बलवद्र्धक— दूध,
घी, चासनी पीने से शरीर में बल की वृद्धि होती
है। बल बढ़ाने वाला, हल्का, ठण्डा,
अमृत के समान दीपन—पाचन होता है। दिन के
प्रारम्भ में पीया हुआ दूध वीर्य बढ़ाने वाला पौष्टिक और अग्नि बढ़ाने वाला होता
है। दिन के उत्तरार्ध (सांय) में दिया हुआ दूध बलकारक, कफ
नाशक, पित्त—हारी, टी.वी. रोग को दूर करने वाला, वृद्धों में यौवन का
संचार करने वाला होता है। यह एक उत्तम पथ्य है।१०. इससे क्षय और कैंसर तक जड़ रहित हो सकते हैं |
देश की जनता को आज नकली, मिलावटी, रासायनिक दुग्ध से बचना हो तो हमे अपनी
गौप्रजातियों की रक्षा व् सम्वर्धन करना होगा| ना केवल गौदुग्ध, वरण गौमुत्र, गौबर
और बैल शक्ति को ग्रामीण विकास, महिला शक्ति, युवा रोजगार, रसायन रहित कृषि आदि को
बढ़ाना होगा |
- डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल