कसाईखाना विरोध एक बहुत संवेदनशील विषय है और प्राणीरक्षकों को उद्द्वेलित करता रहा है. गत कुछ वर्षों से केंद्रीय सरकार खुले हाथों से आधुनिक यांत्रिक कसाईखानों को वित्तीय सहायता कर रही है. और पुराने कसाईखानों को नगर से बाहर लगाने के नाम पर घिनोनी प्राणीहत्या का जाल बुना जा रहा है.
स्थिति :
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अवैधानिक कसाईखानों को रोकने और प्राणी जीवन को बचाने के लिए कठोर केंद्रीय और राज्यों के नियम हैं. लेकिन कसाई सविधान के मुलभुत सिधान्तो का आश्रय लेकर विभिन्न न्यायालयों से अपने पक्ष में रोक (stay ) ले आते हैं. राज्यों के नगरपालिका अधिनियमों में कसाईखाना बनाने का भी प्रवाधान है.
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नगरपालिकाओं के कसाईखाने सामयिक अनुबंध पर चलने को दे दिए जाते है इतने कम पैसे में दे दिए जाते हैं जिसमे अर्ध कालिक सफाई कर्मचारी भी रखना संभव नहीं होता उन पैसो की भी वसूली सरकार नहीं कर पाती। यह कसाईखाने अमूनन गैर क़ानूनी गतिविधियों में लिप्त पाये गए हैं
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माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुआर, लेखक ने भारतीय जीव जंतु कल्याण मंडली (AWBI ) के कर्णाटक और केरल प्रभारी के नाते, कुछ वर्षो पहिले केरल और कर्णाटक के कसाईखानों का निरक्षण किया था जिसमे इन कसाईखानों की त्रुटियाँ और अपने विचार देश के समक्ष रखने का अवसर मिला था.
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डॉक्टरी जाँच के लिए पुनः: सरकार के चिकित्सकों पर निर्भर हुआ जाता है. मेरे निरक्षण के दौरान मैंने पशु और मांस का चिकित्सक निरक्षण बिलकुल ही नहीं पाया था। इसका नतीजा, जो खाद्य जनता के लिए होता है वह रोग ग्रस्त पाया जाता है
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नया कसाईखाना बनाते हुए सरकारों और नगर पालिकाओं को प्राणी रक्षकों का विरोध झेलना पड़ता है जिसका नतीजा उपभोक्ता को भुगतना पड़ता है. यह एक सचाई है की देश की बहुत्तम संख्या मांसाहारी है लेकिन यह भी सत्य है की अधिकतम गौमांस का सेवन नहीं करती।सुवर का मांस भी आमतौर पर उपयोग में नही आता.
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यह भी सत्य है कि कसाई खाना अपने साथ प्रदूषण, बीमारी, चारित्र्यहिनता, जल की कमी, दुर्गन्ध आदि विभिन्न दोष ले कर आता है.
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अहिंसक जनता के सामने से काटने को जा रहे प्राणी और काटने के बाद मांस के दर्शन उनके धर्म, सोच, विचारों को आघात पहुंचाते है.
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पशु -प्राणी प्रकृति की देन और रचना है. इनका वध प्रकृति को आघात पहुँचाता है और देश की कृषि व् ग्रामीण रोजगार को अलाभकारी बना देताहै। मै ऐसे कितने ही तथ्य आपके सामने रख सकता हूँ जो कसाईखाना लगाने के विरोध में जाते हैं.
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देश के विधि विधान इस विषय पर मौन नहीं हैं. हमारे न्यायालय भी इस विषय का संज्ञान बारम्बार लेचुके हैं.
क्या है यह विधि विधान ?
१.
केंद्रीय प्रदूषण नियामक मंडली (CPCB ) ५. 2. २०१४ नियम ३ अनुसार नया कसाईखाना नगर सीमा के बाहर और हवाई अड्डे से दूर होना चाहिए। जल और मल निकासी का साधन इसका मुख्य विषय होगा। कसाईखाना व्यवसाय अतिप्रदूषित श्रंखला (Red Zone ) में रखा गया है।
२.
प्राणी क्रूरता निवारण अधिनियम (कसाईखाना ) नियम २००१ नियम ३ " नगरपालिका या केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित इस उद्देश्य के लिये अन्य स्थानीय संस्था स्थानीय जनता की जरुरत के अनुसार कसाईखाने में प्रति दिन अधितम् कितने प्राणिओ का वध हो , निर्धारित करेगी।
३.
भारतीय सविंधान की मुलभूत
सिद्धांतधारा५१-अ(g), धारा२४३(W) १. Schedule १२, व् धारा सख्या २१,राज्यों को निर्देश सिदधांत ४८ (a),आदि विभिन्न समय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित किये जा चुके हैं.
४.
