गुरुवार, 5 जुलाई 2018

महाराष्ट्र बैलगाडी दौड़-पशु क्रूरता के साक्षात दर्शन - डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल

मानव व् प्राणी सम्बन्ध जन्म जन्मान्तर से, आदिकाल से चला आ रहा है| गोपाल को हमने गाय बछड़े के साथ क्रीडा करते देखा है और प्रभु शंकर आज भी नंदी के बिना अधूरे पाए जाते हैं| पृथम मनु जिनसे हम मानव जाने जाते हैं और जिन पर्थु के नाम पर धरा को पृथ्वी जाना जाता है उन्होंने इस धरा पर गौ दुह कर और बैल शक्ति उपयोग से कृषि प्रारम्भ किया माना जाता है | मूर्धन्य लेखक मुंशी प्रेमचंद जी की कितनी ही पुस्तकों का आधार बैल, दो बैलों की जोड़ी, गोदान देखे गये है| आदरणीय कन्हैया लाल मानिकलाल मुंशी, धूमकेतु, राहुल सांस्कृतायन, वृन्दावनलाल वर्मा, आचार्य चतुरसेन जैसे लेखको ने अपने इतिहासपरक उपन्यासों में बैलों के युध मैदान में उपयोग को दर्शाया है|

प्रसिद्ध चलचित्र मदर इण्डिया की बैलगाडी दौड़ को क्या लोग आज भी भूल सकते हैं| तमिलनाडु के प्राचीनतम जल्लीकट्टू को देखने हेतु आज भी विश्व से सैलानी भारत आते हैं|

भारत की आत्मा दो बैलों की जोड़ी में बसती देख स्वतन्त्रता सेनानियों ने कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलो की जोड़ी को रखा था | यानी देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बैलशक्ति का अविस्मरणीय योगदान था संग में कृषक फसल आने के पश्चात् अपने आमोद प्रमोद में भी इन्हें सम्मलित करता था|

विभिन्न धार्मिक उत्सव- आयोजन, विशिष्ट जनों के जन्मदिन, पुन्य तिथि आदि अवसरों पर इन्हें सजाना सवारना अलंकृत करना, पूजा करना तथा अपने क्षेत्र में मान पाने हेतु इनकी शक्ति का, दौड़ा कर, पकड़ कर,प्रदर्शन करना देश के लगभग ५-६ लाख ग्रामो में किसी न किसी रूप में देखा जाता था और आज भी प्रचलन में है|

इस प्रदर्शन को बैलशक्ति द्वारा नस्ल सुधार के साथ साथ उन्हें दक्ष, स्वस्थ्य और जागृत रखने के साधन के रूप में भी माना जाता है|

आज का विषय महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रो में सालभर होने वाली विभिन्न बैलगाडी दौड़ो का है| साधारणत: उपरोक्त विवरण के पश्चात इन दौड़ो में में कोई क्रूरता नजर नही आएगी,लेकिन जब इसका विवेचन करेंगे तो माथा घूम जायेगा|

