रविवार, 14 फ़रवरी 2016

गाय और इंसान - गौशास्त्र महिमा खंड

१.   महिमा खंड
गौवंश का अर्थ और महिमा

गोवंश भारतीय जीवनसंस्कृतिईतिहास का अटूट अंग है यानि  जबसे सृष्टि की रचना हुयी तभी से गौ ईतहास का भी प्रारम्भ होता हैआदिकाल में देव और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया थाप्रभु ने कच्छप अवतार लेकर सुमेरु पर्वत को धारण किया और वासुकी नाग को रज्जू के तौर पर प्रयोग में लाकर मंथन किया गया जिसमे पृथम हलाहल विष की ज्वाला से तारने के लिए रत्नस्वरूपा कामधेनु का प्रागट्य हुआ जो सभी मनोकामनासंकल्प और आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम थी.
सर्वसुख प्रदायनी गौ के विषय में एक और कथा आती हैजब सृष्टि का प्रारम्भ हुआ तो ब्रह्मा जी ने मनु को सृष्टि रचना का आदेश दिया जिसके कारण हम
मानव कहलाते हैमनु जिनका नाम पर्थु था उन्होंने गोमाता की स्तुति की और गोकृपा अनुसार गौदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया पर्थु मनु के नाम से यह धरा पृथ्वी कहलाई.    
संसार में अतुलनीय हैं गौमाता सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए। आपको अधिक से अधिक दस-बीस देवी-देवता मिल जाएँगेपर सारे भूमंडल में ढूँढ़ने पर भी ऐसा कोई देवस्थान या तीर्थ नहीं मिलेगाजिसमें हजारों देवता एक साथ हों। ऐसा दिव्य स्थानऐसा दिव्य मंदिरदिव्य तीर्थ देखना हो तो बसवह आपको गोमाता दर्शन से बढ़कर  कोई देव स्थान है कोई जप-तप है ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है।  कोई योग-यज्ञ है और  कोई मोक्ष का साधन ही। '
तीर्थों में तीर्थराज प्रयाग,उसी प्रकार देवी-देवताओं में अग्रणी गोमाता को बताया गया है। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है। गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं कि समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता। 'गौ मे माता ऋषभः पिता में दिवं शर्म जगती मे प्रतिष्ठा।गाय मेरी माता और ऋषभ पिता हैं। वे इहलोक और परलोक में सुखमंगल तथा प्रतिष्ठा प्रदान करें।
हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान का अवतार ही गौमातासंतों व् धर्मरक्षा के लिए होता है।गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरितमानस में लिखते हैं-
'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।'
सनातन सत्य गौमाता में हैं समस्त तीर्थ गायगोपालगीतागायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैंआधार हैं। इनमें गौमाता को सर्वोपरि महत्व है। पूजनीय गौमाता, हमारी ऐसी माँ है जिसकी बराबरी  कोई देवी-देवता कर सकता है और  कोई तीर्थ। जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया होउसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया।
रघुवंश के राजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और रामजन्म सुरभि गाय  के दुग्ध द्वारा तैयार खीर से माना गया है कृष्णजो गोपाल के नाम से जाने गए ने पूर्ण बृजक्षेत्र की रक्षा गोवर्धन पर्वत उठा कर की और माखनचोर कहलाये.
औषधियोके स्वामी धन्वन्तरी ने गौभक्ति और गौसेवा कर आरोग्य प्रदायनी गौ दुग्धगौ घीगौदधिगौमूत्र और गौबर के मिश्रण से पंचगव्य की रचना की यहां तक ​​कि गाय (गोबरका मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दिवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया थाशुद्ध रहने के लिए  हर  घर और मानव   शरीर पर गोमूत्र छिड़काव एक आम बात थी.