मुख्य न्यायधीश माननीय रमेश चन्दर लाहोटी और ६ न्यायाधीशों की सवैधानिक बेंच ने २००५ में निर्णय देते हुए कसायिओं के सवैधानिक मुलभुत अधिकार को निरस्त किया था. श्री लक्ष्मी नारायण मोदी / भारत सरकार व् अन्य के केस WP ३०९/२००३ में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों में कसाईखाना समिति के निर्माण का आदेश दिया और विभिन्न तिथिओं पर सुनवाई कर सुन्दर निर्णय दिए गए हैं. जिनका सारांश: मुख्यत: शहर के अंदर चलने वाले कसाईखानो को नगर से बाहर करना, जिस से नगरवासिओं को जल मल निकासी पर पड़े हुए भर से राहत मिले, तथा असवैधानिक कसाईखानों को बंद किया जाए, आदि है.
५.
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने WP ४४५२९ /२००१ में कसाई संघ की प्रार्थना निरस्त करते हुए मैसूर महानगरपालिका को आदेश दिया था क़ि कसाईखाना अगर बनाये तो नागरिको के स्वास्थ्य और धार्मिक भावना को ठेस ना पहुंचे,इसे ध्यान रखा जाए.
६.
कुछ दिवस पूर्व आँध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने राजमुंदरी क्षेत्र की एक जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए कसाईखानों की क्षमता पर प्रश्न खड़े किये हैं.
७.
देखा यह जा रहा है क़ि जनता के कीमती कर को, जन भावना और विभिन्न वैधानिक नियमो को आघात पहुंचा कर केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार और नगर पालिकाएं कुछ लोगो के लाभ के लिए, निर्यात के लिए कसाईखानों का निर्माण नियोजित करती हैं. जन मानस में इसकी विद्रोह उमड़ता है और एक लम्बे न्यायिक, आंदोलन, आक्रोश का प्रारम्भ हो जाता है. इस की आड़ में असवैधानिक चल रहे कसाईखानों की और सरकारों का ध्यान ही नहीं जाता और उपभोक्ता रोग ग्रस्त मांस खाने को विवश होता है.
आज जरुरत है, इस विषय पर गहन विचार की, समस्या के समाधान की और बढ़ने की.
कुछ तथ्य : जैसे
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नगरपालिकाओं को निर्यात के लिए कसाईखाना बनाने का अधिकार नहीं है।
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नगरपालिकाओं को नगर के अंदर कसाईखाना बनाने का अधिकार नहीं है
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नगरपालिका और जिला प्रसासन को असवैधानिक कसाईखानों को पहिले बंद करवाना चाहिए
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नगरपालिका को विभिन्न स्वीकृति व् छूट सरकारी तंत्र के भाग होने के कारण प्राप्त हो जाती हैं नही तो २०-२५ विभाग विधिविधान पालन करवाने को आगे आ जाते है
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नगर पालिकाओं के पास स्थानीय जनता की मांस की जरुरत केआंकड़े ही नहीं पाये जाते है जोकि कसाईखाने की जरुरत है या नही, या कितना बड़ा और कौनसे प्राणियों का जैसे मुस्लिम भाई सुवर का मांस खाना पाप समझते हैं,अधिकतम हिन्दू, सिख गौमांस छूना भी पाप समझते है.वैष्णव और जैन भाई का तो मांस देखने मात्र से ही भोजन व्यर्थ हो जाता है.
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नगरपालिका को क्षेत्र में विभिन्न प्राणिओं की संख्या, उनके कृषि व् अन्य व्यवसायों में उपयोग आदि को भी संज्ञान में चाहिए
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नगरपालिका दायित्व बहुत विस्तृत होता है और विभिन्न नगर समस्याओं से झूझना पड़ता है इसलिए उसे इस घिनोने जन विरोधी, प्रदूषण कारक कार्य से बचना चाहिए
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नगरपालिका अगर कराती भी है तो विभिन्न वैधानिक नियमो और सर्वोच्च व् उच्च न्यायालयों के निर्देशो का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। जनता के लिए होने वाले कार्य में जनता के सामने रखना और बहुमत निर्णय का पालन करना चाहिए
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नगरपालिका को निर्णय लेने से प्रथम अपने क्षेत्र के उपभोक्ता जरुरत, वर्तमान उपलब्धता, आदि का आंकलन करना एक वैधानिक जरुरत है
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केंद्रीय व् राज्य सरकार और विशेषत: खाद्य प्रसरण उद्योग (Food Processing Industry )मंत्रालय व् बैंकों को अनुमति और अनुदान आदि पारित करने से प्रथम सभी विधि विधानों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए।
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कसाईखानों पर राज्य की समिति,जोकी मा.सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और मार्गदर्शन में कार्यरत है और जिसका संयोजक भूतपूर्व जिला न्यायाधीश सुनिश्चित किया गया है उसकी अनुशंषा और सामयिक निरक्षण अति आवश्यक है गैरक़ानूनी कसाईखानो के जाल को तोडना भी इस समिति की जवाबदारी है.
मुझे विस्वास है की अगर उपरोक्त का पालन किया जाये तो कसाईखानों की बाढ़ को रोक जा सकेगा। देश और जनता का विशाल धन बचेगा करोडो प्राणिओ की रक्षा होगी, कृषि, ग्रामीण विकास को नयी गति मिलेगी। देश में गुलाबी नहीं- हरी क्रांति आएगी
डॉ.श्रीकृष्ण मित्तल
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