पूर्ण भारतवर्ष में बैलगाड़ी दौड़ पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय २०१४ में रोक लगा दी थी जिसका उलंघन विशेषत: महाराष्ट्र में निरंतर हो रहा है| जब तक यह रोक प्रभावी है जिसे हटाने को माननीय बम्बई उच्च न्यायालय ने भी गत वर्ष इनकार कर दिया था| भारत सरकार की संस्था भारतीय जीवजन्तु कल्याण बोर्ड ने बारम्बार महाराष्ट्र सरकार को इस विषय में चेताया| अगर यह रोक नही भी होती तो भी क्रूरता निवारण अधिनयम १९६० के नियमानुसार इन दौड़ो में क्रूरता करना असंभव सा ही है
क्या होता है इन दौड़ो में?
महाराष्ट्र में लगभग ८ प्रकार की दौड़ें प्रचलन में हैं
१. बैलगाडा शर्यात जो लगभग ५०० मिटर के चढाउ- उतराऊ रास्ता( घाट) बना कर करवाई जाती है जिसमे २०० से अधिक बैल जोडीयाँ भाग लेती हैं जिनमे चालक नही बैठता|
२. शंकरपात-छकड़ी – विदर्भ में शंकरपात व् पश्चिम महाराष्ट्र में छकड़ी जाने वाली यह दौड़, गाड़ीवान द्वारा हांके जाने वाली खुली सडक पर होने वाली दौड़ जिसमे ५-७ बैलगाड़िया १/२ से १ किलोमीटर दोडाई जाती हैं और जीतने वाली जोड़ी को पुन: अन्य विजयी जोड़ी के साथ स्पर्धा करनी पडती है जो ७-८ बार दौहराई जाती है|
३. आरत- पारत ( महाराष्ट्र द्वारा पारित नूतन अधिनियम में भी प्रतिबंधित) गाडी में बैलों की जोड़ी को जोड़ चालक द्वारा संचालितकर मेराथन दौड़ की तरह २५-५० बैलगाड़ियाँ ७ -१० किलोमीटर तक दौडाई जाती हैं|
४. लकुड ओंड़का शर्यात(महाराष्ट्र द्वारा पारित नूतन अधिनियम में भी प्रतिबंधित) बैल को ५-७०० किलो की लकड़ी से बांध कर ५०० से ७०० फीट खीचा जाता है|
५. घोडा-बैल शरायत(शेम्बी गोंडा) (महाराष्ट्र द्वारा पारित नूतन अधिनियम में भी प्रतिबंधित) गाडी में एक तरफ बैल और एक तरफ घोड़ा जोड़ कर चालक द्वारा लगभग ५०० मीटर दौड कर प्रतिस्पर्धा करायी जाती है जो बार बार जीतने वाली गाड़ियों के बीच में दौराहाई जाती है|
६. चिखाल गुट्टा शर्यात (महाराष्ट्र द्वारा पारित नूतन अधिनियम में भी प्रतिबंधित) लकड़ी के कुलाव से बाँध कर चालक २०० मीटर खींचता है|
७. बैलांची टक्कर (महाराष्ट्र द्वारा पारित नूतन अधिनियम में भी प्रतिबंधित) बैल दुसरे बैल को माथे पर जबतक टक्कर मारता है जबतक एक बैल भाग नहीं जाता| गोवा में इसे धीरो कहा जाता है
८. बीच शर्यात समुद्री किनारों के क्षेत्रों में ३-५ किलो मीटर बैलों को बैलगाड़ी में बाँध कर चालक द्वारा दौडाया जाता है|
लगभग ४ वर्षों के सर्वोच्च व् बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा और महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी प्रतिबंधित यह दौड़ें दस बीस नही हज़ारो की संख्या में हो रही हैं| इन में पाया गया कि:-
१. बैलों को दोड़ने से पूर्व क्रूरतापूर्वक मार मार कर गर्म किया जाता है|
२. तेज दोड़ने को उतेजिक करने हेतु दवाई और मादक पेय का सेवन कराया जाता है|
३. बैल की पूंछ को क्रूरता पूर्वक मोड़ा ऐंठा जाता ही नही चालक द्वारा दांतों से काटा भी जाता है|
४. छड़ी- हंटर का केवल क्रूर मारने हेतु ही नही गुप्तांगो में डालने को भी किया जाता है|
५. विशेष निर्मित बेटरीसंचालित यंत्र द्वारा दौड़ते बैलों को दागा जाता है|
६. घोड़े और बैल को जोड़ कर क्रूर अमानविक बैल घोड़ागाड़ी दौड़ कराना आम है|
७. बैल को बैल से टक्कर मारने को उतेजित करना और घायल होना या करना अत्ति क्रूरदृश्य होता है|
८. अमानवीय तरीके से असहनीयदर्द के साथ बैल को अत्ति वजनी लकड़ीकेलाठ को खींचना पड़ता है|
९. बैलगाड़ी दौडाते हुए मोटरसाईकल सवारों द्वारा कर्कशध्वनी, अभद्रशब्दों के साथ पीछा किया जाता है|
१०. एक ही दौड़ में गरीब बैल को ना जाने कितनी बार क्रूरतापूर्वक यातना झेलते हुए दौड़ना पड़ता है|