गोधन  धन के रूप में और धन के एक उपाय के रूप में माना जाता थागोकुल यानी जहाँ १०,००० से अधिक गौवंश हो और नन्द जो की हजारों गौवंश का अधिपत्ति हो जाना जाता थासनातन धर्म में कन्या को दुहिता का नाम दिया है यानी दुग्ध को दोहन करने वाली, गाय का दान एक सबसे महान दान माना जाता था|   शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। क्योंकि कि वह गौमाता की निर्मल आभा में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। मानव संरक्षणकृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग औरसाथ रहा हैइसही कारण हमारे  शास्त्र वेद-पुराण गो महिमा से भरे हुए है           

गायशब्द का अर्थ
त्वं यज्ञस्य त्वं माता सर्वदेवानां कारणम |
त्वं  सर्वतीर्थानां नमस्तुतेअस्तु  सदानघे ||
शशि सूर्यरूणा  यस्या ललाटे वृषभ ध्वज:|
सरस्वती  हुंकारे सर्वेनागास्च कम्बले  ||
क्षुर पृष्टे  गन्धर्वा  वेदाश्चत्वार एव  |
मुखाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावारानि चराणि  ||
“ हे निष्पापे तुम सब देवताओं की माँ,यज्ञ की कारण रूपा और सम्पूर्ण तीर्थों की तीर्थ रूपा होहम तुम्हे सदा नमस्कार करते हैंतूम्हारे ललाट में चंद्रमासूर्यअरूण और वर्षभध्वज शंकर विराजमान हैंहुंकार में सरस्वतीगल कम्बल में नागगणखुरों में गन्धर्व और चारो वेद तथा मुखाग्र में चर-अचर सम्पूर्ण तीर्थों का वास है”.
वेद और स्मृति में गौ "cow",  'गाय' का बड़ा व्यापक अर्थ है।  इसमें केवल गायबैल और बछड़े ही नहीं बल्कि दूधगोमूत्र और  गोबर भी शामिल है। मानव इन्द्रियों को भी गौ और गौभक्षण को इंद्री अर्थात्  काम, क्रोध, मोह, दर्शन, श्रवण, स्वाद आदि दमन का सम्बोधन दिया गया है। आक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के विख्यात प्राध्यापक डॉ. मोनियार विलियम ने अपने शब्दकोश में गौ के ७२ समानांतर अर्थ दिए है कुछ इस प्रकार है-- 
१. गौ २. श्रिंगने ३. तम्चा  ४. महा ५. पुरारी ६. सुरभि ७. उसरा ८. अर्जुनी ९. अग्र १०. रोहिणी ११. धेनुधेनुका १२. अमृत १३. गौधेनु १४. स्त्रिगावी १५. दुग्धि १६. पिनोघनी १७. प्रियारुपणी १८. धेनुषा १९. गोवृन्दवारा २०. गोमुतालिका २१. गोप्रकंड २२. वत्सकामा २३. वत्सला २४. वसुंधरा २५. वसुधा २६. धरित्री २७.धारिणी  २८.मेधिनी २९. वत्सिया आदि।
गावो विश्वस्य मातर: गोएँ विश्व की माँ हैं।
यजुर्वेद: गो:मात्रा न विद्यते अर्थात् गौ अनुपमेय है।
ब्रह्मांड पुराण में भगवान व्यास ने गौ-सावित्री स्तोत्र में समस्त गौवंश को साक्षात् विष्णु का रूप माना और इसके सम्पूर्ण अंगों में भगवान केशव का वास कहा।
पद्म पुराण का कथन है – गौमुख में षढढ्ग और पदक्रम सहित चारों वेद रहते हैं स्कन्द पुराण के अनुसार गौ सर्वदेवमयी  और वेद सर्व गोमय हैं जिस घर में गौ नहीं वह बन्धु शून्य है। गौ को आदिकाल से पवित्र और करुणा का द्योतक माना गया है मान्यतानुसार इसकी सेवा और अर्चना से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है
“गाओ विश्वश्य जगत: प्रतिष्ठा
अर्थात् गाय विश्व में सबसे प्रतिष्ठित है जिसे भगवती के रूप में पूजा गया है।
             “ पश्वे तोकाय शं गवे”८.५.२०
युगे गावो मेद्यया कृशं चिद्श्रीरं चित्कुणुथा सुप्रितकम .
