गौरक्षा के आयाम में आर्थीक स्वालंबन एक महत्व पूर्ण कड़ी है गोवंश को बेसहारा प्रश्रीत और भर ख कर कसाई को बेच दीया जाता है, यह नीर्वाद सत्य है की गोवंश का ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के साथ पुरातन नाता है । इसे कामधेनु, नंदी, वर्षभ नाम से स्मरण किया गया है। ग्राम अर्थ व्यवस्था की मुख्य कड़ी यह आज पूर्ण अहीन्सक, गौभक्त समाज को पुकार रहा है और याद दीला रहा है की प्रुकृती की यह आज भी देश के स्वास्थ्य, रोजगार और अर्थ व्यवस्था को बडा सहयोग दे सकती है अगर इस की शक्ती और गोमी को पूर्ण रूप से उपयोग में लाया जाए तो करोडों बेरोजगारों को रोजगार, शुद्ध प्राकृतीक उत्पाद ग्राम से शहर की और पलायन की रोक, देश की वीद्युत व् इंधन का साधन, देश की अर्थ व्यवस्था में लाखों करोड़ का वार्षीक योगदान देने में स्क्छ्म है।
देश का गोभक्त आज उपरोक्त सचाई को स्वीकार कर चुका है । पुरेi देश में गोवंश की चर्चा है लेकीन क्या उत्पादन करे, कैसे करे, किस तकनीक का उपयोग करे, क्या लागत आएगी, उत्पाद कहाँ बेचे जायें तथा बाज़ार में उत्पादों से स्पर्धा कैसे की जाए आदी की खोज में है । इन सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लीये सीक्षण व्र्ग एक आवश्यकता है।
आईये इस वीश्य पर चर्चा करते हैं
प्रथम प्रश्न गोपालक के यहाँ से उद्योग तक आपूर्ती का आता है, वैसे तो जहाँ यह कुटीर उद्योग लगें वहां गोवंश पाया जाएगा और बाज़ार भी वहीं का होगा ऐसा माना जाना चाहिए।
उद्योगों को लागत के आधार पर बाँटने से कार्य और सरल होगा आदी आवश्यकताएं और इनके लीये पूंजी की जरूरत होती है।
गोवंश आधारीत उत्पाद रु.२५,००० - २,50,०००,/- , २,५०,००० -25,००,०००/- ,25,००,००० से ज्यादा लागत श्रेणी में विभाजीत कीये जा सकते है।
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१) हमे चाहिये गोपालक से लेकर मध्य कार्य उद्योग तक पहुचने वाले व्यापारी
२) मध्य कार्य उद्योग यानी उत्पादक को गोबर,गोबर पावडर, गोबर रेशा,वशापीकृत,
प्रिसकरत गोमूत्र के उद्योग
३)विभन्न उत्पाद नीर्माता
४) विक्रय के लीये बाज़ार और व्यापारी
5 टिप्पणियां:
सुन्दर जानकारी....स्वागत है आपका
ab maanavta ki raksha ke liye gau raksha karni hi hogi....
aapka prayaas stutya hai
HARDIK BADHAI
jai go mata. narayan narayan
jai go mata. narayan narayan
उपयोगी पोस्ट।धन्यवाद।
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