ग्रामीण परिदृश्य के अतिरिक्त,इन दौड़ो का बड़ा कारण विजयी बैल बैलगाड़ी पर जुआ-सट्टा-बाजी लगना भी है जो बड़े नगरो में बैठे बूकियो द्वारा संचालित किया जाता है तथा राजनितिक समर्थन प्राप्त करने हेतु भी विभिन्न नेताओं के जन्मदिन या किसी महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि पर उन्हें स्मृपित किया जाता है| अखिल भारतीय बैलगाड़ी दौड़ एसोसिएशन, महाराष्ट्र बैलगाड़ी दौड़ एसोसिएशन जैसी शक्तिशाली संस्थाएं पुरे महाराष्ट्र में संचालित हैं| जो गलत मार्गदर्शन करते हुए इन अवैधानिक बैलगाड़ी दौड़ो को संरक्षण प्रदान कर रही हैं| इनका एक हास्यपद आधार कि हम प्रशिक्षण दे रहे हैं नही तो बैल दौड़ना भूल जायेंगे शायद इनको ज्ञात नही कि जैसे चोरी डाके जुए का प्रशिक्षण देना अवैधानिक है वैसे ही इन दौड़ो का प्रशिक्षण भी अवैधानिक है तथा क्रूरता निवारण अधिनियम १९६० के सभी प्रवाधानो का भी उल्लंघन हो रहा है|

अंत में इतना ही कथन है कि महाराष्ट्र सरकार के पशुपालन अधिकारियो व् विभिन्न जिलो के भ्रमण में यह तो विदित हुआ कि विधि विधानों का पालन करवाने में वोह सभी तत्पर है लेकिन अन्य महत्व पूर्ण विषयों में व्यस्तता के कारण शायद यह विषय संज्ञान में नही आता|

प्राणी प्रेमियों में दौड़ संचालकों ने इतना भय बैठा रखा है और कितनी बार हमला झेल चुके हैं कि निराश होकर भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं |
समाधान रूप में पशुपालन विभाग ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करना माना और पुणे, सतारा, सांगली कोल्हापुर आदि जिलाधिकारियों ने भी जिला स्टार पर समितियों का गठन किया है| गत माह से विभिन्न सम्बन्धित विभागों में जागृति आई है और जो दौड़ के ‘घाट’ बने हुए हैं उन्हें तोड़ने का भी निश्चय किया गया है| विभिन्न जिलो में सूचना आने पर सम्बन्धित जिलाधीश, पुलिस अधिक्षक के संज्ञान में लाने पर तुरंत गिरिफ्तारी भी की गयी हैं|

यह अत्ति क्रूर दौडे रुकनी ही होंगी| गत ४ वर्षों से प्रतिबंधित यह होती हुयी दौड़ें निसंदेह सर्वोच्च न्यायालय का अपमान की श्रेणी में आती हैं और कभी भी किसी भी प्राणीप्रेमी द्वारा अवमानना याचिका की जा सकती है| संभाव्य, अगर सर्वोच्च न्यायालय नेप्रतिबंध हटा भी दिया तो भी भारत और महाराष्ट्र राज्य सरकारों को इन्हें बने हुए या, क्रूरता निवारक निर्देश बना कर, पालन सुनिश्चित करना होगा ------डॉ. श्रीकृष्ण मित्तल
महाराष्ट्र में होती विभिन्न क्रूर अमानविक दर्दनाक अवैधानिक बैलगाड़ी दौड़ के चित्र