वेद ऋचाओं में प्रभु से गौवंश को पूर्ण सुरक्षा और दीघ्र आयु की प्रार्थना की गयी है।
भद्रं ग्रहँ कृणुय भद्रवाचो ब्रहदो वय उच्च्यते सभासु” (अर्थववेद ४.२१.६)
हे गौ तुम्हारी पवित्र ध्वनि हर एक को प्रसन्न करती है।
“ऐतद्रे विश्वरूपं सर्वरूपं गोरूपं”  (अर्थववेद ९.७.1.२६ )
हे गौ तुम विश्व रूप हो।
 रूपं अघ्न्ये ते नम: अघ्ने ते रूपाय नम: अर्थववेद १०,१०.1)
हे अवध्या मै तुम्हे नमन करता हूँ।   
हिंदुओं में धर्मग्रंथों की विशाल श्रृंखला है और ये तमाम धर्मग्रंथ बतातें हैं कि मनुष्य और जीव-जंतुओं के बीच प्राचीन काल से ही अन्योन्याश्रय संबंध रहा है। इन ग्रंथों का संदेश है कि तमाम जीव-जंतुओं की रचना ईश्वर ने मनुष्यों की भलाई के लिए ही की है और गाय इन जीव-जंतुओं में सबसे श्रेष्ठ है। इसलिए सृष्टि के इस आदि धर्म में जो भी ग्रंथ मान्य हैं उन सबों में बिना अपवाद गाय की महिमा का बृहद् बखान हैजिसके केवल उदाहरण दिये जाये तो भी एक ग्रंथ बन जायेगा। वेद से लेकर पुराणों तक में और रामायण से लेकर महाभारत जैसे इतिहास ग्रंथों में गायों को अहन्या माना गया है और उसे माँ का स्थान दिया गया है। हिंदू ग्रन्थ  गाय की महिमा के बखान से ओत-प्रोत हैं। इसके कुछ उदाहरण हैं-
अर्थववेद में कहा गया है-     मित्र ईक्षमाण आवृत आनंदः।
       युज्यमानों वैश्वदेवोयुक्तः प्रजापति विर्मुक्तः सर्पम्।।
          एतद्वैविश्वरुपं सर्वरुपं गोरुपम्।।
उपैनंविश्वरुपाः सर्वरुपाः पशवस्तिष्ठन्ति य एवम् वेद।। (अर्थववेद)
     अर्थात् देखते समय गो मित्र देवता है पीठ फेरते समय आनंद है। हल तथा गाड़ी में जोते जाते समय (बैल) विश्वदेव, जाने पर प्रजापति, तथा जब खुला हो तो सबकुछ बन जाता है। यही विश्वरुप अथवा सर्वरूप हैयही गोरूप है। जिसे इस विश्वरूप का यर्थाथ ज्ञान होता हैउसके पास विविध प्रकार के पशु रहते हैं।
अथर्ववेद में ही कहा गया है ब्राह्मण तथा क्षत्रिय विश्वरुप गौ के नितंब है। गंधर्व पिंडलियां तथा अप्सरायें छोटी हड्डियां हैं। देवता इसके गुदा हैं, मनुष्य आते तथा अन्य प्राणी अमाशय है। राक्षस रक्त तथा इतर मानव पैर हैं।गाय के संबंध में एक जगह कहा गया है-
प्रत्यंग तिष्ठन् धातोदङ तिष्ठनन्रसविता।।तृणाणि प्राप्तः सोमो राजा।।
अर्थात् पश्चिमाभिमुख खड़े होते समय गाय विधाता  उत्तराभिमुख खड़े होते समय सविता तथा घास चरते समय चंद्रमा है।
विभिन्न ग्रंथों में कहा गया है कि गाय के अंगों में ईश्वर का वास है। उदाहरणार्थ-बृहत्पराशरस्मृतिपद्मपुराण (सृष्टिखंड अथर्ववेद में गायों को संपतियों का भंडार कहा गया है-(अर्थववेद)
धेनुः सदनम् रयीणम अर्थात् गाय संपदाओें का भंडार है। एक जगह आता है गावो विश्वस्य मातरः।अर्थात् गाय संसार की माता है।
वेदों में तो गाय को टेढ़ी आंख से देखना तथा लात मारने को भी बड़ा अपराध माना गया है-
यच्च गां पदा स्फुरति प्रत्यड़् सूर्यं च मेहति।
तस्य वृश्चामि तेमूलं च्छायां करवोपरम्।। अर्थववेद 13
अर्थात् जो गाय को पैर से ठुकराता है और जो सूर्य की ओर मुँह करके मूत्रोत्सर्ग करता है मैं उस पुरुष का मूल ही काट देता हूँ संसार में फिर उसे छाया मिलना कठिन है।

प्रभु राम के वनवास गमन के पश्चात् जब भरत जब उनसे मिलने वन में गये तो प्रभु का पहला प्रश्न भरत से यही था कि तुम्हारे राज्य में गाएं तो ठीक से है न स्कंदपुराण (आवंत्यखंड रेखाखंड अध्याय-13 ब्रह्मांडपुराण (गोसावित्रीस्त्रोत) भबिष्यपुराण (उत्तरपर्व बह्मवैर्वापुराण के श्रीकृष्णजन्म कांड आदि में गाय की महिमा का वर्णन है।  गोवध का निषेध करते हुये वेद में कहा गया है-

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यनाममृत्स्य नाभिः।
प्रश्नु वोचं चिकितुषे जनायमा गामनागादितिं वधिष्ट।।
अर्थात् गौ रुद्रों की माता वसुओं की पुत्री अदितिपुत्रों की बहन तथा धृतरूप अमृत का खजाना है । प्रत्येक विचारशील मनुष्य को मैनें यही कहा है कि निरपराध व अवध्य गो का कोई वध न करें।      
गौपूजन
गौ का स्थान हमारे समाज में इतना उच्च था कि वार्षिक पंचांग में गौपूजा के लिए विशेष पर्व और दिन निर्धारित कर दिए गए थे जैसे दीपावली से 3 दिन प्रथम बछ्वारस औषधि के देव धन्वन्तरी के साथ, दीपावली से अगले दिन बलिप्रतिपदा – गोवर्धन पर गौपूजन किया जाना निश्चित था. ना केवल गौ बल्कि नंदी भी पूजे जाते हैं जैसे श्रावण मास का अंतिम दिन पोला जिसमें बैल को सजा कर घर घर ले जाया जाता है जहाँ उनकी पूजा की जाती है गौदान सबसे पवित्र और महान माना गया है। मकर संक्रांति में गौ-नंदी की विभिन्न रूपों में पूजा अर्चना की जाती है। गौपदम व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक नित्य, गौवत्स द्वादशीव्रत, गौवर्धनपूजा गौपाष्टमीव्रत, पयोव्रत, वैतरणी एकादशी व्रत आदि गौवंश पूजा से सम्बन्धित हैं। गृहप्रवेश, पाणिग्रहण आदि संस्कार गौपूजा, गौदर्शन, गौदान से ही पूर्ण माने जाते हैं गौदुग्ध, दधि, धृत, गोमूत्र, पंचगव्य आदि हरपूजा,हवन के अटूटअंग देखे जाते हैं।                             
गाय - देवी रूप माता
वेदों और वैदिक काल में गाय को सर्वोच्च उत्पत्ति का पर्याय माना गया। गाय भूमि, गाय देवमाता, गाय  मेघ गाय  प्राकृतिक जीवन जल मानी गयी। गाय या गौवंश पुरातन काल में विशेष सम्पत्ति मानी गयी और युद्ध में विशेष प्राप्त सम्पत्ति मानी गयी। इसके मुकाबले में किसी और प्राणी को स्थान नहीं दिया जाता था। एक विशिष्ट अनुवेष्ण में पाया गया की जैन सम्प्रदाय ने वृद्ध और असहाय गौवंश के लिए
गृह–पिंजरापोल बनाये। नन्द यानि जिसके गौकोष्ट में गायों का समूह हो। ब्रज यानि जहां एक लाख से अधिक गौवंश हो, कन्या को दुहिता कहा गया। 
शिव का  वाहन  - धर्म का अवतार नंदी
     वृषभ  'संस्कृत अंग्रेजी शब्दबैल 'के बराबर है। नंदी बैल भगवान शिव का  वाहन  है. वैदिक साहित्य में शिव  शब्द 'जनता के कल्याण' (लोक कल्याण) का पर्याय है और  बैल लोक कल्याण कर्ता का वाहक है। हमारी कृषि और ग्रामीण परिवहन की 90% अभी भी हमारे बैलों पर निर्भर हैं। बैल इस प्रकार हमारे धर्म के अवतार हैं। वस्तुतः बैल मानव जाति का एक भाई है। 3 वर्ष की आयु के बाद बछड़ाबछिया और बैलजो अपने जीवन प्रर्यंत मानव जाति का कार्य करता है। प्रत्येक शिव मंदिर में हमेशा एक नंदी की प्रतिमा भगवान शिव की प्रतिमा शिव दरबार में मिल जाएगी। यही नहीं, भारत के राष्ट्रिय चिन्ह में बैल को स्थान दिया गया है। कितने ही सम्प्रदायों जैसे लिंगायत सम्प्रदाय में नंदीश्वर की आराधना की जाती है।
गौवंश के विभिन्न प्रकार प्रजातियाँ
हमारे लिए, 'गायमूल रूप से हमारे स्वदेशी नस्लों की गायजिसमें  कुछ निहित दिव्य और प्रमाणित  गुण है, 50 से अधिक स्वदेशी नस्लोंजिनमें से कुछ के नाम नीचे का उल्लेख कर रहे हैं। 1. गीर 2. काकरेज 3. हरियाणा  4. नागौरी  5. अमृतमहल  6. हल्लीकर, 7. मलावी 8. निमरी 9. दाज्जल 10. अलाम्हादी 11. बरगुर  12. कृष्णवल्ली  13. लालसिन्धी  14. थारपारकर 15. गंगातीरी 16. राठी 17. ओंगोल 18. धन्नी  19. पंवार   20. खेरिगढ़ 21. मेवाती 22. डांगी 23. खिल्लार 24. बछौर    25. गोलो 26. सिरी कांगयम।यह नस्लें अपने उत्तम दुग्धशक्ति और पर्यावरण रक्षक के रूप में पूर्ण विश्व में जानी जाती हैं
१.   आकृतिप्रकृतिगुण-दोष एवं रूप रंग के आधार पर अगर बांटे तो मैसूर की लम्बे सींगों वाली अमृत महलहल्लिकारकान्ग्यमखिल्लारकृष्णवल्लीबरगुरआलमवादी आदि। काठियावाड़ की लम्बे कान वाली गीरदेवानीडांगीमेवातीनिमाड़आदि।
२.   उत्तरी भारत की चौड़े मुख तथा मुड़े हुए सींग वाली सफेद रासकांकरेजमालवी,नागौरीथारपारकरबचौरपंवारकेनवारिया आदि।
३.   मध्य भारत की संकरे मुख और छोटे सींग वाली भगनारीगावलावहरियाणवीहांसी-हिसारअंगोलराठ आदि साहिवालधन्नीपहाड़ी सीरीलोहानीआदि।
यह प्रजातियां अपने दुग्ध क्षमतागुणवताशक्ति के लिए विश्व विख्यात है। आज ब्राजीलआस्ट्रेलियाइस्रायल और यूरोप के कितने ही देशों में इनको अर्थ व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। गिन्नी विश्व रिकार्ड में गीर और अनगोल को शामिल किया गया है।
                                         विदेशी प्रवासियों की नज़र में गाय 
माक्रोपोलो में भारत आया और लिखा कि यहाँ हाथी के समान नंदी जिनकी पीठ पर व्यापारी माल लादकर ले जाया जाता है। घरों में गोबर से घर लीपा जाता है और उस पर बैठकर प्रभु आराधना होती है।
मुगल दरबार को नजदीक से उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हिन्दुस्तान में गोवध मनुष्य के वध के समान दण्डनीय था। उसने तत्कालीन बादशाहों के भोज्य पदार्थों की सूची दी है जिसमें कहीं भी गो मांस का उल्लेख नहीं है।
ईटालियन यात्री पीटर डिलाब्रेल ने 1963 में लिखा है कि खम्बात में गो बछड़े और बैल मारने की सख्त मना ही थी। कोई मुसलमान भी यदि गोहत्या करता तो उसे मृत्युदण्ड जैसा कठोर दण्ड मिलता था।
एक अन्य यूरोपीय टेवनियर लिखता है कि मुगल काल में व्यापारी माल लष्कर की सामग्री ढोने का कार्य बैलों से किया जाता था। इसके लिए बंजारा जमात बहुत महत्वपूर्ण थी। उनके पास दक्षिण भारत की अमृतमहल महाराष्ट्र की जैवारी (खिलार) काठीयावाड़ की तलवड़ा बुंदेलखण्ड की गोरना इत्यादि नस्लों के बैल थे ये बैल रोज 50-60 कि.मी. पीठ पर माल लेकर चलते थे।
     कहा जाता है कि विदेशीयात्री भारत से  कामधेनु और कल्पतरु यानी गाय और गन्ना लेकर गया था जिस से योरप में समृधि बढ़ी और “सोने की चिड़िया” भारत लुट गया । 


गाय कामधेनु
विकराल राष्ट्रिय समस्याओं का परिहार गौवंश है। माननीय शंकरलाल जी के शब्दों में भारत के विकास और सम्पन्न भारत के स्वप्न को यह कामधेनु ही पूर्ण कर सकती है यानि:

रोग मुक्त भारत, कर्जमुक्त भारत, अपराध मुक्त भारत,
प्रदूषण मुक्त भारत, कुपोषण मुक्त भारत, अन्नयुक्त भारत,
उर्जा उक्त भारत, रोजगारमय भारत, स्वालम्बी भारत
सम्पन्न-भारत संकल्प पूरा करने में गौवंश सक्षम है। इसलिए इसकी रक्षा करनी होगी। जल, जमीन, जंगल, जीवात्मा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और संस्कार की रक्षा करनी हो तो प्रथम गौवंश को बचाना होगा
अंग्रेजी में इसे COW MOTHER कहा जाता है इसमें एक एक अक्षर अपने में महिमा संजोये हुए है। माननीय राधेश्याम गुप्ता जी के शब्दों में देखिये :-
C –  Capital Formation      -    सम्पति प्रदायनी 
 Organic farming          -   प्राकृतिक जीरो बजट खेती
W – Weather, Wealth         -  मौसम नियंत्रकसम्पति
– Money, MilkMedicine - पैसादुग्धशालामाँ 
O -- Organic Manure            - प्राकृतिक खाद का खजाना
T -- Trade – Transport          - व्यापारउद्योग, परिवहन
H -- Health                      -स्वास्थ्य प्रदायकसर्व रोगनिवारक
E -EnergyEconomy,Ecology -शक्ति,अर्थव्यवस्था,पृदूषणनिवारक
R - Rural Development        - ग्राम विकास की धुरी





गौशाला, पिंजरापोल, प्राणीदया संस्थाएं और भा.ज.पा प्रकोष्ट
जबसे मानवता का प्रारम्भ हुआ प्रानिदया और इस संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ| राज्यों का विषय होने के कारण कोई प्रामाणिक आंकड़े तो नही है परन्तु भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड के साथ आज ३२०० संस्था पंजीकृत हैं जिनमे १५०० से अधिक गौशालाएं हैं. जिन राज्यों में गौसेवा आयोग बने और साकारी अनुदान मिले वहां तो गौशालाओं की बाढ़ आ गयी| मध्यप्रदेश गौसेवा योग के अध्यक्ष श्री शिवजी चौबे का कथन की उनके यहाँ तो चार मंजिल पर भी गौशालाएं पकड़ी गयी, सत्य स्थापित करता है| अनुमानत: देश में १५,००० के आसपास विभिन्न नामों में गौशालाएं कार्यरत  हैं जिनमे ५० से ५००० तक यानी २०-२५ लाख कुल गौ,बैल, भेंस बछड़े, कटड़े आदि  भी प्राणियों का पालन होता है | इन प्राणीदया संस्थाओं में मुख्यत: गुजराती, मारवाड़ी, जैन, अग्रवाल, ब्राह्मण अहिंसक समाज का वार्षिक अनुदान रु.१५०० से २००० करोड़ के बीच में आंका जा सकता है| विशाल नगरीकरण के कारण शहरो में गौशालाएं और गौपालन समाप्त प्राय: है जबकि ६ लाख ग्रामों के इस देश में हर गाव, हर तहसील, हर जिले में गौशाला की आवश्यकता है
मुझे देश की विभिन्न प्राणीसंस्थाओं को देखने का अवसर मिला है| नागपुर देवलापार, कानपूर, कलकत्ता, गौहाटी, जयपुर, हिसार,  बवाना दिल्ली,मथुरा की महाजनी,अहमदाबादकी स्वामीनारायण ,बंसीगोपालआदि गौशालाएं गौबरगौमूत्र से वस्तु-उत्पादन, नस्ल सुधार आदि कार्यो में रतहै |
१९३८ से कार्यरत दक्षिण भारत की विशालतम संस्था ४००० से अधिक प्राणियों का जीवनयापन कर रही है| मै मैसूर पिंजरापोल में गत २० वर्षो से सेवा दे रहा हूँ|आज ३०० किलोमीटर क्षेत्र में कहीं भी प्राणी पुलिस द्वारा बचाए जाते हैं तो उन्हें विश्वास है कि मैसूर पिंजरापोल इन्हें सम्भालेगी, अदालत में केस लड़ेगी|
राजनीति में जनकल्याण कार्यों का मुख्य समावेश होता है| इस तथ्य को स्वीकार कर भा.ज.पा ने गौसेवा आयोगों की स्थापना की और केंद्र में अध्यक्ष श्री राजनाथसिंह जी ने सभी राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ते हुए भा.ज.पा गौवंश विकास प्रकोष्ट की २००८ में माननीय श्री राधेश्याम गुप्त जी को संयोजक मनोनित करते हुए रचना की और माननीय नितिन गडकरी जी ने कृषि, ग्रामीण स्वालंबन, महिला शक्ति, युवा रोजगार आदि कार्यो को प्रकोष्ट माध्यम से को बढ़ाने की प्रेरणा दी|
मुझे राष्ट्रिय सह संयोजक के नाते पूर्ण देश में कार्य का और प्रकोष्ट विस्तार का अवसर मिला| आज अधिकतर राज्यों में प्रकोष्ट गौवंश, गौशालाओं, गौभक्तों की आवाज बन चुका है |  














अनुचित शब्दावली और परिणाम
Cattle यानि मवेशी- पशु न कह कर गौवंश कहा जाये :
गाय और गौवंश को अंग्रेजी में Cow & its progeny कहा गया है भारतीय संविधान में भी इन शब्दों का प्रयोग किया गया है लेकिन न जाने कब, किस साजिश में इसे पशु, मवेशी Cattle कहा जाने लगा। आज प्रथम इसमें सुधार की आवश्यकता है ।

बीफ शब्द में से भैंस आदि के मांस को अलग करा जाये        गौमांस यानि BEEF जिसे प्रसिद्ध Oxford शब्दकोश में भी flesh of a cow, bull, or ox, used as food " यानि गाय या बैल से मिला भोज्य मांस । ना जाने किस षड्यंत्र में इसमें भैंस का नाम जोड़ दिया गया जबकि उसे भैंस मांस के रूप में प्रचारित किया जाना चाहिए ।
बैलशक्ति : अश्व अपनी गति के लिए पहचाना जाता है ना कि शक्ति के लिए और गति कार्यो के आलावा और किसी कार्य में उपयोग में नहीं आता है जबकि बैल अपनी शक्ति के लिए जाना जाता है फिर भी शब्द अश्वशक्ति को प्रचारित किया जाता है। इसे बैल शक्ति जो की अश्व से ८ गुना से भी ज्यादा आंकी गयी है के रूप में लिखा जाना चाहिए।   
गौवंश को अनुपयोगी कहना सही नहींयह तो सर्वकार्य प्रदायिनि कामधेनु है।और बैल को राष्ट्रीय चिन्ह में स्थान प्राप्त है। राष्ट्रीय झंडा, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय चिन्ह का दुरुपयोग, अपमान जघन्य अपराधों की श्रेणी में आता परन्तु देश की स्वंत्रता के पश्चात् इस विषय पर संज्ञान लिया नहीं गया है और बैलों सांडो बछड़ो का निर्मम क्रूर यातायात और कत्ल पूरे देश में पैसे के लालच में किया जा रहा है। परिणाम कृषक की आत्महत्या, कृषि लागत में असहनीय वृद्धि, पर्यावरण क्षरण आदि दृष्टीगोचर है।

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